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सक्रिय हुआ इस्लामिक स्टेट: आतंकवाद के मोर्चे पर पाकिस्तान के सामने एक नई चुनौती

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 26 Mar 2022 05:33 PM IST

सार

जानकारों के मुताबिक आईएस-के का गठन 2015 में किया गया। इसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन आई की अफगान शाखा के रूप में बनाया गया। तब टीटीपी के पूर्व कमांडर हाफिज खान सईद को इसका अमीर (यानी प्रमुख) नियुक्त किया गया था। शुरुआत से ही इस संगठन ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान में स्थित ठिकानों को अपने निशाने पर रखा हुआ है….

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पाकिस्तान जिस समय सियासी उथल-पुथल में उलझा हुआ है, आतंकवाद के मोर्चे पर उसके सामने एक नई चुनौती खड़ी होने का संकेत है। तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) और बलूच अलगाववादियों के उग्रवादी हमलों से पहले से परेशान पाकिस्तान को अब आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है।

अब इस बात की पुष्टि हो गई है कि बीते चार और आठ मार्च को पाकिस्तान में हुए आतंकवादी हमलों को आईएस ने ही अंजाम दिया था। चार मार्च को पेशावर में आईएस के हमले में शिया समुदाय के 64 श्रद्धालु मारे गए थे। आठ मार्च को बलूचिस्तान प्रांत के सिबी शहर में आईएस के बम धमाके में सात सुरक्षाकर्मी मारे गए। ये सुरक्षाकर्मी पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के वहां होने वाले एक कार्यक्रम के सिलसिले में तैनात थे।

दोनों गुट पाकिस्तान में सक्रिय

चार मार्च के हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट- खोरासान (आईएस-के) ले ली। दूसरे हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान (आईएस-पी) ने ली। सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक ये दोनों गुट पाकिस्तान में सक्रिय हैं, इसकी जानकारी उन्हें है। लेकिन इनका अधिक प्रभाव देश के किस इलाके में है, इस बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं है।

एक बड़े सुरक्षा अधिकारी ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा- ‘पाकिस्तान ने अपने सुरक्षा साधनों को बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) और टीटीपी से मुकाबले में झोंक रखा है। तमाम आतंकवादी गुट जिस तरह अलग-अलग तरह के निशाने चुन रहे हैं, उससे पाकिस्तान के लिए उनका मुकाबला करना कठिन हो गया है।’ टीटीपी और बीएलए आम तौर पर सुरक्षा बलों को निशाना बनाते हैं। जबकि आईएस ने आम नागरिकों को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है।

शिया समुदाय के लोग निशाना

आईएस के काम करने के तरीकों को समझने के लिए निक्कई एशिया ने पोलैंड स्थित विशेषज्ञ प्रजेमिस्लाव लेसिंस्की से बात की। लेसिंस्की वॉरसॉ स्थित वॉर स्टडीज यूनिवर्सिटी में अफगान विशेषज्ञ हैं। उन्होंने कहा- ‘आईएस ऐसे निशाने चुनता है, जहां अधिक से अधिक लोग हताहत हो सकें। इसलिए यह अपेक्षा रखी जा सकती है कि पाकिस्तान में इस संगठन का मुख्य निशाना धार्मिक अल्पसंख्यक- खास कर शिया समुदाय के लोग होंगे। लेकिन वे ऐसे ठिकानों पर भी हमले कर सकते हैं, जिनका संबंध अफगान तालिबान से हो।’

जानकारों के मुताबिक आईएस-के का गठन 2015 में किया गया। इसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन आई की अफगान शाखा के रूप में बनाया गया। तब टीटीपी के पूर्व कमांडर हाफिज खान सईद को इसका अमीर (यानी प्रमुख) नियुक्त किया गया था। शुरुआत से ही इस संगठन ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान में स्थित ठिकानों को अपने निशाने पर रखा हुआ है। लेकिन असल में पाकिस्तान के अंदर उसने हमले इस साल जाकर ही शुरू किए हैं।

पाकिस्तान सरकार के एक अन्य अधिकारी ने निक्कई एशिया से कहा कि आईएस की हालिया गतिविधियों ने अब यह पाकिस्तान सरकार की मजबूरी बना दी है कि वह अफगान तालिबान से आतंकवाद विरोधी सहयोग बढ़ाए। अधिकारी ने कहा- ‘सरकार की समझ है कि अगर आईएस का अफगानिस्तान में खात्मा हो जाए, तो पाकिस्तान में हमले करने की उसकी क्षमता बहुत कमजोर हो जाएगी।’ आईएस-के ने अफगान तालिबान को भी अपने निशाने पर रखा हुआ है।

विस्तार

पाकिस्तान जिस समय सियासी उथल-पुथल में उलझा हुआ है, आतंकवाद के मोर्चे पर उसके सामने एक नई चुनौती खड़ी होने का संकेत है। तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) और बलूच अलगाववादियों के उग्रवादी हमलों से पहले से परेशान पाकिस्तान को अब आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है।

अब इस बात की पुष्टि हो गई है कि बीते चार और आठ मार्च को पाकिस्तान में हुए आतंकवादी हमलों को आईएस ने ही अंजाम दिया था। चार मार्च को पेशावर में आईएस के हमले में शिया समुदाय के 64 श्रद्धालु मारे गए थे। आठ मार्च को बलूचिस्तान प्रांत के सिबी शहर में आईएस के बम धमाके में सात सुरक्षाकर्मी मारे गए। ये सुरक्षाकर्मी पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के वहां होने वाले एक कार्यक्रम के सिलसिले में तैनात थे।

दोनों गुट पाकिस्तान में सक्रिय

चार मार्च के हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट- खोरासान (आईएस-के) ले ली। दूसरे हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान (आईएस-पी) ने ली। सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक ये दोनों गुट पाकिस्तान में सक्रिय हैं, इसकी जानकारी उन्हें है। लेकिन इनका अधिक प्रभाव देश के किस इलाके में है, इस बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं है।

एक बड़े सुरक्षा अधिकारी ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा- ‘पाकिस्तान ने अपने सुरक्षा साधनों को बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) और टीटीपी से मुकाबले में झोंक रखा है। तमाम आतंकवादी गुट जिस तरह अलग-अलग तरह के निशाने चुन रहे हैं, उससे पाकिस्तान के लिए उनका मुकाबला करना कठिन हो गया है।’ टीटीपी और बीएलए आम तौर पर सुरक्षा बलों को निशाना बनाते हैं। जबकि आईएस ने आम नागरिकों को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है।

शिया समुदाय के लोग निशाना

आईएस के काम करने के तरीकों को समझने के लिए निक्कई एशिया ने पोलैंड स्थित विशेषज्ञ प्रजेमिस्लाव लेसिंस्की से बात की। लेसिंस्की वॉरसॉ स्थित वॉर स्टडीज यूनिवर्सिटी में अफगान विशेषज्ञ हैं। उन्होंने कहा- ‘आईएस ऐसे निशाने चुनता है, जहां अधिक से अधिक लोग हताहत हो सकें। इसलिए यह अपेक्षा रखी जा सकती है कि पाकिस्तान में इस संगठन का मुख्य निशाना धार्मिक अल्पसंख्यक- खास कर शिया समुदाय के लोग होंगे। लेकिन वे ऐसे ठिकानों पर भी हमले कर सकते हैं, जिनका संबंध अफगान तालिबान से हो।’

जानकारों के मुताबिक आईएस-के का गठन 2015 में किया गया। इसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन आई की अफगान शाखा के रूप में बनाया गया। तब टीटीपी के पूर्व कमांडर हाफिज खान सईद को इसका अमीर (यानी प्रमुख) नियुक्त किया गया था। शुरुआत से ही इस संगठन ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान में स्थित ठिकानों को अपने निशाने पर रखा हुआ है। लेकिन असल में पाकिस्तान के अंदर उसने हमले इस साल जाकर ही शुरू किए हैं।

पाकिस्तान सरकार के एक अन्य अधिकारी ने निक्कई एशिया से कहा कि आईएस की हालिया गतिविधियों ने अब यह पाकिस्तान सरकार की मजबूरी बना दी है कि वह अफगान तालिबान से आतंकवाद विरोधी सहयोग बढ़ाए। अधिकारी ने कहा- ‘सरकार की समझ है कि अगर आईएस का अफगानिस्तान में खात्मा हो जाए, तो पाकिस्तान में हमले करने की उसकी क्षमता बहुत कमजोर हो जाएगी।’ आईएस-के ने अफगान तालिबान को भी अपने निशाने पर रखा हुआ है।

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