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म्यांमार: सैनिक शासन और लोकतंत्र समर्थकों की लड़ाई के बीच गहराई मानवीय त्रासदी

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, यंगून
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 03 Feb 2022 05:53 PM IST

सार

विशेषज्ञों का कहना है कि लोकतंत्र बहाली समर्थक आंदोलनकारियों ने पूरे देश पर नियंत्रण कायम करने की सैनिक शासकों की मंशा को अब तक पूरा नहीं होने दिया है। मंगलवार को सैनिक तख्ता पलट की बरसी पर देश में ‘मौन हड़ताल’ का आयोजन किया गया। इस मौके पर लोगों से अपील की गई थी कि वे अपने घरों में ही रहें और अपने कारोबार को बंद रखें…

म्यांमार
– फोटो : Agency (File Photo)

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विस्तार

सैनिक शासन के एक साल में म्यांमार में आम लोगों की मुश्किलें तेजी से बढ़ी हैं। देश में बेरोजगारी के साथ-साथ खाद्य और ईंधन की महंगाई इस दौरान तेजी से बढ़ी है। इसका नतीजा गरीबी बढ़ने के रूप में सामने आया है। शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्थाएं तो लगभग ध्वस्त हो गई हैं। इस कारण आम समझ बनी है कि सैनिक शासकों ने भले देश की सत्ता पर कब्जा जमाए रखा है, लेकिन लगभग साढ़े पांच करोड़ आबादी वाले इस देश में वे सुचारू शासन देने में नाकाम रहे हैं।  

स्पेशल एडवाइजरी ग्रुप ऑन म्यांमार नाम की गैर सरकारी संस्था के संस्थापक यांगही ली ने कहा है- ‘यह तख्ता पलट नाकाम साबित हुआ है।’ यांगही पहले म्यांमार में मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र के रैपोटियर भी रह चुके हैं। उन्होंने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- ‘बीते एक साल में सैनिक शासन सफल नहीं रहा है। इसीलिए अब वे अपन नियंत्रण कायम करने के लिए अधिक से अधिक सख्त तरीके अपना रहे हैं।’

देश में ‘मौन हड़ताल’ का आयोजन

विशेषज्ञों का कहना है कि लोकतंत्र बहाली समर्थक आंदोलनकारियों ने पूरे देश पर नियंत्रण कायम करने की सैनिक शासकों की मंशा को अब तक पूरा नहीं होने दिया है। मंगलवार को सैनिक तख्ता पलट की बरसी पर देश में ‘मौन हड़ताल’ का आयोजन किया गया। इस मौके पर लोगों से अपील की गई थी कि वे अपने घरों में ही रहें और अपने कारोबार को बंद रखें। उधर बरसी की पूर्व संध्या पर सैनिक शासकों ने चेतावनी जारी की थी कि किसी भी विरोध प्रदर्शन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सैनिक शासकों ने लोकतंत्र समर्थक आंदोलनकारियों को ‘आतंकवादी’ करार दिया है। उधर आंदोलनकारियों का कहना है कि सैनिक शासकों का रुख लगातार अधिक दमनकारी होता गया है। उन्होंने आंदोलन को दबाने की कोशिश में सामूहिक हत्याएं की हैं। आंदोलनकारियों के मुताबिक सेना इस समय म्यांमार में ‘युद्ध अपराध’ कर रही है।

चार लाख से ज्यादा लोग विस्थापित

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक एक फरवरी 2021 को हुए सैनिक तख्ता पलट के बाद से म्यांमार में लड़ाई के कारण चार लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। उनमें बहुत से भाग कर भारत और थाईलैंड चले गए हैं। जबकि बड़ी संख्या में लोग घने जंगलों में छिपे हुए हैं। गैर सरकारी संगठन चिन ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक जनवरी में पश्चिमी चिन प्रांत में दस लोगों के शव क्षत-विक्षत अवस्था में मिले। उसके पहले क्रिसमस की पूर्व संध्या पर कयाह प्रांत में 35 शव मिले थे। आरोप है कि इन सभी लोगों को सेना ने मार डाला।

कयाह प्रांत में सेना विरोधी गुटों के मोर्चे करेनी नेशनलिस्ट डिफेंस फोर्स के प्रवक्ता ने सीएनएन से बातचीत में कहा- ‘सेना लोगों की हत्याएं कर रही हैं। लोगों के साथ बर्बरता की जा रही है। म्यांमार में कानून का राज नहीं रह गया है।’ सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वह स्वतंत्र रूप से इस आरोप की पुष्टि नहीं कर पाया।

दूसरी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब पूरा देश ही सेना और उसके विरोधियों के बीच संघर्ष का क्षेत्र बन गया है। लेकिन सबसे ज्यादा टकराव पश्चिमी और दक्षिणी म्यांमार में चल रहा है।

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