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Pakistan Politics: सत्ता में परिवर्तन का पाकिस्तानी मीडिया ने किया स्वागत, कहा- देश के स्तंभों के बीच टकराव टला

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Sun, 10 Apr 2022 07:47 PM IST

सार

‘डॉन’ ने अपने संपादकीय लेख में कहा कि शनिवार देर रात एक वक्त ऐसा लगा मानो देश की सभी संस्थाओं के बीच विनाशकारी टकराव हो रहा है। यह आपदा देश को उच्चतम स्तरों पर चोट पहुंचाने के लिए तैयार खड़ी नजर आ रही थी। पढ़िए पाकिस्तान के बाकी प्रमुख मीडिया संगठनों ने इस राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर क्या लिखा।

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पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का यहां की मीडिया ने स्वागत किया है। देश के मुख्य समाचार संगठनों ने रविवार को कहा कि इससे देश के मुख्य स्तंभों के बीच एक विनाशकारी टकराव टाल गया है। यहां के अधिकांश अखबारों ने नेशनल असेंबली में इमरान खान और उनकी पार्टी की ओर से की गई कोशिशों की आलोचना की और अपनी पहली सियासी पारी में ही रन आउट होने वाले इमरान खान की सत्ता से रवानगी का स्वागत किया। इमरान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान को रोकने के सरकार के प्रयासों के बावजूद संयुक्त विपक्ष उन्हें बाहर करने में सफल रहा। देश की 342 सदस्यीय नेशनल असेंबली के 174 सदस्यों ने उनके खिलाफ मतदान किया।

कई दिनों के नाटकीय घटनाक्रम के आखिरकार शनिवार देर रात इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार को अविश्वास प्रस्ताव में शिकस्त का सामना करना पड़ा। मतदान आधी रात को हुआ और इससे पहले खान की अल्पमत सरकार ने विपक्षी दलों द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव को रोकने की पूरी कोशिश की। इमरान खान के खिलाफ शनिवार की रात हुए अविश्वास प्रस्ताव के बाद उनकी सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी। इमरान ने बहुत कोशिश की थी कि यह अविश्वास प्रस्ताव टल जाए लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शनिवार की रात को इस पर मतदान हुआ और पाकिस्तान में नई सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया।

संसदीय प्रक्रिया को तमाशे में तब्दील करना चाहते थे इमरान: डॉन
पाकिस्तान के प्रमुख अखबार ‘डॉन’ एक संपादकीय लेख में कहा, ‘कल (शनिवार) देर रात एक वक्त ऐसा लगा मानो देश की सभी संस्थाओं के बीच विनाशकारी टकराव हो रहा है। यह आपदा देश को उच्चतम स्तरों पर चोट पहुंचाने के लिए तैयार खड़ी नजर आ रही थी।’ ‘बैक टू पवेलियन’ शीर्षक वाले संपादकीय में अखबार ने कहा, ‘सत्ता जाना निश्चित होने के बावजूद इमरान खान न्यायपालिका और सेना प्रमुखों के साथ पूरी विधायिका के प्रमुखों को ‘आखिरी गेंद’ खेलने के लिए मजबूर करके सामान्य संसदीय प्रक्रिया को तमाशे में तब्दील करना चाह रहे थे।’

‘इमरान खान और उनकी पार्टी गरिमापूर्ण व्यवहार कर सकते थे’
‘द न्यूज इंटरनेशनल’ ने इस पूरे घटनाक्रम पर अपने संपादकीय में कहा कि यह सब अलग तरीके से हो सकता था। इसने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट की ओर से दखल दिया गया और फिर एक अराजक दिन सुप्रीम कोर्ट और इस्लामाबाद हाईकोर्ट के दरवाजे देर रात खोले गए। दुर्भाग्य से पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने प्रक्रियाओं और संस्थाओं के प्रति सम्मान नहीं प्रकट करते हुए जिस तरह अपना शासन चलाया, यह उसका सटीक प्रतिबिंब है।’ इसमें आगे कहा गया कि इमरान शनिवार सुबह नेशनल असेंबली के सत्र में शामिल हो सकते थे। असेंबली के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन कर सकते थे और अविश्वास प्रस्ताव के लिए मतदान करवा सकते थे।

अखबार ने ‘इमरान सत्ता से बेदखल’ शीर्षक वाले संपादकीय में लिखा कि सत्ताधारी पार्टी और उसके शीर्ष नेता (इमरान खान) सरकार से बाहर होने से पहले कुछ गरिमापूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन कर सकते थे। लेकिन, सरकार के पिछले लगभग चार साल के कामकाज की तरह पीटीआई और इमरान ने नेशनल असेंबली के सत्र को स्थगित करने और अविश्वास प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ने देने का फैसला किया। अखबार ने कहा, ‘देश में लगातार लोकतांत्रिक बदलाव के लिए इतने लंबे संघर्ष के बाद एक राजनेता को इन हथकंडों का सहारा लेते देखना, संविधान का अपमान करना और अविश्वास प्रस्ताव की अनुमति नहीं देना निराशाजनक था।’

‘सरकार की ओर से मतदान की देरी अदालत की अवमानना जैसी’
इसके अलावा, ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ अखबार ने अपने संपादकीय में कहा कि दिन भर की कार्यवाही के दौरान विपक्ष के लगातार याद दिलाने के बावजूद इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान नहीं कराया गया। सरकार की ओर से देरी करने की रणनीति न केवल अदालत की अवमानना के समान थी, बल्कि राजनीतिक रूप से अराजकता का माहौल बनाने की कोशिश करने जैसी थी। बता दें कि इमरान खान के सत्ता से बाहर होने के बाद संयुक्त विपक्ष ने शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है। वहीं, पीटीआई ने पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को अपना प्रधानमंत्री पद के लिए प्रत्याशी घोषित किया है।

विस्तार

पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का यहां की मीडिया ने स्वागत किया है। देश के मुख्य समाचार संगठनों ने रविवार को कहा कि इससे देश के मुख्य स्तंभों के बीच एक विनाशकारी टकराव टाल गया है। यहां के अधिकांश अखबारों ने नेशनल असेंबली में इमरान खान और उनकी पार्टी की ओर से की गई कोशिशों की आलोचना की और अपनी पहली सियासी पारी में ही रन आउट होने वाले इमरान खान की सत्ता से रवानगी का स्वागत किया। इमरान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान को रोकने के सरकार के प्रयासों के बावजूद संयुक्त विपक्ष उन्हें बाहर करने में सफल रहा। देश की 342 सदस्यीय नेशनल असेंबली के 174 सदस्यों ने उनके खिलाफ मतदान किया।

कई दिनों के नाटकीय घटनाक्रम के आखिरकार शनिवार देर रात इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार को अविश्वास प्रस्ताव में शिकस्त का सामना करना पड़ा। मतदान आधी रात को हुआ और इससे पहले खान की अल्पमत सरकार ने विपक्षी दलों द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव को रोकने की पूरी कोशिश की। इमरान खान के खिलाफ शनिवार की रात हुए अविश्वास प्रस्ताव के बाद उनकी सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी। इमरान ने बहुत कोशिश की थी कि यह अविश्वास प्रस्ताव टल जाए लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शनिवार की रात को इस पर मतदान हुआ और पाकिस्तान में नई सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया।

संसदीय प्रक्रिया को तमाशे में तब्दील करना चाहते थे इमरान: डॉन

पाकिस्तान के प्रमुख अखबार ‘डॉन’ एक संपादकीय लेख में कहा, ‘कल (शनिवार) देर रात एक वक्त ऐसा लगा मानो देश की सभी संस्थाओं के बीच विनाशकारी टकराव हो रहा है। यह आपदा देश को उच्चतम स्तरों पर चोट पहुंचाने के लिए तैयार खड़ी नजर आ रही थी।’ ‘बैक टू पवेलियन’ शीर्षक वाले संपादकीय में अखबार ने कहा, ‘सत्ता जाना निश्चित होने के बावजूद इमरान खान न्यायपालिका और सेना प्रमुखों के साथ पूरी विधायिका के प्रमुखों को ‘आखिरी गेंद’ खेलने के लिए मजबूर करके सामान्य संसदीय प्रक्रिया को तमाशे में तब्दील करना चाह रहे थे।’

‘इमरान खान और उनकी पार्टी गरिमापूर्ण व्यवहार कर सकते थे’

‘द न्यूज इंटरनेशनल’ ने इस पूरे घटनाक्रम पर अपने संपादकीय में कहा कि यह सब अलग तरीके से हो सकता था। इसने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट की ओर से दखल दिया गया और फिर एक अराजक दिन सुप्रीम कोर्ट और इस्लामाबाद हाईकोर्ट के दरवाजे देर रात खोले गए। दुर्भाग्य से पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने प्रक्रियाओं और संस्थाओं के प्रति सम्मान नहीं प्रकट करते हुए जिस तरह अपना शासन चलाया, यह उसका सटीक प्रतिबिंब है।’ इसमें आगे कहा गया कि इमरान शनिवार सुबह नेशनल असेंबली के सत्र में शामिल हो सकते थे। असेंबली के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन कर सकते थे और अविश्वास प्रस्ताव के लिए मतदान करवा सकते थे।

अखबार ने ‘इमरान सत्ता से बेदखल’ शीर्षक वाले संपादकीय में लिखा कि सत्ताधारी पार्टी और उसके शीर्ष नेता (इमरान खान) सरकार से बाहर होने से पहले कुछ गरिमापूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन कर सकते थे। लेकिन, सरकार के पिछले लगभग चार साल के कामकाज की तरह पीटीआई और इमरान ने नेशनल असेंबली के सत्र को स्थगित करने और अविश्वास प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ने देने का फैसला किया। अखबार ने कहा, ‘देश में लगातार लोकतांत्रिक बदलाव के लिए इतने लंबे संघर्ष के बाद एक राजनेता को इन हथकंडों का सहारा लेते देखना, संविधान का अपमान करना और अविश्वास प्रस्ताव की अनुमति नहीं देना निराशाजनक था।’

‘सरकार की ओर से मतदान की देरी अदालत की अवमानना जैसी’

इसके अलावा, ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ अखबार ने अपने संपादकीय में कहा कि दिन भर की कार्यवाही के दौरान विपक्ष के लगातार याद दिलाने के बावजूद इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान नहीं कराया गया। सरकार की ओर से देरी करने की रणनीति न केवल अदालत की अवमानना के समान थी, बल्कि राजनीतिक रूप से अराजकता का माहौल बनाने की कोशिश करने जैसी थी। बता दें कि इमरान खान के सत्ता से बाहर होने के बाद संयुक्त विपक्ष ने शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है। वहीं, पीटीआई ने पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को अपना प्रधानमंत्री पद के लिए प्रत्याशी घोषित किया है।

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