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मद्रास हाईकोर्ट की निराली टिप्पणी : ‘हंसने के कर्तव्य’ सिखाने के लिए करना पड़ेगा संविधान संशोधन

सार

हाईकोर्ट ने कहा मजाकिया होना और दूसरे का मजाक उड़ाना अलग-अलग बातें हैं। किस पर हंसें? यह गंभीर सवाल है। देश में कई होली-काऊ हैं, जिन पर क्षेत्र के हिसाब से कोई मजाक नहीं बना सकता।

कोर्ट (प्रतीकात्मक तस्वीर।)
– फोटो : iStock

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यूपी के वाराणसी से लेकर तमिलनाडु के वडीपट्टी तक कई होली-काऊ (पवित्र विषय) चरती फिर रही हैं, जिनका मजाक नहीं बनाया जा सकता। हालांकि, देश के नागरिकों को ‘हंसने का कर्तव्य’ सिखाने के लिए लगता है संविधान संशोधन करवाना पड़ेगा।

मद्रास हाईकोर्ट ने यह निराली टिप्पणी तमिलनाडु में मदुरै के मथिवानन पर दर्ज एफआईआर खारिज करते हुए की। जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने कई जाने माने व्यंग्यकारों का उल्लेख कर कहा कि अगर उन्हें यह निर्णय लिखने का मौका मिलता, तो वे जरूर संविधान के अनुच्छेद 51-ए के उपखंड (1) में संशोधन का प्रस्ताव देते। 

यह उपखंड देश की संप्रभुता, एकता व अखंडता बनाए रखने व संविधान के  प्रति समर्पण को नागरिकों का मूल कर्तव्य मानता है। हाईकोर्ट ने कहा कि वे इसमें एक और मूल कर्तव्य ‘हंसने का कर्तव्य’ शामिल करवाते। या फिर मजाकिया होने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) में भी डलवाते।

कैमरे से शूटिंग से जुड़ा था पोस्ट

  • याचिकाकर्ता ने सोशल मीडिया पर अपनी यात्रा की तस्वीरें पोस्ट करते हुए मजाकिया कैप्शन ‘शूटिंग (फोटोग्राफी) प्रैक्टिस के लिए सिरुमलाई ट्रिप’ लिखा था।
  • तमिलनाडु पुलिस ने इसे शूटिंग (गोलीबारी) मानते हुए व्यक्ति पर भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की एफआईआर दर्ज कर दी थी।

और पुलिस के लिए कहा…
हाईकोर्ट ने कहा कि मामले में भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की आईपीसी की धारा 507 लगाने पर हमें हंसी आती है। इस धारा के लिए आरोपी का नाम छिपा रहना जरूरी है, मौजूदा मामले में ऐसा नहीं है, उसने अपनी पहचान नहीं छिपाई। ऐसी एफआईआर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग और समझ से परे की बात है।

मजाकिया होना और मजाक उड़ाना अलग बातें, गिनाईं देश की ‘होली-काऊ’
हाईकोर्ट ने कहा मजाकिया होना और दूसरे का मजाक उड़ाना अलग-अलग बातें हैं। किस पर हंसें? यह गंभीर सवाल है। देश में कई होली-काऊ हैं, जिन पर क्षेत्र के हिसाब से कोई मजाक नहीं बना सकता। जैसे –

  • पश्चिम बंगाल : यहां टैगोर होली काऊ हैं, खुशवंत सिंह को बड़ी कीमत चुका कर यह समझ आया।
  • तमिलनाडु : यहां पेरियार श्री ईवी रामास्वामी सबसे बड़ी होली-काऊ हैं।
  • केरल : आजकल यहां मार्क्स-लेनिन मजाक या व्यंग्य से परे हैं।
  • देश में : होली-काऊ राष्ट्रीय सुरक्षा है, उसे देश में यह दर्जा हासिल है।

विस्तार

यूपी के वाराणसी से लेकर तमिलनाडु के वडीपट्टी तक कई होली-काऊ (पवित्र विषय) चरती फिर रही हैं, जिनका मजाक नहीं बनाया जा सकता। हालांकि, देश के नागरिकों को ‘हंसने का कर्तव्य’ सिखाने के लिए लगता है संविधान संशोधन करवाना पड़ेगा।

मद्रास हाईकोर्ट ने यह निराली टिप्पणी तमिलनाडु में मदुरै के मथिवानन पर दर्ज एफआईआर खारिज करते हुए की। जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने कई जाने माने व्यंग्यकारों का उल्लेख कर कहा कि अगर उन्हें यह निर्णय लिखने का मौका मिलता, तो वे जरूर संविधान के अनुच्छेद 51-ए के उपखंड (1) में संशोधन का प्रस्ताव देते। 

यह उपखंड देश की संप्रभुता, एकता व अखंडता बनाए रखने व संविधान के  प्रति समर्पण को नागरिकों का मूल कर्तव्य मानता है। हाईकोर्ट ने कहा कि वे इसमें एक और मूल कर्तव्य ‘हंसने का कर्तव्य’ शामिल करवाते। या फिर मजाकिया होने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) में भी डलवाते।

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