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श्रीलंका में विरोध जारी: सीधे राजपक्षे परिवार है जन आक्रोश के निशाने पर

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कोलंबो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 04 Apr 2022 06:58 PM IST

सार

इन हालात के लिए लोग सीधे तौर पर राष्ट्रपति राजपक्षे और उनके परिवार को दोषी ठहरा रहे हैं। राजपक्षे के परिवार के करीब एक दर्जन लोग इस समय सरकार या सरकार से जुड़े विभागों में ऊंचे पदों पर बैठे हुए हैं। राष्ट्रपति गोटबया के भाई और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे अभी प्रधानमंत्री हैं। उनके एक दूसरे भारी बासिल राजपक्षे वित्त मंत्री हैं। राष्ट्रपति के बेटे नमाल राजपक्षे इस समय संसदीय कार्य मंत्री हैं…

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इमरजेंसी लागू किए जाने के बावजूद श्रीलंका में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला नहीं ठहरा है। रविवार को देश के कई हिस्सों में जन प्रदर्शन होने की खबर आई। एक प्रदर्शनकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- ‘लोग बहुत गुस्से में हैं। वे चिल्ला रहे हैं। पिछले हफ्ते लोगों ने राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे से इस्तीफे की मांग की। उसके बाद से लोग उन्हें गालियां दे रहे हैं।’

जानकारों ने कहा है कि 1948 में आजाद होने के बाद श्रीलंका ने आज जैसे आर्थिक संकट का कभी सामना नहीं किया। ऐसा इसके पहले कभी नहीं हुआ कि बिजली न होने के कारण दुकानें बंद करनी पड़ी हों। या पेट्रोल पंपों पर लगी कतार को संभालने के लिए सैनिकों की तैनाती करनी पड़ी हो। लंबी कतारें अनाज और दूसरी जरूरी चीजों की खरीदारी के लिए भी लगानी पड़ रही है। ऐसी कतारों में खड़े कई लोगों की जान भी जा चुकी है।

राजपक्षे परिवार को ठहरा रहे जिम्मेदार

इन हालात के लिए लोग सीधे तौर पर राष्ट्रपति राजपक्षे और उनके परिवार को दोषी ठहरा रहे हैं। राजपक्षे के परिवार के करीब एक दर्जन लोग इस समय सरकार या सरकार से जुड़े विभागों में ऊंचे पदों पर बैठे हुए हैं। राष्ट्रपति गोटबया के भाई और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे अभी प्रधानमंत्री हैं। उनके एक दूसरे भारी बासिल राजपक्षे वित्त मंत्री हैं। राष्ट्रपति के बेटे नमाल राजपक्षे इस समय संसदीय कार्य मंत्री हैं। सत्ता पर इस पकड़ के कारण अब पूरा राजपक्षे परिवार जन आक्रोश के निशाने पर आ गया है।

विशेषज्ञ भी गोटबया राजपक्षे के कई कदमों को मौजूदा दुर्दशा के लिए जिम्मेदार मानते हैं। अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल डेवलपमेंट की प्रोफेसर शांता देवराजन ने सीएनएन से कहा- टैक्स में कटौती और अन्य आर्थिक फैसलों का असर राजकोष पर पड़ा। उसकी वजह से रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका का दर्जा गिरा। नतीजा यह हुआ कि विदेशी बाजार से कर्ज जुटाने में श्रीलंका सरकार अक्षम हो गई।

प्रधानमंत्री महिंद राजपक्षे ने सीएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा कि हालात को संभालने के लिए वित्त मंत्री और उनकी टीम दिन-रात काम कर रही है। उन्होंने इस आरोप का खंडन किया कि वर्तमान सरकार अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के लिए जिम्मेदार है। राजपक्षे ने कहा कि संकट का असल कारण कोविड-19 महामारी है।

गोटबया ने किया इनकार

राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे भी ऐसा ही दावा करते रहे हैं। कुछ रोज पहले राष्ट्र के नाम एक संबोधन में उन्होंने कहा था- ‘इस संकट को मैंने पैदा नही किया है।’ लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि सत्ताधारी नेताओं के ऐसे दावों से लोगों में गुस्सा और भड़क रहा है। रसोई गैस सिलिंडर के लिए घंटों से कतार में खड़ी 53 वर्षीया मलकांथी सिल्वा ने एक टीवी चैनल से कहा- ‘हमारी जिंदगी कतारों में ही गुजर रही है। दूध का पाउडर लेना हो या दवाएं- हर जगह लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ता है।’

हालांकि अब हालात बेहद बिगड़ गए हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि इसकी पृष्ठभूमि लंबे समय से तैयार हो रही थी। कोलंबो स्थित थिंक टैंक एडवोकेट इंस्टीट्यूट के प्रमुख मुर्तजा जाफरजी ने सीएनएन से कहा- ‘आज की हालत के लिए 30 प्रतिशत दुर्भाग्य और 70 प्रतिशत कुप्रबंधन जिम्मेदार है।’

विस्तार

इमरजेंसी लागू किए जाने के बावजूद श्रीलंका में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला नहीं ठहरा है। रविवार को देश के कई हिस्सों में जन प्रदर्शन होने की खबर आई। एक प्रदर्शनकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- ‘लोग बहुत गुस्से में हैं। वे चिल्ला रहे हैं। पिछले हफ्ते लोगों ने राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे से इस्तीफे की मांग की। उसके बाद से लोग उन्हें गालियां दे रहे हैं।’

जानकारों ने कहा है कि 1948 में आजाद होने के बाद श्रीलंका ने आज जैसे आर्थिक संकट का कभी सामना नहीं किया। ऐसा इसके पहले कभी नहीं हुआ कि बिजली न होने के कारण दुकानें बंद करनी पड़ी हों। या पेट्रोल पंपों पर लगी कतार को संभालने के लिए सैनिकों की तैनाती करनी पड़ी हो। लंबी कतारें अनाज और दूसरी जरूरी चीजों की खरीदारी के लिए भी लगानी पड़ रही है। ऐसी कतारों में खड़े कई लोगों की जान भी जा चुकी है।

राजपक्षे परिवार को ठहरा रहे जिम्मेदार

इन हालात के लिए लोग सीधे तौर पर राष्ट्रपति राजपक्षे और उनके परिवार को दोषी ठहरा रहे हैं। राजपक्षे के परिवार के करीब एक दर्जन लोग इस समय सरकार या सरकार से जुड़े विभागों में ऊंचे पदों पर बैठे हुए हैं। राष्ट्रपति गोटबया के भाई और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे अभी प्रधानमंत्री हैं। उनके एक दूसरे भारी बासिल राजपक्षे वित्त मंत्री हैं। राष्ट्रपति के बेटे नमाल राजपक्षे इस समय संसदीय कार्य मंत्री हैं। सत्ता पर इस पकड़ के कारण अब पूरा राजपक्षे परिवार जन आक्रोश के निशाने पर आ गया है।

विशेषज्ञ भी गोटबया राजपक्षे के कई कदमों को मौजूदा दुर्दशा के लिए जिम्मेदार मानते हैं। अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल डेवलपमेंट की प्रोफेसर शांता देवराजन ने सीएनएन से कहा- टैक्स में कटौती और अन्य आर्थिक फैसलों का असर राजकोष पर पड़ा। उसकी वजह से रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका का दर्जा गिरा। नतीजा यह हुआ कि विदेशी बाजार से कर्ज जुटाने में श्रीलंका सरकार अक्षम हो गई।

प्रधानमंत्री महिंद राजपक्षे ने सीएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा कि हालात को संभालने के लिए वित्त मंत्री और उनकी टीम दिन-रात काम कर रही है। उन्होंने इस आरोप का खंडन किया कि वर्तमान सरकार अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के लिए जिम्मेदार है। राजपक्षे ने कहा कि संकट का असल कारण कोविड-19 महामारी है।

गोटबया ने किया इनकार

राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे भी ऐसा ही दावा करते रहे हैं। कुछ रोज पहले राष्ट्र के नाम एक संबोधन में उन्होंने कहा था- ‘इस संकट को मैंने पैदा नही किया है।’ लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि सत्ताधारी नेताओं के ऐसे दावों से लोगों में गुस्सा और भड़क रहा है। रसोई गैस सिलिंडर के लिए घंटों से कतार में खड़ी 53 वर्षीया मलकांथी सिल्वा ने एक टीवी चैनल से कहा- ‘हमारी जिंदगी कतारों में ही गुजर रही है। दूध का पाउडर लेना हो या दवाएं- हर जगह लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ता है।’

हालांकि अब हालात बेहद बिगड़ गए हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि इसकी पृष्ठभूमि लंबे समय से तैयार हो रही थी। कोलंबो स्थित थिंक टैंक एडवोकेट इंस्टीट्यूट के प्रमुख मुर्तजा जाफरजी ने सीएनएन से कहा- ‘आज की हालत के लिए 30 प्रतिशत दुर्भाग्य और 70 प्रतिशत कुप्रबंधन जिम्मेदार है।’

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