वाराणसी के गोदौलिया चौराहे से दशाश्वमेध घाट तक जाने का मार्ग काफी चौड़ा किया जा चुका है। इसके लोकार्पण के लिए पीएम मोदी के बनारस आने के पूर्व मार्ग के दोनों तरफ स्थित दुकानों को एकरूपता देने के लिए हल्के लाल-भगवा रंग से रंग दिया गया है। इससे पूरी नगरी खूबसूरत आध्यात्मिक अहसास देती दिखाई पड़ रही है। इसी मार्ग पर कपड़े की दुकान चलाने वाले किशन ने अमर उजाला को बताया कि अपने तीन दशक से ज्यादा व्यापारिक अनुभव में उन्होंने विश्वनाथ मंदिर और इस क्षेत्र का विकास होते हुए कभी नहीं देखा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में किया गया अपना वादा निभाया और पूरे वाराणसी का कायाकल्प कर दिया।
किशन बताते हैं कि इस क्षेत्र की जनता मंदिरों के हुए इस विकास से अभिभूत है और दिल खोलकर भाजपा का सहयोग देने को तैयार है। इसका कारण केवल आध्यात्मिक स्थलों का विकास ही नहीं, बल्कि पूरे बनारस के गली, चौराहों, सड़कों और फ्लाईओवर का विकास कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर कोरोना काल के दौर को छोड़ दें तो इस विकास के बाद उनका व्यापार बढ़ चुका है। लोग इस विकास का जबरदस्त स्वागत कर रहे हैं।
इसी मार्ग पर एक रेस्टोरेंट चलाने वाले प्रवीण जैन ने कहा कि मार्गों का अच्छे तरीके से विकास करने के कारण यहां आने वाले भक्तों की संख्या बढ़ी है। इससे उन लोगों के कामकाज में वृद्धि हुई है। इसका पूरा श्रेय अगर किसी को दिया जा सकता है तो वह पीएम नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को ही दिया जा सकता है। यही कारण है कि जनता उनके लिए सकारात्मक दृष्टि रखती है।
हालांकि, कपड़ों के व्यापारी अंकुर तिवारी अब भी व्यापार के पूरी तरह वापस न होने की बात कहते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म नगरी वाराणसी में हमेशा से भारी संख्या में हिंदू श्रद्धालु आते रहते थे। इसमें किसी सरकार के योगदान को श्रेय नहीं दिया जा सकता। यह इस आध्यात्मिक नगरी का ही प्रभाव है कि देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां चले आते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना के कमजोर होने के बाद भक्तों के आने की संख्या यहां पर तेजी से बढ़ी है, लेकिन इसके बाद भी लोग खरीदारी करने से कतरा रहे हैं। यह कोरोना काल की मंदी का असर दिखाई पड़ता है जो लोगों की जेब पर अब भी भारी पड़ रही है।
गोताखोरों को नौकरी क्यों नहीं
गोताखोर सुनील निषाद बताते हैं कि अभी भी विदेशी पर्यटकों को यहां पर आने की अनुमति नहीं मिल पाई है। ओमिक्रॉन के बढ़ते खतरे के कारण यहां आने की उनकी संभावनाओं पर दोबारा गहरी चोट पड़ी है। विदेशी पर्यटक ही उनकी कमाई का सबसे बड़ा स्रोत होते थे। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के कमजोर होने के बाद भी उनके लिए प्रतिदिन 200 से 300 रुपये कमाना भारी पड़ जाता है। उन्होंने बताया कि यहां गंगा में होने वाली किसी दुर्घटना को रोकने के लिए यूपी जलपुलिस तैनात है, लेकिन उसमें एक भी गोताखोर नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जो सरकार उनके समाज के युवाओं को रोजगार देने का काम नहीं करती, उसे बदला जाना चाहिए।
सुनील निषाद के मुताबिक इस महंगाई के जमाने में उन्हें घर का खर्च चलाना भारी पड़ रहा है। वे चाहते हैं कि व्यवस्था बदले और कामकाज सुधरे। यानी इसी धार्मिक नगरी में रोजगार का मुद्दा युवाओं के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
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झूठे विकास पर भारी पड़ेगे कोरोना काल के शव’
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आईपी सिंह ने अमर उजाला से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अखिलेश सरकार के कार्यों का श्रेय लेने का काम कर रहे हैं। जिस पूर्वांचल एक्सप्रेस को भाजपा अपना बता रही है उसका समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के नाम से पहले ही फीता काटा जा चुका था। उन्होंने कहा कि भाजपा को यह लगता है कि प्रदेश की जनता उनके विकास के इन झूठे दावों के चलते उन दृश्यों को भूल जाएगी जो उसे करोना काल में प्रयागराज से लेकर बक्सर तक गंगा नदी में उतरती लाशों के रूप में दिखाई पड़े थे।
उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार जन आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर रही है। लोग आज भी अपना घर न चला पाने के कारण बेहद दबाव में हैं। भाजपा को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। सपा नेता ने दावा किया कि इस बार प्रधानमंत्री मोदी को केवल पश्चिम से ही नहीं, पूर्व से भी करारी हार का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि इसका कारण भाजपा नेताओं का अहंकार, विकास के झूठे दावे और जन हितैषी योजनाओं से दूरी बरतना है।