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मंथन : सरकार्यवाह होसबाले ने कहा, अमृत महोत्सव भारतीय समाज को एक सूत्र में पिरोने का अवसर

अमर उजाला ब्यूरो, अहमदाबाद/नई दिल्ली।
Published by: योगेश साहू
Updated Sun, 13 Mar 2022 04:33 AM IST

सार

होसबाले ने कहा कि देश का स्वतंत्रता आंदोलन महज राजनीतिक नहीं बल्कि सार्वदेशिक और सर्वसमावेशी होने के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन भी था। इसे राष्ट्र के मूल अधिष्ठान अर्थात राष्ट्रीय स्व को उजागर करने के निरंतर प्रयास के रूप में देखना प्रासंगिक होगा। डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने भी इसमें अपनी भूमिका निभाई।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश को भावी संकटों से बचाने के लिए स्वत्व आधारित जीवनदृष्टि के साथ समाज को एक राष्ट्र के रूप में पुनर्स्थापित करने पर बल दिया है। संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि विभाजन के दंश की भयावहता के कारण स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान नए भारत की स्थापना का सपना धीरे-धीरे कमजोर होता चला गया। होसबाले ने कहा, अनेक बाधाओं के बावजूद भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय प्रगति की है लेकिन भारत को पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य अब भी अधूरा है। उन्होंने कहा, अरसे बाद देश दूरदर्शी सोच के साथ आत्मनिर्भर भारत का संकल्प लेकर सही दिशा में आगे बढ़ने की तैयारी कर रहा है।

होसबाले गुजरात के कर्णावती में संघ की शीर्ष नीति निर्धारक इकाई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक के दूसरे दिन अपने विचार रख रहे थे। संघ के सरकार्यवाह ने कहा, अमृत महोत्सव आजादी की अब तक की यात्रा की समीक्षा के लिए उपयुक्त समय तो है ही, यह भारतीय समाज को एक सूत्र में पिरोने का अवसर भी है। उन्होंने कहा, छात्रों-युवाओं के प्रयास से भारत केंद्रित शिक्षा नीति को प्रभावी ढंग से लागू कर देश को ज्ञान संपन्न समाज के रूप में विकसित करने और विश्वगुरु बनाने की जरूरत है। हमें अपने स्वत्व को फिर से विकसित करने का संकल्प लेना चाहिए जो हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और राष्ट्रीय एकता की भावना को बनाए रखने का अवसर प्रदान करता है। 

अंग्रेजों ने एकत्व की मूल भावना पर किया था आघात
सर कार्यवाह ने कहा कि अंग्रेजों ने भारतीयों के एकत्व की मूल भावना पर आघात किया था। मातृभूमि के साथ भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंधों को कमजोर करने की साजिश की। हमारी स्वदेश अर्थव्यवस्था, आस्था-विश्वास, राजनीतिक व्यवस्था और शिक्षा प्रणाली पर प्रहार कर स्व आधारित तंत्र को हमेशा के लिए खत्म करने का प्रयास किया। स्व की प्रेरणा के क्षीण होने के कारण ही देश को विभाजन की विभीषिका झेलनी पड़ी।

सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन भी था आजादी का आंदोलन…
होसबाले ने कहा कि देश का स्वतंत्रता आंदोलन महज राजनीतिक नहीं बल्कि सार्वदेशिक और सर्वसमावेशी होने के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन भी था। इसे राष्ट्र के मूल अधिष्ठान अर्थात राष्ट्रीय स्व को उजागर करने के निरंतर प्रयास के रूप में देखना प्रासंगिक होगा। डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने भी इसमें अपनी भूमिका निभाई। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद जैसे आध्यात्मिक नेतृत्व ने देश को ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध प्रतिरोध के लिए प्रेरित किया।

हिंदू समाज को कमजोर करने का प्रयास हो रहा है
इससे पहले संघ ने सभा में पेश अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि संविधान और धार्मिक आजादी की आड़ में देश में धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिक उन्माद बढ़ रहा है। एक विशेष समुदाय सरकारी मशीनरी में शामिल होकर इस दूषित एजेंडे को बढ़ाने की योजना पर काम कर रहा है। जैसे-जैसे जनगणना वर्ष करीब आ रहा है ऐसी घटनाएं देखने को आ रही हैं कि कुछ समूह अचानक ऐसे बयान देने लगते हैं कि ‘वे हिंदू नहीं हैं।’ हिंदू समाज में पृथकतावादी तत्वों को बढ़ाकर समाज को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है।

विस्तार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश को भावी संकटों से बचाने के लिए स्वत्व आधारित जीवनदृष्टि के साथ समाज को एक राष्ट्र के रूप में पुनर्स्थापित करने पर बल दिया है। संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि विभाजन के दंश की भयावहता के कारण स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान नए भारत की स्थापना का सपना धीरे-धीरे कमजोर होता चला गया। होसबाले ने कहा, अनेक बाधाओं के बावजूद भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय प्रगति की है लेकिन भारत को पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य अब भी अधूरा है। उन्होंने कहा, अरसे बाद देश दूरदर्शी सोच के साथ आत्मनिर्भर भारत का संकल्प लेकर सही दिशा में आगे बढ़ने की तैयारी कर रहा है।

होसबाले गुजरात के कर्णावती में संघ की शीर्ष नीति निर्धारक इकाई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक के दूसरे दिन अपने विचार रख रहे थे। संघ के सरकार्यवाह ने कहा, अमृत महोत्सव आजादी की अब तक की यात्रा की समीक्षा के लिए उपयुक्त समय तो है ही, यह भारतीय समाज को एक सूत्र में पिरोने का अवसर भी है। उन्होंने कहा, छात्रों-युवाओं के प्रयास से भारत केंद्रित शिक्षा नीति को प्रभावी ढंग से लागू कर देश को ज्ञान संपन्न समाज के रूप में विकसित करने और विश्वगुरु बनाने की जरूरत है। हमें अपने स्वत्व को फिर से विकसित करने का संकल्प लेना चाहिए जो हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और राष्ट्रीय एकता की भावना को बनाए रखने का अवसर प्रदान करता है। 

अंग्रेजों ने एकत्व की मूल भावना पर किया था आघात

सर कार्यवाह ने कहा कि अंग्रेजों ने भारतीयों के एकत्व की मूल भावना पर आघात किया था। मातृभूमि के साथ भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंधों को कमजोर करने की साजिश की। हमारी स्वदेश अर्थव्यवस्था, आस्था-विश्वास, राजनीतिक व्यवस्था और शिक्षा प्रणाली पर प्रहार कर स्व आधारित तंत्र को हमेशा के लिए खत्म करने का प्रयास किया। स्व की प्रेरणा के क्षीण होने के कारण ही देश को विभाजन की विभीषिका झेलनी पड़ी।

सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन भी था आजादी का आंदोलन…

होसबाले ने कहा कि देश का स्वतंत्रता आंदोलन महज राजनीतिक नहीं बल्कि सार्वदेशिक और सर्वसमावेशी होने के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन भी था। इसे राष्ट्र के मूल अधिष्ठान अर्थात राष्ट्रीय स्व को उजागर करने के निरंतर प्रयास के रूप में देखना प्रासंगिक होगा। डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने भी इसमें अपनी भूमिका निभाई। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद जैसे आध्यात्मिक नेतृत्व ने देश को ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध प्रतिरोध के लिए प्रेरित किया।

हिंदू समाज को कमजोर करने का प्रयास हो रहा है

इससे पहले संघ ने सभा में पेश अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि संविधान और धार्मिक आजादी की आड़ में देश में धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिक उन्माद बढ़ रहा है। एक विशेष समुदाय सरकारी मशीनरी में शामिल होकर इस दूषित एजेंडे को बढ़ाने की योजना पर काम कर रहा है। जैसे-जैसे जनगणना वर्ष करीब आ रहा है ऐसी घटनाएं देखने को आ रही हैं कि कुछ समूह अचानक ऐसे बयान देने लगते हैं कि ‘वे हिंदू नहीं हैं।’ हिंदू समाज में पृथकतावादी तत्वों को बढ़ाकर समाज को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है।

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