सार
रोहिंग्या शरणार्थियों की अर्जी में कहा गया है- ‘फेसबुक एक ऐसे रोबोट की तरह है कि जिसके लिए की गई प्रोग्रामिंग का एकमात्र मकसद कंपनी का प्रसार है। जिस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता, वो यह है कि फेसबुक का प्रसार नफरत, बंटवारे, और गलत सूचनाओं के जरिए हुआ है, जिसका हजारों रोहिंग्या मुसलमानों के लिए विनाशकारी असर हुआ।’
बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थी
– फोटो : Agency (File Photo)
म्यांमार से विस्थापित हुए रोहिंग्या शरणार्थियों का सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर मुकदमा भविष्य के लिए एक अहम मिसाल बन सकता है। रोहिंग्या शरणार्थियों को इस कंपनी से जो शिकायत है, वैसी शिकायतें दुनिया के कई दूसरे उत्पीड़ित समुदायों को भी है। फेसबुक नफरत फैलाने वाली बातों का मंच बन गया है और उसकी वजह से हिंसा हुई है, ऐसी शिकायतें कई देशों के अल्पसंख्यक समुदाय और सामाजिक कार्यकर्ता जता चुके हैं।
एल्गोरिद्म गलत सूचनाओं में सहायक
रोहिंग्या शरणार्थियों ने आरोप लगाया है कि नफरत भरी पोस्ट को रोकने में फेसबुक की नाकामी के कारण उन्हें हिंसा का शिकार बनना पड़ा। कोर्ट से उन्होंने इसके लिए फेसबुक कंपनी को जवाबदेह ठहराने की गुजारिश की है, और इसके बदले में 150 अरब डॉलर के मुआवजे का दावा किया है। ये मुकदमा अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया की एक अदालत में दर्ज कराया गया है। मुकदमे में कहा गया है कि फेसबुक कंपनी के एल्गोरिद्म गलत सूचनाओं और उग्रवादी विचारों का प्रसार करने में सहायक बनते हैं, जिसकी वजह से समाज में हिंसा की वास्तविक घटनाएं हो रही हैं।
रोहिंग्या शरणार्थियों की अर्जी में कहा गया है- ‘फेसबुक एक ऐसे रोबोट की तरह है कि जिसके लिए की गई प्रोग्रामिंग का एकमात्र मकसद कंपनी का प्रसार है। जिस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता, वो यह है कि फेसबुक का प्रसार नफरत, बंटवारे, और गलत सूचनाओं के जरिए हुआ है, जिसका हजारों रोहिंग्या मुसलमानों के लिए विनाशकारी असर हुआ।’
रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय म्यांमार में कई प्रकार के भेदभाव के शिकार रहे हैं। लेकिन पिछले दशक में उनके खिलाफ जैसी हिंसा हुई, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। संयुक्त राष्ट्र ने उन पर हुई हिंसा को ‘जन संहार’ करार दिया था। इस हिंसा के कारण 2017 में हजारों रोहिंग्या शरणार्थी बनने को मजबूर हुए, जो आज भी बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। आज भी म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के ऐसे सैकड़ों लोग हैं, जिन्हें वहां नागरिकता नहीं दी गई है, जिन्हें भेदभाव और सांप्रदायिक हिंसा का सामना करना पड़ता है।
एक हजार से ज्यादा पोस्ट, टिप्पणियों और तस्वीरों का जिक्र
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार जांचकर्ताओं ने 2018 में कहा था कि फेसबुक के जरिए फैलाई गई नफरत भरी बातों की रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़काने में प्रमुख भूमिका रही है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने भी एक जांच रिपोर्ट में ऐसे एक हजार से ज्यादा पोस्ट, टिप्पणियों और तस्वीरों का जिक्र किया था, जिनकी वहां हिंसा भड़काने में भूमिका रही थी। रोंहिंग्या शरणार्थियों ने अपने मुकदमे में इन जांच रिपोर्टों को साक्ष्य के रूप में पेश किया है।
रोहिंग्या शरणार्थियों पर हिंसा के मामले में फेसबुक कंपनी पहले भी कठघरे में खड़ी हो चुकी है। इसी साल सितंबर में एक अमेरिकी अदालत ने फेसबुक को उन तमाम एकाउंट्स की जानकारी देने को कहा था, जिनके जरिए रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ म्यांमार में हिंसा फैलाई गई। दबाव बढ़ने पर फेसबुक ने म्यांमार में हेट स्पीच रोकने के उपाय करने का वादा किया था। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि उसे ऐसा कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
इसी बीच रोहिंग्या शरणार्थियों ने हिंसा के लिए फेसबुक की कानूनी जवाबदेही तय कराने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है। इस पर क्या फैसला आता है, उसे देखने पर सारी दुनिया की निगाहें टिकी रहेंगी।
विस्तार
म्यांमार से विस्थापित हुए रोहिंग्या शरणार्थियों का सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर मुकदमा भविष्य के लिए एक अहम मिसाल बन सकता है। रोहिंग्या शरणार्थियों को इस कंपनी से जो शिकायत है, वैसी शिकायतें दुनिया के कई दूसरे उत्पीड़ित समुदायों को भी है। फेसबुक नफरत फैलाने वाली बातों का मंच बन गया है और उसकी वजह से हिंसा हुई है, ऐसी शिकायतें कई देशों के अल्पसंख्यक समुदाय और सामाजिक कार्यकर्ता जता चुके हैं।
एल्गोरिद्म गलत सूचनाओं में सहायक
रोहिंग्या शरणार्थियों ने आरोप लगाया है कि नफरत भरी पोस्ट को रोकने में फेसबुक की नाकामी के कारण उन्हें हिंसा का शिकार बनना पड़ा। कोर्ट से उन्होंने इसके लिए फेसबुक कंपनी को जवाबदेह ठहराने की गुजारिश की है, और इसके बदले में 150 अरब डॉलर के मुआवजे का दावा किया है। ये मुकदमा अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया की एक अदालत में दर्ज कराया गया है। मुकदमे में कहा गया है कि फेसबुक कंपनी के एल्गोरिद्म गलत सूचनाओं और उग्रवादी विचारों का प्रसार करने में सहायक बनते हैं, जिसकी वजह से समाज में हिंसा की वास्तविक घटनाएं हो रही हैं।
रोहिंग्या शरणार्थियों की अर्जी में कहा गया है- ‘फेसबुक एक ऐसे रोबोट की तरह है कि जिसके लिए की गई प्रोग्रामिंग का एकमात्र मकसद कंपनी का प्रसार है। जिस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता, वो यह है कि फेसबुक का प्रसार नफरत, बंटवारे, और गलत सूचनाओं के जरिए हुआ है, जिसका हजारों रोहिंग्या मुसलमानों के लिए विनाशकारी असर हुआ।’
रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय म्यांमार में कई प्रकार के भेदभाव के शिकार रहे हैं। लेकिन पिछले दशक में उनके खिलाफ जैसी हिंसा हुई, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। संयुक्त राष्ट्र ने उन पर हुई हिंसा को ‘जन संहार’ करार दिया था। इस हिंसा के कारण 2017 में हजारों रोहिंग्या शरणार्थी बनने को मजबूर हुए, जो आज भी बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। आज भी म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के ऐसे सैकड़ों लोग हैं, जिन्हें वहां नागरिकता नहीं दी गई है, जिन्हें भेदभाव और सांप्रदायिक हिंसा का सामना करना पड़ता है।
एक हजार से ज्यादा पोस्ट, टिप्पणियों और तस्वीरों का जिक्र
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार जांचकर्ताओं ने 2018 में कहा था कि फेसबुक के जरिए फैलाई गई नफरत भरी बातों की रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़काने में प्रमुख भूमिका रही है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने भी एक जांच रिपोर्ट में ऐसे एक हजार से ज्यादा पोस्ट, टिप्पणियों और तस्वीरों का जिक्र किया था, जिनकी वहां हिंसा भड़काने में भूमिका रही थी। रोंहिंग्या शरणार्थियों ने अपने मुकदमे में इन जांच रिपोर्टों को साक्ष्य के रूप में पेश किया है।
रोहिंग्या शरणार्थियों पर हिंसा के मामले में फेसबुक कंपनी पहले भी कठघरे में खड़ी हो चुकी है। इसी साल सितंबर में एक अमेरिकी अदालत ने फेसबुक को उन तमाम एकाउंट्स की जानकारी देने को कहा था, जिनके जरिए रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ म्यांमार में हिंसा फैलाई गई। दबाव बढ़ने पर फेसबुक ने म्यांमार में हेट स्पीच रोकने के उपाय करने का वादा किया था। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि उसे ऐसा कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
इसी बीच रोहिंग्या शरणार्थियों ने हिंसा के लिए फेसबुक की कानूनी जवाबदेही तय कराने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है। इस पर क्या फैसला आता है, उसे देखने पर सारी दुनिया की निगाहें टिकी रहेंगी।
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