एक समय था जब बॉलीवुड में फिल्में सिर्फ पैसे कमाने के उद्देश्य से बनाई जाती थीं। उस समय के मेकर्स बस तलाश में रहते थे कि कैसे भी करके फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हो जाए और तगड़ी कमाई कर के दे। हालांकि पिछले काफी समय से इन चीजों में बदलाव आया है। अब फिल्में सामाजिक मुद्दों को देखते हुए बनाई जाने लगी हैं। लेकिन ये जरुरी नहीं है कि लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए और सामाजिक मुद्दों पर रोशनी डालने के लिए गंभीर फिल्म बनाई जाए। आजकल ऐसी फिल्में भी बन रही हैं जो दर्शकों को सामाजिकता का संदेश तो देती ही हैं और उनका मनोरंजन भी करती हैं। तो आइये जानते हैं वो फिल्में कौन सी हैं…
यह पंकज त्रिपाठी की लीड फिल्म है। इस फिल्म में उस मुद्दे के बारे में बात की गई है, जिसे हम सब जानते तो हैं लेकिन कोई ध्यान नहीं देता। यह एक आम आदमी की कहानी है, जिसे सरकार ने कागजों में मृत घोषित कर दिया है। इस फिल्म में वह आदमी 14 साल संघर्ष करने के बाद खुद को साबित करने में सफल हो जाता है।
हेलमेट एक ऐसे मुद्दे पर बनी फिल्म है, जिसके बारे में भारत में सामाजिक तौर पर बात करना भी पाप माना जाता है। दरअसल हेलमेट सुरक्षित इंटरकोर्स (सेक्स) के लिए लोगों को कंडोम खरीदने के लिए जागरुक करने वाली फिल्म है। फिल्म का निर्देशन सतराम रमानी ने किया है।
मिमी एक ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर बनी फिल्म है जिसके बारे में एक समय में सोचना भी गुनाह होता था। ये फिल्म सेरोगेसी पर बनी है। इस फिल्म में सामाजिक मुद्दे के बारे में दर्शकों को हल्के-फुल्के मनोरंजन के रुप में बताया गया है। इस फिल्म में सेरोगेसी, रंग भेद, जाति और गर्भपात तक के मुद्दे को उठाया गया है।
आज भले ही कानून ने समलैंगिकता को अपराध की लिस्ट से बाहर कर दिया हो, लेकिन समलैंगिक लोगों को आज भी अपने परिवारों में किस तरीके से अपमान और तिरस्कार सहना पड़ता है, ये इस फिल्म में दिखाया गया है। आनंद एल रॉय की ये फिल्म कहीं न कहीं इस बात को साबित करने में सफल होती है कि सिर्फ काननू से बात नहीं बनेगी, बल्कि इस मुद्दे के लिए सामाजिक तौर पर भी लड़ना होगा।
