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हुन सेन और म्यांमार के सैनिक शासक की मुलाकात: चीन के इशारे पर चल रहे हैं कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, यंगून
Published by: अजय सिंह
Updated Sun, 09 Jan 2022 03:29 PM IST

सार

जानकारों के मुताबिक हालांकि आसियान में सभी फैसले आम सहमति से होते हैं, लेकिन अध्यक्ष के पास इस समूह की दिशा को प्रभावित करने की काफी ताकत रहती है।

कंडोबिया के प्रधानमंत्री हुन सेन
– फोटो : Agency (File Photo)

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अंतरराष्ट्रीय सहमति को तोड़ते हुए कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन ने यहां म्यांमार के सैनिक शासक मिन आंग हलायंग से मुलाकात की। इस तरह पिछले साल एक फरवरी को म्यांमार में सैनिक तख्ता पलट के बाद वे पहले विदेशी नेता बने हैं, जिन्होंने हयालंग से सीधे हाथ मिलाया। उसके बाद दोनों के बीच 140 मिनट तक बातचीत हुई। गौरतलब है कि कंबोडिया इस समय दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान का अध्यक्ष भी है।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि हुन सेन की इस यात्रा से म्यांमार के सैनिक शासकों को अंतरराष्ट्रीय वैधता मिलने की शुरुआत हो सकती है। जानकारों ने ध्यान दिलाया है कि हुन सेन हमेशा से चीन के करीबी रहे हैं। पिछली बार जब आसियान की अध्यक्षता कंबोडिया को मिली थी, तब ऐसा पहली बार हुआ, जब दक्षिण चीन सागर विवाद को लेकर साझा वक्तव्य पर सहमति नहीं बन सकी थी। तब हुन सेन ने आसियान में दक्षिण चीन सागर विवाद पर बहस भी नहीं होने दी थी, जिससे फिलीपीन्स और वियतनाम जैसे देश काफी नाराज हुए थे। 

हुन सेन की म्यांमार यात्रा को पर्यवेक्षकों ने इस बात का संकेत माना है कि हुन सेन इस बार भी चीन के हितों को आगे बढ़ा रहे हैँ। म्यांमार में सैनिक तख्ता पलट के बावजूद चीन ने म्यांमार से अपने संबंध नहीं तोड़े हैँ। बल्कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसने रूस के साथ मिल कर पश्चिमी देशों की तरफ से लाए गए सैनिक तख्ता पलट विरोधी प्रस्तावों को पारित नहीं होने दिया है।

आसियान की अध्यक्षता बारी-बारी से सभी सदस्य देशों को मिलती है। कंबोडिया पिछली बार 2012 में अध्यक्ष बना था। इस बार फिर उसके अध्यक्ष बनने पर ये आशंका पैदा हुई कि इस समूह में विवाद खड़े हो सकते हैँ। बताया जाता है कि इसे देखते हुए इंडोनेशिया ने विवाद टालने की कूटनीतिक पहल की। इंडोनेशिया और फिलीपीन्स ने इस बात पर जोर डाला है कि म्यांमार के मामले में आसियन को एकजुट कदम उठाना चाहिए।

जानकारों के मुताबिक हालांकि आसियान में सभी फैसले आम सहमति से होते हैं, लेकिन अध्यक्ष के पास इस समूह की दिशा को प्रभावित करने की काफी ताकत रहती है। हालांकि अध्यक्ष अपने देश का शासन प्रमुख होने के नाते विभिन्न देशों की यात्राएं करता या बयान जारी करता है, लेकिन उसे अक्सर आसियान की राय से भी जोड़ कर देखने का चलन रहा है। आसियान की बैठकों का एजेंडा तय करने में भी अध्यक्ष की खास भूमिका होती है।

अपने उसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए हुन सेन ने 2012 में दक्षिण चीन सागर विवाद को चर्चा के एजेंडे में नहीं रखा था। कंबोडिया में चीन ने भारी निवेश कर रखा है। हुन सेन कम्युनिस्ट विचारों वाले नेता रहे हैं। इस कारण भी उनकी चीन से निकटता रही है। ज्यादातर क्षेत्रीय विवादों पर उनका रुख कई आसियान देशों के खिलाफ और चीन के करीब रहा है।

हुन सेन पहले से म्यांमार के सैनिक शासकों से संवाद बनाने की वकालत करते रहे हैं। अब आसियान का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने म्यांमार की यात्रा की है। इस दौरान उन्होंने आसियान की ‘पांच सूत्री सहमति’ का उल्लंघन किया है, जिसके तहत म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली और मानव अधिकारों का हनन रोकने की मांग की गई थी।

विस्तार

अंतरराष्ट्रीय सहमति को तोड़ते हुए कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन ने यहां म्यांमार के सैनिक शासक मिन आंग हलायंग से मुलाकात की। इस तरह पिछले साल एक फरवरी को म्यांमार में सैनिक तख्ता पलट के बाद वे पहले विदेशी नेता बने हैं, जिन्होंने हयालंग से सीधे हाथ मिलाया। उसके बाद दोनों के बीच 140 मिनट तक बातचीत हुई। गौरतलब है कि कंबोडिया इस समय दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान का अध्यक्ष भी है।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि हुन सेन की इस यात्रा से म्यांमार के सैनिक शासकों को अंतरराष्ट्रीय वैधता मिलने की शुरुआत हो सकती है। जानकारों ने ध्यान दिलाया है कि हुन सेन हमेशा से चीन के करीबी रहे हैं। पिछली बार जब आसियान की अध्यक्षता कंबोडिया को मिली थी, तब ऐसा पहली बार हुआ, जब दक्षिण चीन सागर विवाद को लेकर साझा वक्तव्य पर सहमति नहीं बन सकी थी। तब हुन सेन ने आसियान में दक्षिण चीन सागर विवाद पर बहस भी नहीं होने दी थी, जिससे फिलीपीन्स और वियतनाम जैसे देश काफी नाराज हुए थे। 

हुन सेन की म्यांमार यात्रा को पर्यवेक्षकों ने इस बात का संकेत माना है कि हुन सेन इस बार भी चीन के हितों को आगे बढ़ा रहे हैँ। म्यांमार में सैनिक तख्ता पलट के बावजूद चीन ने म्यांमार से अपने संबंध नहीं तोड़े हैँ। बल्कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसने रूस के साथ मिल कर पश्चिमी देशों की तरफ से लाए गए सैनिक तख्ता पलट विरोधी प्रस्तावों को पारित नहीं होने दिया है।

आसियान की अध्यक्षता बारी-बारी से सभी सदस्य देशों को मिलती है। कंबोडिया पिछली बार 2012 में अध्यक्ष बना था। इस बार फिर उसके अध्यक्ष बनने पर ये आशंका पैदा हुई कि इस समूह में विवाद खड़े हो सकते हैँ। बताया जाता है कि इसे देखते हुए इंडोनेशिया ने विवाद टालने की कूटनीतिक पहल की। इंडोनेशिया और फिलीपीन्स ने इस बात पर जोर डाला है कि म्यांमार के मामले में आसियन को एकजुट कदम उठाना चाहिए।

जानकारों के मुताबिक हालांकि आसियान में सभी फैसले आम सहमति से होते हैं, लेकिन अध्यक्ष के पास इस समूह की दिशा को प्रभावित करने की काफी ताकत रहती है। हालांकि अध्यक्ष अपने देश का शासन प्रमुख होने के नाते विभिन्न देशों की यात्राएं करता या बयान जारी करता है, लेकिन उसे अक्सर आसियान की राय से भी जोड़ कर देखने का चलन रहा है। आसियान की बैठकों का एजेंडा तय करने में भी अध्यक्ष की खास भूमिका होती है।

अपने उसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए हुन सेन ने 2012 में दक्षिण चीन सागर विवाद को चर्चा के एजेंडे में नहीं रखा था। कंबोडिया में चीन ने भारी निवेश कर रखा है। हुन सेन कम्युनिस्ट विचारों वाले नेता रहे हैं। इस कारण भी उनकी चीन से निकटता रही है। ज्यादातर क्षेत्रीय विवादों पर उनका रुख कई आसियान देशों के खिलाफ और चीन के करीब रहा है।

हुन सेन पहले से म्यांमार के सैनिक शासकों से संवाद बनाने की वकालत करते रहे हैं। अब आसियान का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने म्यांमार की यात्रा की है। इस दौरान उन्होंने आसियान की ‘पांच सूत्री सहमति’ का उल्लंघन किया है, जिसके तहत म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली और मानव अधिकारों का हनन रोकने की मांग की गई थी।

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