हालांकि, इसी चरण में मौर्या, कुशवाहा और कोरी समुदाय के लोग भी भारी संख्या में रहते हैं। मौर्या-कुशवाहा का वर्ग पिछले चुनाव में पूरी तरह भाजपा के साथ रहा था, जिसका उसे लाभ हुआ था। बदली परिस्थितियों में स्वामी प्रसाद मौर्या के भाजपा से अलग होने, अनुप्रिया पटेल की मां के सपा के साथ आने से परिस्थितियां बदली हैं।
ऐसे में भाजपा इस बार इन 61 सीटों में से कितनी सीटों पर जीत हासिल कर सकेगी, इस पर सबकी निगाह रहेगी। उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्या इसी चरण में सिराथू सीट से उम्मीदवार हैं, तो उनका मुकाबला भी अपना दल के एक गुट कमेरावादी की पल्लवी पटेल से है। सपा के उम्मीदवार के रूप में वे उपमुख्यमंत्री के सामने कितनी चुनौती पेश कर सकेंगी, यह देखने वाली बात होगी।
ध्यान देने की बात है कि इसी सीटों में से 2012 में सपा ने लगभग दो तिहाई सीटों पर जीत हासिल की थी, तो 2017 में भाजपा को इन्हीं सीटों में से 51 पर जीत हासिल हुई थी। माना जाता है कि जातीय गणित के अलावा फ्लोटिंग वोटर्स ने इन चरणों में अलग-अलग पार्टियों को सत्ता तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। इस बार भी इस चरण के मतदाताओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रहने वाली है।
पासी-गैरजाटव वर्ग भाजपा के साथ
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने अमर उजाला को बताया कि इस चरण में कुल दलित मतदाताओं में लगभग 40 फीसदी पासी समुदाय के लोग निवास करते हैं। शुरुआती दौर में ये वर्ग भी मायावती के साथ हुआ करता था, लेकिन बाद में इस समुदाय का बड़ा हिस्सा उनके (भाजपा के) खाते में आ गया। भाजपा ने भी इस वर्ग को अपने साथ साधने के लिए इसी समुदाय के केंद्रीय मंत्री को मंत्रिमंडल में स्थान देकर इस वर्ग का सम्मान किया। नेता का दावा है कि इस पासी समुदाय के साथ-साथ अन्य गैर-जाटव समुदाय के बल पर ही भाजपा ने 2017 में इन 61 सीटों में से 51 सीटों पर जीत हासिल की थी।
नेता के मुताबिक, भाजपा ने इस बार भी इस वर्गों को अपने साथ साधने में सफलता हासिल की है। इसके लिए इस समाज के लोगों को सम्मान-राजनीतिक हिस्सेदारी देने के साथ-साथ इन वर्गों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया गया है। भाजपा का अनुमान है कि इस क्षेत्र में दी गई किसानों को आर्थिक सहायता और राशन योजना इस क्षेत्र के गरीबों के लिए बेहद कल्याणकारी और असरदार साबित हुई है। लिहाजा इस चरण में भी वह इन लाभकारी वर्गों की सहायता से शानदार प्रदर्शन करने में कामयाब रहेगी।
सपना देख रही भाजपा
सपा नेता आईपी सिंह ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा अभी भी 2014-2017 के सपने में जी रही है। उसे पता नहीं है कि उसके नीचे से जमीन खिसक चुकी है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में भाजपा किसानों को छह हजार रुपये की वार्षिक सहायता दे रही है, जबकि इस क्षेत्र में किसानों की जोत बहुत छोटी है। आवारा पशु किसानों की पूरी फसल खा जा रहे हैं गरीब-बूढ़े मजबूर किसानों को रात-रात भर जागकर अपने खेतों की रखवाली करनी पड़ रही है। एक दिन की भी चूक उनकी पूरी मेहनत पर पानी फेर दे रही है और उसे खेतों से कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है। इस कारण किसानों को भारी नुकसान हो रहा है और उनमें सरकार के प्रति भारी गुस्सा है। उन्होंने कहा कि भाजपा जिसे अपनी ताकत समझ रही है, वही उसके लिए सबसे बड़ा नुकसानदायक सौदा साबित हो रहा है। यह उसे 10 मार्च को पता चल जाएगा।
सपा नेता सिंह के मुताबिक, दूसरे दलों के कमजोर प्रदर्शन के कारण दलित और पिछड़े समुदाय के लोग अखिलेश यादव के पीछे आकर खड़े हो गए हैं। उन्हें भाजपा से कोई उम्मीद नहीं है। उनका दावा है कि सपा पहले चार चरणों में ही बहुमत के करीब पहुंच गई है। पांचवां चरण सीटों की संख्या को 202 के जादुई अंक से पार ले जाने का काम करेगा।
यहां हुए चुनाव
यूपी चुनाव में पांचवें चरण के लिए रविवार (27 फरवरी) को वोट डाले गए। इस चरण में 11 जिलों की 61 सीटों के लिए 693 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला 2.2 करोड़ मतदाता कर रहे हैं। इस चरण का चुनाव अमेठी, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी, प्रयागराज, बहराइच और गोंडा के इलाकों में हुआ। इस चरण में भाजपा के दिग्गज नेताओं उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य, सिद्धार्थनाथ सिंह और नंदगोपाल नंदी की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है। इसके अलावा कुंडा के राजा भैया इस चरण में बेहद चर्चित उम्मीदवार हैं।