वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, हांगकांग
Published by: अजय सिंह
Updated Sun, 09 Jan 2022 01:37 PM IST
सार
विश्लेषकों के मुताबिक यह एक विडंबना ही है कि जिस एक अन्य मुक्त व्यापार समझौते का विचार अमेरिका की तरफ से रखा गया था, उसका भी लाभ उठाने के लिए चीन जोर लगा रहा है।
सांकेतिक तस्वीर
– फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
विश्लेषकों का कहना है कि बाकी एशियाई देशों को भी चीन को अपना निर्यात बढ़ाने का मौका इससे मिलेगा। शायद इसी लालच की वजह से उन्होंने आरसीईपी पर दस्तखत करने का उत्साह दिखाया। आरसीईपी लागू होने के बाद इस समझौते में शामिल देशों के बीच आयात शुल्क में 90 फीसदी तक की कटौती हो जाएगी। उससे चीन के बाजार तक पहुंच बनाना आसान हो जाएगा। आरसीईपी करार पर नवंबर 2029 में दस्तखत हुए थे। उसके बाद उसका अनुमोदन करने वाला चीन पहला देश बना।
विश्लेषकों के मुताबिक यह एक विडंबना ही है कि जिस एक अन्य मुक्त व्यापार समझौते का विचार अमेरिका की तरफ से रखा गया था, उसका भी लाभ उठाने के लिए चीन जोर लगा रहा है। ये समझौता कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) है। इसके लिए पहल अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में हुई थी। लेकिन डॉनल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने पर इससे अमेरिका को बाहर निकाल लिया था।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक कोविड-19 महामारी के कारण मची अफरा-तफरी का फायदा भी चीन को मिला है। इस दौरान अमेरिका और यूरोप के लिए उसके निर्यात में काफी बढ़ोतरी हुई है। दुनिया में औद्योगिक उत्पादों के सबसे बड़ा निर्यातक जर्मनी अब चीनी उत्पादों का बड़ा आयातक बन गया है। जर्मनी के लिए चीनी निर्यात कोरोना महामारी की शुरुआत से बाद से दो गुना हो चुका है। अब हर महीने जर्मनी 11 बिलियन डॉलर के बराबर का आयात चीन से कर रहा है।
चीन एशिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत है। अब आरसीईपी से उसकी ताकत में और बढ़ोतरी होगी। इसलिए आरसीईपी लागू होने के बाद पहले हफ्ते में अमेरिकी अधिकारियों की प्रतिक्रिया निराशा भरी रही है।
अमेरिकी सीनेट के 15 रिपब्लिकन सदस्यों ने पिछले दिनों राष्ट्रपति को एक पत्र भेजा। उसमें कहा गया- ‘पूरब में चीन तेजी से आर्थिक पहल का फायदा उठा रहा है। यह अमेरिकी हितों के लिए हानिकारक है। आरसीईपी ऐसा समझौता है, जिससे चीन को लाभ होगा। इसमें बौद्धिक संपदा संरक्षण के कमजोर नियम हैं। साथ ही सरकारी उद्यमों पर नियंत्रण का इसमें कोई प्रावधान नहीं है।’
खबरों के मुताबिक ये संभव है कि अमेरिका जो बाइडन प्रशासन अब नए सिरे से एशिया में व्यापार कूटनीति की शुरुआत करे। लेकिन उसके सामने मुख्य बाधा पूर्व ट्रंप प्रशासन की तरफ से पैदा किया गया अविश्वास है। इस बीच चीन का अंदरूनी बाजार इतना बड़ा हो गया है कि एशिया का कोई देश उससे दूर रहने में अपना फायदा नहीं देखता। इस बीच चीन ने एशियाई देशों आयात के लिए अपने दरवाजे और खोल दिए हैँ। उससे सबसे ज्यादा फायदा ताइवान को हुआ है। ताइवान के इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिए अब चीन सबसे बड़ा बाजार बन गया है।