सार
वाजपेयी हिंदू धर्म के सार को समझा सकते थे। वे हिंदुत्व के समर्थक रहे और हिंदुत्व की व्यापक परिकल्पना करते थे। उनके नरम हिंदुत्व का राज क्या था, जो कभी-कभी भाजपा और संघ को उलझन में डाल देता था।
अमर उजाला अखबार पढ़ते अटल बिहारी वाजपेयी (फाइल)
– फोटो : अमर उजाला
राहुल गांधी हिंदुत्व के मुद्दे पर लगातार भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साध रहे हैं। हाल ही में जयपुर में हुई कांग्रेस की महंगाई रैली में उन्होंने यह मुद्दा उठाया और कमोबेश हर दिन कुछ न कुछ आरोप मढ़ रहे हैं। पांच राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं। ऐसे में हिंदुत्व को लेकर राहुल गांधी ने एक बार फिर नई बहस खड़ी कर दी है।
भारतीय राजनीति में हिंदुत्व ऐसा विषय है जिस पर हमेशा राजनीति होती रही है और हिंदुत्व की सियासत में भाजपा किसी भी और पार्टी से बहुत आगे निकल चुकी है। भाजपा की देखादेखी इस चुनाव में कांग्रेस और सपा समेत अधिकांश मुख्यधारा की पार्टियां हिंदुओं को लुभाने की कोशिश कर रही हैं और वे भी हिंदुत्व के रास्ते पर निकल गई है, लेकिन कहा जाता है कि भाजपा के हिंदुत्व के आगे किसी का हिंदुत्व टिक नहीं सकता। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इस पार्टी में रहते हुए भी हिंदुत्व को लेकर अलग लाईन लेते रहे और उनके हिंदुत्व को लेकर लोगों में वैसा भाव नहीं रहा जैसा कि भाजपा के अन्य नेताओं को लेकर है। शनिवार को अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है। इस मौके पर हम हिंदुत्व को लेकर दिए उनके विचारों को एक बार फिर याद कर रहे हैं।
दरअसल वाजपेयी की छवि सेक्युलर नेता की रही। इस बात को समझने के लिए सबसे पहले चलिए वाजपेयी के बचपन में। जब वे दसवीं कक्षा में थे तब उन्होंने एक कविता लिखी थी, जो इस प्रकार थी।
हिंदू तन मन
हिंदू जीवन रग-रग
हिंदू मेरा परिचय
इसी सिलसिले में एक बार पुणे में दिया उनका भाषण का जिक्र करना भी जरूरी है। ‘मैं हिन्दू हूं, ये मैं कैसे भूल सकता हूं? किसी को भूलना भी नहीं चाहिए। मेरा हिंदुत्व सीमित नहीं हैं। संकुचित नहीं हैं मेरा हिंदुत्व हरिजन के लिए मंदिर के दरवाजे बंद नहीं कर सकता है। मेरा हिन्दुत्त्व अंतरजातीय, अंतरप्रांतीय और अंतरराष्ट्रीय विवाहों का विरोध नहीं करता है। हिंदुत्व बहुत विशाल है’।
वाजपेयी के हिंदू धर्म को समझने के तरीके पर बहुत से लोग कुछ न कुछ विवाद करते रहे हैं। कई बार कहा गया कि खासतौर से संघ की विचारधार और वाजपेयी की सोचसमझ में मेल नहीं है। वाजपेयी सनातनी हिंदू तो रहे लेकिन हिंदू धर्म के मर्म को समझने और समझाने की प्रतिभा उनमें खूब थी। वे हिंदू धर्म को जीवन की एक विशिष्ट पद्धति और शैली मानते थे।
हिंदू धर्म पर लिखे निबंध में क्या कहा था
हिंदू धर्म पर एक निबंध में उन्होंने लिखा- हिंदू धर्म के प्रति मेरे आकर्षण का सबसे मुख्य कारण यह है कि यह मानव का सर्वोत्मकृष्ट धर्म है। हिंदू धर्म न तो किसी एक पुरस्तक से जुड़ा है और न ही किसी एक धर्म प्रवर्तक से, जो कालगति के साथ असंगत हो जाते हैं। हिंदू धर्म का स्वरूप हिंदू समाज द्वारा निर्मित होता है और यही कारण है कि यह धर्म युग युगांतर से संवर्धित और पुष्पित होता आ रहा है।
जनेऊ मुझे अलग बनाता था
वाजपेयी पर लिखी एक किताब में इस बात का जिक्र है कि एक बार वाजपेयी ने कहा था ‘आपको मालूम है जब मैं संघ के लिए पूरा समय देने के लिए निकला, उस समय तक मैं जनेऊ पहनता था। बाद में मैंने जनेऊ उतार दिया क्योंकि मुझे लगा कि यह जनेऊ मुझे अन्य हिंदूओं से अलग करता है। पहले शिखा और सूत्र हिंदू की दो पहचाने थीं। अब बहुत से लोग चोटी नहीं रखते। इस पर ये कहना है कि उन्होंने हिंदुत्व छोड़ दिया है, ठीक नहीं है। हां जब चोटी जबरदस्ती काटी जा रही थी तो उसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य था।’
दिसंबर 1992 में डॉ राजेंद्र प्रसाद व्याख्यानमाला में सेक्युलरिज्म पर दिया उनका भाषण काफी अहम माना जाता है। वाजपेयी सेक्युलरिज्म की पश्चिमी अवधारणा को स्वीकार नहीं करते, लेकिन वे गांधी के सर्वधर्म सम्भाव को मानते हैं। धर्म की व्याख्या करते हुए वाजपेयी ने कहा-धर्म और रिलीजन के अंतर को समझना चाहिए। रिलीजन का संबंध कुछ निश्चित आस्थाओं से होता है, जब तक व्यक्ति उन आस्थाओं को मानता है तब तक वह उस रिलीजन या मजहब का सदस्य बना रहता है और ज्योंहि वह उन आस्थाओं को छोड़ता है वह उस रिलीजन से बहिष्कृत हो जाता है। लेकिन धर्म केवल आस्थाओं पर आधारित नहीं है।
हालांकि संघ की विचारधारा से अलग होने के सवाल पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने एक बार कहा ‘ यह किसी को भ्रम नहीं होना चाहिए कि वाजपेयी संघ के रास्ते से अलग चलने वाले लोगों में से थे। जो व्यक्ति संघ के मुखपत्र पाञ्चजन्य का संपादक रहे हों उनके बारे में संघ की विचारधारा से अलग होने की बात सोचनी भी नहीं चाहिए, लेकिन वाजपेयी की भलमनसाहत, काबिलियत और विशाल ह्दय के व्यवहार से विरोधी बी उनसे आकर्षित होते रहे हैं।’
अल्पसंख्यकों पर उनकी राय
वाजपेयी पर लिखी एक किताब में इस बात का जिक्र है कि वाजपेयी कहते थे कि भारत में उपासना पद्धति के आधार पर कभी किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं किया गया। वाजपेयी का हमेशा कहना रहा कि अल्पसंख्यकों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ना होगा, वरना वे घाटे में रहेंगे। न केवल भाजपा बनने के बाद, बल्कि उससे पहले जनसंघ के वक्त भी वे मुसलमानों को लेकर, उनको साथ लेकर चलने पर अपनी राय जाहिर करते रहे।
जनसंघ के अध्यक्ष के तौर पर एक बार वाजपेयी ने कहा था-जनसंघ सभी भारतीयों को एक मानता है और उन्हें हमेशा के लिए बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के तौर पर बांटने का विरोधी है। लोकतंत्र में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक का निर्णय राजनीति के आधार पर होता है, मजहब, भाषा या जाति के आधार पर नहीं।
विस्तार
राहुल गांधी हिंदुत्व के मुद्दे पर लगातार भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साध रहे हैं। हाल ही में जयपुर में हुई कांग्रेस की महंगाई रैली में उन्होंने यह मुद्दा उठाया और कमोबेश हर दिन कुछ न कुछ आरोप मढ़ रहे हैं। पांच राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं। ऐसे में हिंदुत्व को लेकर राहुल गांधी ने एक बार फिर नई बहस खड़ी कर दी है।
भारतीय राजनीति में हिंदुत्व ऐसा विषय है जिस पर हमेशा राजनीति होती रही है और हिंदुत्व की सियासत में भाजपा किसी भी और पार्टी से बहुत आगे निकल चुकी है। भाजपा की देखादेखी इस चुनाव में कांग्रेस और सपा समेत अधिकांश मुख्यधारा की पार्टियां हिंदुओं को लुभाने की कोशिश कर रही हैं और वे भी हिंदुत्व के रास्ते पर निकल गई है, लेकिन कहा जाता है कि भाजपा के हिंदुत्व के आगे किसी का हिंदुत्व टिक नहीं सकता। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इस पार्टी में रहते हुए भी हिंदुत्व को लेकर अलग लाईन लेते रहे और उनके हिंदुत्व को लेकर लोगों में वैसा भाव नहीं रहा जैसा कि भाजपा के अन्य नेताओं को लेकर है। शनिवार को अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है। इस मौके पर हम हिंदुत्व को लेकर दिए उनके विचारों को एक बार फिर याद कर रहे हैं।
दरअसल वाजपेयी की छवि सेक्युलर नेता की रही। इस बात को समझने के लिए सबसे पहले चलिए वाजपेयी के बचपन में। जब वे दसवीं कक्षा में थे तब उन्होंने एक कविता लिखी थी, जो इस प्रकार थी।
हिंदू तन मन
हिंदू जीवन रग-रग
हिंदू मेरा परिचय
आगे पढ़ने के लिए लॉगिन या रजिस्टर करें
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ रजिस्टर्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
Source link
Share this:
-
Click to share on Facebook (Opens in new window)
-
Like this:
Like Loading...