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मोर्चे पर यूक्रेन की महिला शक्ति : मकसद सबका एक… दुश्मन का खात्मा, पुतिन को अंदाजा भी न था कि वो लगा देंगी जान की बाजी

रूस ने यूक्रेन को कमजोर आंककर हमला कर तो दिया है लेकिन अब यूक्रेनियों ने अपनी एकता को अजेय प्रतिरोध की दीवार बनाकर रूसी हमलावरों को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया है। इस जंग में सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाली बात है देश की रक्षा के लिए हथियार उठाने वाली महिलाओं का हौसला।

यूक्रेन को महिलाओं ने गढ़ा और अब जंग में भी बनीं रीढ़

कोई अर्थशास्त्री, वकील तो कोई कवि या पत्रकार, मकसद सबका एक…दुश्मन का खात्मा

यूक्रेन दुनिया का ऐसा नायाब देश है, जहां महिलाओं की आबादी पुरुषों से ज्यादा है। वहां 86 पुरुषों पर 100 महिलाएं हैं। आजादी से लेकर अब तक के सफर में यूक्रेन को हमेशा नारी ने अपनी शक्ति से सींचा है। यूक्रेनी महिलाओं का प्रतिरोध सिर्फ सामाजिक स्तर तक ही सीमित नहीं है। दो साल पहले, जब रूस समर्थित विद्रोहियों ने आतंकवादी हमले करना शुरू किया था, तब भी कई आम महिलाओं ने अपने मुल्क की रक्षा के लिए हथियार उठा लिए थे। आज भी हथियार उठा रहीं इन पढ़ी-लिखी महिलाओं में कोई अर्थशास्त्री, वकील है तो कोई कवि या पत्रकार, लेकिन अब इन सबका मकसद एक ही है…देश की रक्षा करना। इनमें से कोई स्नाइपर (सैन्य निशानेबाज), कोई युद्ध चिकित्सक तो कुछ पूरी तरह फौजी ही बन गईं।

2014 में क्रीमिया पर कब्जे के बाद बढ़ी सैन्य भूमिका

वैसे, यूक्रेनी सेना में महिलाएं 1993 से ही थीं लेकिन कामकाज सीमित था और कभी सैन्य ऑपरेशनों में भाग भी नहीं लिया था। लेकिन 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे के बाद यूक्रेन को उनकी जरूरत महसूस होने लगी। इसके चलते 2016 में उन्हें युद्ध में लड़ने का अधिकार दिया गया। दो साल बाद, 2018 में पुरुष सैनिकों के समान हक व भूमिका सुनिश्चित करते हुए उन्हें सैन्य वाहन गनर, इंफेंट्री कमांडर और स्नाइपर जैसी भूमिका दी जाने लगी।

अमेरिका से भी ज्यादा 22.5% महिलाएं तैनात

2020 के आंकड़ों के अनुसार, फिलहाल 31 हजार से ज्यादा महिलाएं सशस्त्र बलों में तैनात थी। पिछले साल मार्च तक सक्रिय सैन्यबलों में बढ़कर उनकी संख्या 22.5 फीसदी हो गई जबकि अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश में सेना में 14.4 फीसदी महिलाएं ही हीं।

संसद में 21% भागीदारी, विशाल रूस भी पीछे

यूक्रेनी महिलाएं समाज, राजनीति और लोकतंत्र की भी धुरी रही हैं। पिछले चुनाव में संसद में 21 फीसदी सीटें उनके नाम ही रहीं। वहीं हमलावर रूस को देखें तो वहां केवल 16 फीसदी महिलाएं ही राजनीतिक ओहदों पर हैं तो सेना में उनकी बहुत सीमित भूमिका है, जो कई देशों के मुकाबले काफी कम है।

शक्ति व मनोबल की बेजोड़ मिसाल

यूक्रेनी महिलाओं ने संघर्ष शक्ति की बेजोड़ मिसाल पेश की है। सड़क पर एक बुजुर्ग महिलाओं द्वारा रूसी सैनिकों को डांटते हुए उसे सूरजमुखी के बीज देना तो ऐतिहासिक घटना बन गई है।

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