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Nagaland Firing: अफ्स्पा हटाने के लिए एकजुट हुए पूर्वोत्तर के राज्य, नगालैंड व मेघालय के मुख्यमंत्री सहित तमाम सांसदों ने उठाई मांग

सार

नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने कहा, मैंने केंद्रीय गृह मंत्री से बात की है, वह मामले को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। हम केंद्र सरकार से नागालैंड से अफस्पा हटाने की मांग कर रहे हैं।

अफस्पा कानून सेना को विशेष शक्तियां देता है।
– फोटो : सोशल मीडिया

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नगालैंड में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में नागरिकों की मौत के बाद अफस्पा (आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट) हटाने की मांग को लेकर पूर्वोत्तर के राज्य एकजुट होते नजर आ रहे हैं। सोमवार को नगालैंड और मेघालय के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से अफस्पा हटाने की मांग की वहीं, संसद में भी केंद्र पर अफस्पा को हटाने को लेकर दबाव बढ़ रहा है।

नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने कहा, मैंने केंद्रीय गृह मंत्री से बात की है, वह मामले को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। हम केंद्र सरकार से नागालैंड से अफस्पा हटाने की मांग कर रहे हैं। इस कानून ने देश की छवि खराब की है। केंद्र ने प्रत्येक मृतक के परिवार को 11 लाख रुपये और राज्य सरकार ने मृतकों के परिवारों को 5-5 लाख रुपये की अनुग्रह राशि दी है। इसके साथ ही रियो ने बताया कि उन्होंने रविवार को ही घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश देते हुए एक विषेष जांच दल गठित कर दिया है।
वहीं, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनार्ड के संगमा ने सोमवार को कहा कि अब वक्त आ गया है कि पूर्वोत्तर से अफस्पा को हटा दिया जाए। भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चला रहे संगमा ने ट्वीट कर कहा कि पूर्वोत्तर से अफस्पा को हटाया जाना चाहिए। वहीं, मेघालय में विपक्ष के नेताओं ने भी इस मांग का समर्थन किया और कहा कि इस नागरिक समाज, कार्यकर्ता और राजनैतिक दल सभी वर्षों से पूर्वोत्तर से अफस्पा हटाने की मांग करते आ रहे हैं। कांग्रेस विधायक अम्परिन लिंगदोह ने संगमा के ट्वीट पर जवाब देते हुए लिखा कि हमें अपने लोगों पर इस कठोर उत्पीड़न को तत्काल निरस्त करने की मांग करने के लिए साथ आना चाहिए। कृपया जल्द से जल्द एक परामर्श बैठक बुलाएं।

वहीं, लोकसभा में नगालैंड से नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के सांसद टी येप्थोमी ने सोमवार को गोलीबारी की घटना की जांच की मांग करते हुए कहा कि अफस्पा से सुरक्षा बलों को बिना सोच विचार के नागरिकों पर गोली चलाने का अधिकार नहीं मिलता है।

खासी छात्र संघ (केएसयू) ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भारत सरकार को राक्षसी अफ्सपा को तुरंत रद्द करना चाहिए और इसके बजाय पूर्वोत्तर भारत के मूल निवासियों के अधिकारों और अस्तित्व की रक्षा और सुरक्षा के लिए कानून बनाना चाहिए।ऽ केएसयू अध्यक्ष लम्बोक मारंगर ने कहा कि सरकार को मोन में नागरिकों की मौत के लिए जिम्मेदारों को सख्त सजा देनी चाहिए।
ओवैसी ने रखा स्थगन प्रस्ताव
एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने नगालैंड की घटना पर चर्चा के लिए लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव रखा। ओवैसी ने अपने प्रस्ताव में कहा वे नगालैंड की घटना पर चर्चा करने के लिए सदन के कार्य को स्थगित करने का प्रस्ताव रखते हैं, यह तत्काल सार्वजनिक महत्व का मामला है, क्योंकि सीधे भारतीय नागरिकों की स्वतंत्रता से जुड़ा है। ओवैसी के अलावा विपक्ष के कई अन्य सदस्यों ने भी संसद के दोनों सदनों में इस घटना पर चर्चा का प्रस्ताव रखा। डीएमके सांसद टीआर बालू, जेडीयू के राजीव सिंह रंजन, एनसीपी की सांसद सुप्रिया सुले ने भी संसद में घटना पर रोष जताया और गृह मंत्री से जवाब मांगा।

इन्होंने भी उठाई आवाज

1. सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के देश से भावनात्मक तौर पर जुड़े रहना जरूरी है। घटना की उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के नेतृत्व में निष्पक्ष न्यायिक जांच होनी चाहिए। दोषियों को अफ्सपा के तहत राहत नहीं दी जानी चाहिए।
– मनीष तिवारी, कांग्रेस, सांसद

2. सुरक्षा बलों के हाथों से भारतीयों की मौत की जितनी निंदा की जाए उतना कम है। आखिर निहत्थे लोगों को उग्रवादी कैसे समझा जा सकता है।
– गौरव गोगोई, कांग्रेस सांसद 

3.  नगालैंड में अफ्सपा के कार्यान्वयन पर एक निगरानी तंत्र की बनाया जाना चाहिए। घटना में शामिल सभी दोषियों की गिरफ्तार की जाए।
– प्रद्युत बोरदोलोई, कांग्रेस सांसद 

4. नागालैंड में स्थिति को और खराब नहीं होनी चाहिए। मृतकों के परिजनों को अधिकत अनुग्रह राशि दी जाए।
–  सुदीप बंद्योपाध्याय, टीएमसी सांसद 

5. यह आश्चर्यजनक है, आखिर खुफिया एजेंसियां इस तरह गलत  जानकारियां कैसे दे सकती हैं।
– विनायक राउत, शिव सेना सांसद

6. दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए, लेकिन ध्यान रखें कि सशस्त्र बलों का मनोबल भी कम नही हो। 
-पीवी मिधुन रेड्डी, वाईएससीआरपी सांसद 
 
क्या है अफस्पा?
यह एक कानून है, जो भारतीय सुरक्षा बलों को देश में युद्ध जैसी स्थिति बनने पर अशांत क्षेत्रों में शांति व कानून-व्यवस्था बहान करने के लिए विशेष शक्तियां देता है। इसे 1958 में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अध्यादेश के तौर पर पेश किया गया था, बाद में इसी वर्ष संसद ने कानून के तौर पर पारित कर दिया था।

कब होता है लागू?
जब किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश का राज्यपाल केंद्र सरकार को क्षेत्र में शांति व स्थिरता बहाल करने के लिए सेना भेजने की मांग करता है। असल में अफस्पा अधिनियम की धारा तीन के तहत राज्यपालों को यह शक्ति दी गई है कि वे भारत सरकार को राजपत्र पर आधिकारिक अधिसूचना जारी राज्य के असैन्य क्षेत्रों में सशस्त्र बलों को भेजने की सिफारिश कर सकते हैं।

अशांति की घोषणा
राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर जब केंद्र सरकार मान ले कि किसी राज्य में आतंकवाद, हिंसा, अलगाववाद जैसे कारणों से स्थानीय पुलिस व अर्द्धसैनिक बल शांति व स्थिरता बनाए रखने में असमर्थ है, तो उस उस राज्य या क्षेत्र को अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 के मुताबिक अशांत घोषित कर दिया जाता है। इसके बाद न्यूनतम तीन माह के लिए यथास्थिति बनाए रखनी होगी।
सशस्त्र बलों को मिलती हैं ये शक्तियां

1. संदेह के आधार पर बिना वारंट के तलाशी लेना
2.  खतरा होने पर किसी स्थान को नष्ट करना
3. कानून तोड़ने वाले पर गोली चलाना
4. बिना वारंट के गिरफ्तार करना
5. वाहनों को तलाशी लेना    

कब-कब कहां लागू हुआ?

1958 – मणिपुर और असम

1972 – असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नगालैंड

1983- पंजाब एवं चंडीगढ़

1990- जम्मू-कश्मीर

फिलहाल यहां लागू हैं अफस्पा

पूर्वोत्तर में असम, नगालैंड, मणिपुर (इंफाल नगर परिषद क्षेत्र को छोड़कर), अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग, लोंगडिंग, तिरप जिलों और असम सीमा पर मौजूद आठ पुलिस थाना क्षेत्रों में अफस्पा लागू है।
 

विस्तार

नगालैंड में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में नागरिकों की मौत के बाद अफस्पा (आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट) हटाने की मांग को लेकर पूर्वोत्तर के राज्य एकजुट होते नजर आ रहे हैं। सोमवार को नगालैंड और मेघालय के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से अफस्पा हटाने की मांग की वहीं, संसद में भी केंद्र पर अफस्पा को हटाने को लेकर दबाव बढ़ रहा है।

नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने कहा, मैंने केंद्रीय गृह मंत्री से बात की है, वह मामले को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। हम केंद्र सरकार से नागालैंड से अफस्पा हटाने की मांग कर रहे हैं। इस कानून ने देश की छवि खराब की है। केंद्र ने प्रत्येक मृतक के परिवार को 11 लाख रुपये और राज्य सरकार ने मृतकों के परिवारों को 5-5 लाख रुपये की अनुग्रह राशि दी है। इसके साथ ही रियो ने बताया कि उन्होंने रविवार को ही घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश देते हुए एक विषेष जांच दल गठित कर दिया है।

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