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श्रीलंका: राष्ट्रपति ने क्यों उछाला अपना कार्यकाल बढ़ाने का गुब्बारा?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कोलंबो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 11 Jan 2022 05:52 PM IST

सार

गोतबया राजपक्षे इस समय एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। देश की 225 सदस्यीय संसद में इस गठबंधन के पास 145 सदस्य हैं। उनमें 117 सदस्य राष्ट्रपति के नेतृत्व वाली श्रीलंका पोडुजना पेरामुना पार्टी के हैं। ऐसे में राजपक्षे अपने मनमाफिक प्रस्ताव संसद से पारित कराने की स्थिति में हैं…

गोटाबाया राजपक्षे
– फोटो : Agency (File Photo)

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क्या श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे अपना कार्यकाल बढ़ाने की तैयारी में हैं? ये सवाल उनकी ही एक टिप्पणी से चर्चित हुआ है। बीते हफ्ते मोनेरागला नाम की एक जगह पर एक समारोह के दौरान उन्होंने कहा- एक नौजवान ने मुझे पूछा कि मैं अपना कार्यकाल बढ़ाने के लिए जनमत संग्रह क्यों नहीं करवा लेता, क्योंकि कोरोना महामारी के कारण 2020 और 2021 में मुझे ठीक से काम करने का मौका नहीं मिला।

राष्ट्रपति पद का पिछला चुनाव नवंबर 2019 में हुआ था। 2015 में एक संविधान संशोधन के जरिए राष्ट्रपति का कार्यकाल छह साल कर दिया गया था। उस हिसाब से अगला चुनाव 2025 में होगा। लेकिन राष्ट्रपति की ताजा टिप्पणी से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि राजपक्षे अपना कार्यकाल दो साल बढ़ाने की इच्छा जता रहे हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजपक्षे ने संभवतया इस मुद्दे पर लोगों की संभावित प्रतिक्रिया का अंदाजा लगाने के लिए ये टिप्पणी की है।

वादे पूरा करने का दिया भरोसा

अखबार आईलैंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक समारोह में राष्ट्रपति ने लोगों की कठिनाइयों का जिक्र किया और कहा कि देश की असल हालत क्या है, देशवासियों इसे बताना सरकार का ही फर्ज है। राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने जो वादे पिछले चुनाव के समय किए थे, उन्हें वे पूरा करेंगे। इसी सिलसिले में उन्होंने अपने इस कार्यकाल के बचे तीन वर्षों का जिक्र किया और उस नौजवान की कथित टिप्पणी का जिक्र किया। श्रीलंका में अभी तक सिर्फ एक बार 1982 में जनमत संग्रह कराया गया है।

गोतबया राजपक्षे इस समय एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। देश की 225 सदस्यीय संसद में इस गठबंधन के पास 145 सदस्य हैं। उनमें 117 सदस्य राष्ट्रपति के नेतृत्व वाली श्रीलंका पोडुजना पेरामुना पार्टी के हैं। ऐसे में राजपक्षे अपने मनमाफिक प्रस्ताव संसद से पारित कराने की स्थिति में हैं।

श्रीलंका की आर्थिक मुश्किलों से घटी लोकप्रियता

श्रीलंका इस समय आर्थिक मुश्किलों में फंसा हुआ है, जिसका असर सरकार की लोकप्रियता पर पड़ने के संकेत हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार ने गैर जिम्मेदाराना ढंग से नीति संबंधी फैसले लिए हैं। विपक्षी नेताओं का कहना है कि अब हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि उन्हें सुधारना संभव नहीं रह गया है।

इस बीच राष्ट्रपति राजपक्षे ने विपक्ष पर जवाबी हमला बोल दिया है। पिछले हफ्ते दिए भाषण में उन्होंने विपक्षी दलों पर गैर जिम्मेदाराना रुख अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने इस इल्जाम का खंडन किया कि उनके शासनकाल में श्रीलंका पर विदेशी कर्ज बढ़ गया है। उन्होंने दावा किया कि पिछले राष्ट्रपति चुनाव के बाद श्रीलंका सरकार ने कोई विदेशी कर्ज नहीं लिया। लेकिन उनकी सरकार को पहले लिए गए कर्ज को चुकाना पड़ रहा है। इस मद में उसे हर साल 6.3 बिलियन डॉलर का भुगतान करना पड़ रहा है।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि श्रीलंका की आर्थिक मुसीबत का बड़ा कारण कोरोना महामारी है। इसकी वजह से पर्यटन उद्योग ठप हो गया। अब सरकार को उम्मीद है कि अगर इस साल हालात सुधरे तो चार लाख पर्यटक श्रीलंका आएंगे। उनसे श्रीलंका को 10 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी। अगर ऐसा हुआ तो श्रीलंका आर्थिक संकट से निकलने की स्थिति में होगा। लेकिन इसी बीच राजपक्षे की जनमत संग्रह संबंधी टिप्पणी ने नए कयासों को जन्म दे दिया है।

विस्तार

क्या श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे अपना कार्यकाल बढ़ाने की तैयारी में हैं? ये सवाल उनकी ही एक टिप्पणी से चर्चित हुआ है। बीते हफ्ते मोनेरागला नाम की एक जगह पर एक समारोह के दौरान उन्होंने कहा- एक नौजवान ने मुझे पूछा कि मैं अपना कार्यकाल बढ़ाने के लिए जनमत संग्रह क्यों नहीं करवा लेता, क्योंकि कोरोना महामारी के कारण 2020 और 2021 में मुझे ठीक से काम करने का मौका नहीं मिला।

राष्ट्रपति पद का पिछला चुनाव नवंबर 2019 में हुआ था। 2015 में एक संविधान संशोधन के जरिए राष्ट्रपति का कार्यकाल छह साल कर दिया गया था। उस हिसाब से अगला चुनाव 2025 में होगा। लेकिन राष्ट्रपति की ताजा टिप्पणी से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि राजपक्षे अपना कार्यकाल दो साल बढ़ाने की इच्छा जता रहे हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजपक्षे ने संभवतया इस मुद्दे पर लोगों की संभावित प्रतिक्रिया का अंदाजा लगाने के लिए ये टिप्पणी की है।

वादे पूरा करने का दिया भरोसा

अखबार आईलैंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक समारोह में राष्ट्रपति ने लोगों की कठिनाइयों का जिक्र किया और कहा कि देश की असल हालत क्या है, देशवासियों इसे बताना सरकार का ही फर्ज है। राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने जो वादे पिछले चुनाव के समय किए थे, उन्हें वे पूरा करेंगे। इसी सिलसिले में उन्होंने अपने इस कार्यकाल के बचे तीन वर्षों का जिक्र किया और उस नौजवान की कथित टिप्पणी का जिक्र किया। श्रीलंका में अभी तक सिर्फ एक बार 1982 में जनमत संग्रह कराया गया है।

गोतबया राजपक्षे इस समय एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। देश की 225 सदस्यीय संसद में इस गठबंधन के पास 145 सदस्य हैं। उनमें 117 सदस्य राष्ट्रपति के नेतृत्व वाली श्रीलंका पोडुजना पेरामुना पार्टी के हैं। ऐसे में राजपक्षे अपने मनमाफिक प्रस्ताव संसद से पारित कराने की स्थिति में हैं।

श्रीलंका की आर्थिक मुश्किलों से घटी लोकप्रियता

श्रीलंका इस समय आर्थिक मुश्किलों में फंसा हुआ है, जिसका असर सरकार की लोकप्रियता पर पड़ने के संकेत हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार ने गैर जिम्मेदाराना ढंग से नीति संबंधी फैसले लिए हैं। विपक्षी नेताओं का कहना है कि अब हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि उन्हें सुधारना संभव नहीं रह गया है।

इस बीच राष्ट्रपति राजपक्षे ने विपक्ष पर जवाबी हमला बोल दिया है। पिछले हफ्ते दिए भाषण में उन्होंने विपक्षी दलों पर गैर जिम्मेदाराना रुख अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने इस इल्जाम का खंडन किया कि उनके शासनकाल में श्रीलंका पर विदेशी कर्ज बढ़ गया है। उन्होंने दावा किया कि पिछले राष्ट्रपति चुनाव के बाद श्रीलंका सरकार ने कोई विदेशी कर्ज नहीं लिया। लेकिन उनकी सरकार को पहले लिए गए कर्ज को चुकाना पड़ रहा है। इस मद में उसे हर साल 6.3 बिलियन डॉलर का भुगतान करना पड़ रहा है।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि श्रीलंका की आर्थिक मुसीबत का बड़ा कारण कोरोना महामारी है। इसकी वजह से पर्यटन उद्योग ठप हो गया। अब सरकार को उम्मीद है कि अगर इस साल हालात सुधरे तो चार लाख पर्यटक श्रीलंका आएंगे। उनसे श्रीलंका को 10 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी। अगर ऐसा हुआ तो श्रीलंका आर्थिक संकट से निकलने की स्थिति में होगा। लेकिन इसी बीच राजपक्षे की जनमत संग्रह संबंधी टिप्पणी ने नए कयासों को जन्म दे दिया है।

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