आशीष तिवारी, नई दिल्ली।
Published by: Amit Mandal
Updated Thu, 03 Feb 2022 06:18 AM IST
सार
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लखनऊ में जितने प्रत्याशी दिए गए हैं उनमें अधिकांश राजनाथ सिंह के बहुत पुराने वक्त के करीबी भी हैं।
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विस्तार
खतरे में थी कैबिनेट मंत्री आशुतोष टंडन की सीट
भाजपा के दिग्गज नेता रहे लालजी टंडन के बेटे और कैबिनेट मंत्री आशुतोष टंडन की लखनऊ पूर्व की सीट खतरे में थी। चर्चा थी कि गोपाल टंडन की सीट बदली जाएगी, लेकिन नहीं बदली गई। ऐसी ही चर्चा लखनऊ उत्तर से विधायक नीरज वोरा की थी। लेकिन उनकी सीट भी नहीं बदली। यही नहीं लखनऊ की बख्शी का तालाब विधानसभा क्षेत्र से योगेश शुक्ला और लखनऊ के पार्षद रजनीश गुप्ता को टिकट मिलने पर लोगों ने आश्चर्य ज़रूर किया। लखनऊ की राजनीति को करीब से समझने वाले राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि नामांकन की आखिरी तारीख के दो दिन पहले टिकट घोषित करना ये बताता है कि दबाब तो बहुत था। उसके बाद जो टिकट घोषित हुए हैं उससे बिल्कुल साफ है कि स्थानीय सांसद राजनाथ सिंह कइयों के लिए संकटमोचक बनकर उभरे।
इन सीटों पर हुआ मंथन
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि लखनऊ की सभी नौ सीटों और पड़ोसी जिले सीतापुर की तीन और उन्नाव की जसवंतनगर विधानसभा सीट पर बहुत ज्यादा मंथन भी हुआ और दबाव भी रहा। सीतापुर की विधानसभा महोली में स्थानीय विधायक शशांक त्रिवेदी का भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेखा वर्मा से खुला विरोध रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यही वजह थी कि शशांक त्रिवेदी का टिकट सीतापुर की पहली लिस्ट में फाइनल नहीं किया गया। चर्चाएं थीं कि शशांक त्रिवेदी का टिकट कट चुका है। इसी वजह से यहां प्रत्याशी नहीं घोषित हुआ है जल्द ही नया कोई प्रत्याशी घोषित किया जाएगा। लेकिन नामांकन खत्म होने से दो दिन पहले जब लिस्ट आई तो शशांक त्रिवेदी का ही नाम महोली विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशी के तौर पर सामने आया।
दबाव के चलते ही इन नेताओं को दोबारा टिकट
सूत्रों का कहना है कि बहुत दबाव के चलते ही दोबारा शशांक त्रिवेदी को टिकट दिया गया है। इसी तरह उन्नाव की भगवंत नगर विधानसभा सीट पर विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित और उनके बेटे की दावेदारी भी प्रबल मानी जा रही थी। सूत्रों का कहना है कि इस सीट के लिए आलाकमान को बहुत मंथन करना पड़ा और अंततः न हृदय नारायण दीक्षित को टिकट मिला और न ही उनके बेटे को इस विधानसभा सीट पर पार्टी ने टिकट दिया। लड़ाई सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की 9 विधानसभा सीटों पर थी। चर्चा ऐसी थी कि कुछ मंत्रियों के टिकट भी कट सकते हैं। क्योंकि लखनऊ की नौ विधानसभा सीटों में से 8 भाजपा के पास हैं। और इन आठ विधानसभा सीटों के तीन विधायक तो बाकायदा मंत्री रहे जिसमें स्वाति सिंह का टिकट कटना लगभग तय माना जा रहा था।
स्वाति सिंह का टिकट कटना तय था
हालांकि सूत्र बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के एक मजबूत धड़े ने स्वाति सिंह की बड़ी सिफारिश की लेकिन टिकट नहीं बच सका। सूत्रों के मुताबिक, लखनऊ पूर्व के विधायक और कैबिनेट मंत्री आशुतोष टंडन गोपाल, लखनऊ उत्तर से भाजपा विधायक नीरज वोरा और लखनऊ मध्य से विधायक और कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक की सीटों को बदलने की पूरी चर्चा थी। राजनीतिक जानकारों का मानना है बृजेश पाठक की बेहतर छवि के चलते उन्हें लखनऊ की किसी भी विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ाने में पार्टी को कोई नुकसान का डर नहीं था। और अंततः हुआ भी यही कि पाठक की सीट बदल दी गई। सूत्रों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के एक मंत्री ने अपनी सीट बदले जाने को लेकर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बड़ा विरोध किया और उनकी सीट नहीं बदली।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लखनऊ में जितने प्रत्याशी दिए गए हैं उनमें अधिकांश राजनाथ सिंह के बहुत पुराने वक्त के करीबी भी हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिजात मिश्रा ने लखनऊ के टिकटों के वितरण पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का धन्यवाद देकर इशारा साफ कर दिया है कि लखनऊ में टिकटों के वितरण में राजनाथ सिंह कइयों के संकटमोचक बने हैं।