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जब प्यार करने की वजह से साहिर लुधियानवी को कॉलेज से निकाला गया

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8 मार्च 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में जन्मे साहिर लुधियानवी के पिता बेहद अमीर थे, लेकिन मां-पिता के अलगाव के बाद उन्होंने मां के साथ गरीबी में रहना पसंद किया। लुधियाना के खालसा हाई स्कूल में साहिर ने पढ़ाई की। 1939 में कॉलेज के दिनों में वह अमृता प्रीतम से प्यार कर बैठे, लेकिन अमृता के घरवालों को ये रास नहीं आया क्योंकि एक तो साहिर मुस्लिम थे और दूसरे गरीब। बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। 


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जब प्यार करने की वजह से साहिर लुधियानवी को कॉलेज से निकाला गया

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8 मार्च 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में जन्मे साहिर लुधियानवी के पिता बेहद अमीर थे, लेकिन मां-पिता के अलगाव के बाद उन्होंने मां के साथ गरीबी में रहना पसंद किया। लुधियाना के खालसा हाई स्कूल में साहिर ने पढ़ाई की। 1939 में कॉलेज के दिनों में वह अमृता प्रीतम से प्यार कर बैठे, लेकिन अमृता के घरवालों को ये रास नहीं आया क्योंकि एक तो साहिर मुस्लिम थे और दूसरे गरीब। बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। 

अमर उजाला आवाज सुनने वालों को मेरा यानी आसिफ का प्यार भरा नमस्कार…हाजिर हो गया हूं लेकर आपका पसंदीदा शो सुन सिनेमा लेकर…दोस्तों 
अभिनेत्री ऐश्वर्या राय दुनिया भर में अपनी खूबसूरती के लिए जानी जाती हैं। इसके साथ ही बॉलीवुड की फिल्मों में भी वह अपनी अदाकारी का जलवा दिखा चुकीं हैं। माना जाता है कि ऐश्वर्या राय जिस भी फिल्म में होती है, अपने किरदार के लिए वह खुद को वैसा ही ढाल लेती हैं। आज ऐश्वर्या राय से जुड़ा हम आपको ऐसा ही किस्सा बताने जा रहे हैं।

बॉलीवुड की बेहतरीन अभिनेत्री अमृता सिंह बॉलीवुड फिल्मों में आयरन लेडी के तौर पर मशहूर हुईं. अपनी एक्टिंग से दर्शकों पर जादू चलाने वालीं अमृता ने दिल तो बहुत लगाया, लेकिन कोई भी प्यार सफल नहीं हो पाया। इंडस्ट्री में उनके अफेयर के बहुत चर्चे रहे, लेकिन बार-बार प्यार मिलने के बाद भी अमृता अकेली ही रह गईं…अमृता सिंह ने साल 1983 में फिल्म ‘बेताब’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया था। फिल्म में उनके साथ अभिनेता सनी देओल भी नजर आए थे। फिल्म हिट रही और दर्शकों ने दोनों को बेहद पसंद किया। इस फिल्म में दोनों के बीच एक बोल्ड सीन भी फिल्माया गया था जो उस समय के लिए आम बात नहीं थी। दोनों की ये पहली फिल्म थी और दोनों ने फिल्म में इस तरह का सीन देकर दर्शकों को हैरान कर दिया था। 

सुनिए मनोरंजन जगत की तमाम बड़ी ख़बरें

एक वक्त था जब राज कपूर और नर्गिस के रोमांस के खूब चर्चे थे जिसके चलते नर्गिस एक बार अपने मेकअप रूम में बैठकर खूब रोईं और राज कपूर के भाई शम्मी कपूर को किस करने तक का वादा कर दिया था। आखिर ऐसा क्या हुआ था जो नर्गिस रोईं और शम्मी कपूर को किस करने का वादा कर दिया था…चलिए बताते हैं…बात उन दिनों की है जब नर्गिस राज कपूर के साथ फिल्म ‘बरसात’ में काम कर रही थीं। 

नमस्कार अमर उजाला आवाज में एक बार फिर आप सभी का स्वागत है और मैं हूं …हाजिर हो गई हूं लेकर दिनभर की मनोरंजन जगत की बड़ी खबरें…आगे बताएंगे कि क्या मां बनने वाली हैं दीपिका कक्कड़… क्यो हो रही ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ को बैन करने की मांग… और इस दिन होगी रिलीज जॉन अब्राहम की फिल्म ‘तेहरान’ जानते हैं विस्तार से…

दोस्तों फिल्मों को समाज का आईना कहा जाता है…कई फिल्में महज मनोरंजन के लिए बनाई जाती है तो कई ऐसी होती जो समाज को आईना भी दिखाती हैं…ऐसी ही एक फिल्म की आज हम बात करेंगे जो बनी तो लेकिन कभी सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच पाई…हम बात कर रहे हैं फिल्म किस्सा कुर्सी का की…इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाई तो उसका असर बॉलीवुड में भी देखा गया। बॉलीवुड में कई फिल्मों की रिलीज को रोक दिया गया। ऐसी ही एक फिल्म थी किस्सा कुर्सी का। फिल्म पर आरोप लगा था कि इसमें इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ-साथ सरकारी की नीतियों पर भी तंज कसे गए थे। फिल्म का निर्देशन अमृत नाहटा ने किया था।  

मजरूह सुल्तानपुरी एक उर्दू शायर, हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकार और आंदोलनकारी थे। उनका नाम 20वीं सदी के तरक्कीपसंद शायरों में गिना जाता है। उन्होंने तमाम हिन्दी फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं, जो आज भी लोगों के जेहन में तरोताजा हैं। 1964 में फिल्म ‘दोस्ती’ के गीत ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे’ के लिए मजरूह को फिल्मफेयर एवार्ड से नवाजा गया। इसके अलावा वे पहले ऐसे गीतकार थे, जिन्हें दादासाहब फाल्के मिला। मजरूह सुल्तानपुरी महान शायर ही नहीं पक्के देशभक्त भी थे। उन्होंने विदेशों में भी भारत को झुकने नहीं दिया। उनके जीवन का एक किस्सा भारत के प्रति उनके प्यार और देशभक्ति को दर्शाता है।  एक बार विदेश में मुशायरे के दौरान पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज ने भारत की गरीबी का मजाक उड़ाया था। इस पर सुल्तानपुरी ने न सिर्फ फैज को मुशायरे के मंच से ही मुंहतोड़ जवाब दिया बल्कि भारत की गरिमा भी कायम रखी। 

1933 में नवाब बानो यानी निम्मी का जन्म आगरा के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था…उनकी मां वहीदन एक मशहूर गायिका थीं और पिता सेना में ठेकेदारी करते थे…गायिका होने के नाते निम्मी की मां फिल्म जगत से जुड़ी थीं…निम्मी को नवाब नाम उनकी दादी ने दिया था  और इसमें बानो उनकी मां ने जोड़ा था…निम्मी के मां के संबंध फिल्मकार महबूब खान और उनके परिवार से अच्छे थे…जब निम्मी 11 साल की थीं तभी उनकी मां का इंतेकाल हो गया…इसलिए उनकी देखरेख के लिए उन्हें उनकी नानी के घर एबटाबाद भेज दिया गया…

दोस्तों अभिनेता प्राण अगर हिंदी सिनेमा के सबसे ज्यादा नफरत पाने वाले खलनायक थे तो फिल्म इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा प्यार पाने वालों में से भी एक थे। वह एक सच्चे कलाकार थे। ऐसे कलाकार जो दूसरों की कला की भी कद्र करे। यही कारण है कि एक बार उन्होंने फिल्मफेयर जैसा पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया था। और उसकी वजह भी अनोखी थी। यह किस्सा बहुत दिलचस्प है। बात है 1970 के दशक की। चार फरवरी 1972 को फिल्म ‘पाकीजा’ सिनेमाघरों में लगी थी और लोगों ने बहुत ठंडे मिजाज से इसका स्वागत किया था। 

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