वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Fri, 17 Dec 2021 05:12 PM IST
सार
पर्यवेक्षकों का कहना है कि जब बिलावल भुट्टो अपनी पार्टी को फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, उस समय उनका खुद को अमेरिका का दोस्त दिखाना एक कारगर रणनीति हो सकती है। हालांकि इसमें जोखिम भी है, क्योंकि अब पाकिस्तान में चीन की भी एक मजबूत लॉबी तैयार हो चुकी है…
इमरान खान-बिलावल भुट्टो जरदारी
– फोटो : Agency (File Photo)
लोकतांत्रिक देशों के शिखर सम्मेलन (समिट ऑफ डेमोक्रेसीज) में शामिल होने के अमेरिका के आमंत्रण को ठुकराने के इमरान खान सरकार के कदम को लेकर देश में राजनीतिक मतभेद गहरा रहा है। देश में जनमत के एक बड़े हिस्से की राय बनी है कि ये कदम उठा कर इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सरकार ने देश के दीर्घकालिक हितों को नुकसान पहुंचाया है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक पाकिस्तान में अमेरिका समर्थक एक बड़ी लॉबी है, जो इस कदम के कारण प्रधानमंत्री इमरान खान से और भी ज्यादा नाराज हो गई है।
बिलावल भुट्टो ने की आलोचना
देश में बन रहे इसी जनमत को भांपते हुए पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो ने छह दिन बाद इस मुद्दे पर अपनी जुबान खोली। उन्होंने डेमोक्रेसी समिट में भाग न लेने के प्रधानमंत्री खान के फैसले की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इस स्थिति में नहीं है कि वह ऐसे महत्त्वपूर्ण मंच से खुद को वंचित कर ले। बिलावल ने कराची में एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा- ‘अगर कोई सहयोगी देश वहां कुछ एतराज उठाता, तो भी हम उसकी बात सुनने के बाद अपनी बात कह सकते थे। लेकिन हमें यह मौका कतई नहीं छोड़ना चाहिए था।’
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस शिखर सम्मेलन में 100 से अधिक देशों को आमंत्रित किया था। उनमें पाकिस्तान भी था। बाइडन ने दक्षिण एशिया से भारत, मालदीव और नेपाल के अलावा पाकिस्तान को आमंत्रित किया था। बाकी तीनों देशों ने सम्मेलन में भाग लिया। लेकिन इमरान खान सरकार ने अमेरिका का न्योता ठुकरा दिया।
चीन के दबाव में ठुकराया आमंत्रण
डेमोक्रेसी समिट में जो देश आमंत्रित नहीं किए गए थे, उनमें चीन और रूस भी शामिल थे। अमेरिका ताइवान को इस सम्मेलन के लिए न्योता दिया, जिससे चीन खफा हो गया था। बताया जाता है कि चीन के दबाव में ही पाकिस्तान सरकार ने अमेरिका का आमंत्रण ठुकराने का फैसला किया।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि जब बिलावल भुट्टो अपनी पार्टी को फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, उस समय उनका खुद को अमेरिका का दोस्त दिखाना एक कारगर रणनीति हो सकती है। हालांकि इसमें जोखिम भी है, क्योंकि अब पाकिस्तान में चीन की भी एक मजबूत लॉबी तैयार हो चुकी है। पाकिस्तान के कई विश्लेषकों की राय है कि इमरान खान सरकार पूरी तरह अब इस लॉबी के प्रभाव में है।
पिछले सप्ताहांत इमरान खान ने इस्लामाबाद कॉन्क्लेव 2021 नाम के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी एक गुट का हिस्सा नहीं बनना चाहता। इसके बजाय वह अमेरिका और चीन के बीच पैदा हुई खाई को पाटने की भूमिका निभाना चाहता है। उन्होंने कहा कि दुनिया में गुट बन रहे हैं और स्थिति एक नए शीत युद्ध की तरफ जा रही है।
कुछ पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि 1970 के दशक में अमेरिका और चीन को करीब लाने में पाकिस्तान ने जो अहम रोल निभाया था, इमरान खान एक बार फिर अपने देश की वैसी भूमिका की कल्पना कर रहे हैं। लेकिन तब के हालात बिल्कुल अलग थे। तब अमेरिका की मुख्य होड़ तत्कालीन सोवियत संघ के साथ थी, जबकि इस बार सीधा मुकाबला अमेरिका और चीन के बीच ही है। ऐसे में डेमोक्रेसी समिट पर इमरान ने जो रुख अपनाया, उससे संकेत मिला कि उनकी सरकार चीन के गुट का हिस्सा बन रही है। इससे पाकिस्तान की अमेरिका समर्थक लॉबी में इमरान सरकार के प्रति विरोध भाव तीखा हो गया है।
विस्तार
लोकतांत्रिक देशों के शिखर सम्मेलन (समिट ऑफ डेमोक्रेसीज) में शामिल होने के अमेरिका के आमंत्रण को ठुकराने के इमरान खान सरकार के कदम को लेकर देश में राजनीतिक मतभेद गहरा रहा है। देश में जनमत के एक बड़े हिस्से की राय बनी है कि ये कदम उठा कर इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सरकार ने देश के दीर्घकालिक हितों को नुकसान पहुंचाया है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक पाकिस्तान में अमेरिका समर्थक एक बड़ी लॉबी है, जो इस कदम के कारण प्रधानमंत्री इमरान खान से और भी ज्यादा नाराज हो गई है।
बिलावल भुट्टो ने की आलोचना
देश में बन रहे इसी जनमत को भांपते हुए पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो ने छह दिन बाद इस मुद्दे पर अपनी जुबान खोली। उन्होंने डेमोक्रेसी समिट में भाग न लेने के प्रधानमंत्री खान के फैसले की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इस स्थिति में नहीं है कि वह ऐसे महत्त्वपूर्ण मंच से खुद को वंचित कर ले। बिलावल ने कराची में एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा- ‘अगर कोई सहयोगी देश वहां कुछ एतराज उठाता, तो भी हम उसकी बात सुनने के बाद अपनी बात कह सकते थे। लेकिन हमें यह मौका कतई नहीं छोड़ना चाहिए था।’
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस शिखर सम्मेलन में 100 से अधिक देशों को आमंत्रित किया था। उनमें पाकिस्तान भी था। बाइडन ने दक्षिण एशिया से भारत, मालदीव और नेपाल के अलावा पाकिस्तान को आमंत्रित किया था। बाकी तीनों देशों ने सम्मेलन में भाग लिया। लेकिन इमरान खान सरकार ने अमेरिका का न्योता ठुकरा दिया।
चीन के दबाव में ठुकराया आमंत्रण
डेमोक्रेसी समिट में जो देश आमंत्रित नहीं किए गए थे, उनमें चीन और रूस भी शामिल थे। अमेरिका ताइवान को इस सम्मेलन के लिए न्योता दिया, जिससे चीन खफा हो गया था। बताया जाता है कि चीन के दबाव में ही पाकिस्तान सरकार ने अमेरिका का आमंत्रण ठुकराने का फैसला किया।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि जब बिलावल भुट्टो अपनी पार्टी को फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, उस समय उनका खुद को अमेरिका का दोस्त दिखाना एक कारगर रणनीति हो सकती है। हालांकि इसमें जोखिम भी है, क्योंकि अब पाकिस्तान में चीन की भी एक मजबूत लॉबी तैयार हो चुकी है। पाकिस्तान के कई विश्लेषकों की राय है कि इमरान खान सरकार पूरी तरह अब इस लॉबी के प्रभाव में है।
पिछले सप्ताहांत इमरान खान ने इस्लामाबाद कॉन्क्लेव 2021 नाम के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी एक गुट का हिस्सा नहीं बनना चाहता। इसके बजाय वह अमेरिका और चीन के बीच पैदा हुई खाई को पाटने की भूमिका निभाना चाहता है। उन्होंने कहा कि दुनिया में गुट बन रहे हैं और स्थिति एक नए शीत युद्ध की तरफ जा रही है।
कुछ पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि 1970 के दशक में अमेरिका और चीन को करीब लाने में पाकिस्तान ने जो अहम रोल निभाया था, इमरान खान एक बार फिर अपने देश की वैसी भूमिका की कल्पना कर रहे हैं। लेकिन तब के हालात बिल्कुल अलग थे। तब अमेरिका की मुख्य होड़ तत्कालीन सोवियत संघ के साथ थी, जबकि इस बार सीधा मुकाबला अमेरिका और चीन के बीच ही है। ऐसे में डेमोक्रेसी समिट पर इमरान ने जो रुख अपनाया, उससे संकेत मिला कि उनकी सरकार चीन के गुट का हिस्सा बन रही है। इससे पाकिस्तान की अमेरिका समर्थक लॉबी में इमरान सरकार के प्रति विरोध भाव तीखा हो गया है।
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