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नई सियासत: क्या मोदी को टक्कर दे पाएंगे केजरीवाल? कांग्रेस का विकल्प बन सकती है आप

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि देश की सियासत में अब चेहरों की अदला-बदली होगी। किसी दल के नेता का कद घटेगा तो किसी का बढ़ेगा। पंजाब के नतीजों ने बता दिया है कि आप संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नई सियासत के ‘हैवीवेट’ नेताओं में शुमार होंगे। देश में जब कभी विपक्षी एकजुटता या तीसरे मोर्चे की बात हुई है तो वहां केजरीवाल को वैसी तव्वजो नहीं मिल सकी, जैसी शरद पवार, ममता बनर्जी, अखिलेश, चंद्रबाबू नायडू, एमके स्टालिन या नीतीश कुमार सहित दूसरे नेताओं को मिली है। आम आदमी पार्टी इस साल के अंत में गुजरात विधानसभा चुनाव में भी उतरेगी। राज्यसभा में भी अब आप के लिए चार-पांच नई सीटों की जगह बन सकती है। जानकारों का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों में जब कांग्रेस पार्टी खुद को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में लगी है, तब आम आदमी पार्टी उसके विकल्प के तौर पर सामने आ सकती है। आप नेता राघव चड्ढा का कहना है, अब उनकी पार्टी कांग्रेस का स्थान लेगी।

2020 के बाद राष्ट्रीय राजनीति में आप की एंट्री

अब केजरीवाल का और बढ़ेगा कद

2020 में दिल्ली विधानसभा की दूसरी बंपर जीत के बाद यह माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब राष्ट्रीय राजनीति में उतरेंगे। उन्होंने कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात भी की थी। वहां पर जब नेतृत्व की बात आती तो ममता बनर्जी या शरद पवार सरीखे नेताओं का नाम सामने आने लगता। इस बात को आप संयोजक केजरीवाल अच्छी तरह समझते थे। जब उन्होंने पंजाब चुनाव के लिए सक्रियता दिखाई तो भाजपा नेताओं की तरफ से ऐसी प्रतिक्रियाएं आईं कि वे दिल्ली छोड़कर पंजाब का सीएम बनना चाहते हैं। केजरीवाल और उनका मंत्रिमंडल जब कई दिनों तक एलजी आवास में धरने पर बैठा तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू, कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी और केरल के सीएम पिनाराई विजयन, केजरीवाल के आवास पर पहुंचे थे। इसके बाद जब कुछ सामान्य हुआ तो केजरीवाल को विपक्षी दलों के बीच विशेष स्थान नहीं मिल सका। यहीं से केजरीवाल ने अपनी रणनीति बदल दी।

इन सभी बातों ने केजरीवाल को यह संदेश तो दे ही दिया कि अभी राष्ट्रीय राजनीति में कदम बढ़ाने का सही वक्त नहीं है। उन्होंने पार्टी के विस्तार पर ध्यान देना शुरु कर दिया। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह की जल्दबाजी दिखाकर चार सौ सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए थे, अब वैसा कदम नहीं उठाया। उन्होंने आप के विस्तार पर ध्यान दिया। कांग्रेस के गिरते ग्राफ को आम आदमी पार्टी ने अच्छे से कैश कर लिया। पंजाब में आप की भारी सफलता इसका एक बड़ा उदाहरण है। पंजाब में सरकार बनने के बाद अब केजरीवाल, राष्ट्रीय राजनीति पर फोकस कर सकते हैं। 

केजरीवाल को लेकर राजनीतिक जानकारों का कहना था, भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था बहुत जटिल है। बहुत से लोगों की राय जुदा होती है। राष्ट्रीय राजनीति का चेहरा बनने के लिए केजरीवाल को अब अधिक वक्त नहीं लगेगा। वे लोगों के सामने राजनीति का एक अलग प्लेटफार्म रखते हैं। उनकी बात को लोग सुनते हैं। उसे सियासत की बहस का हिस्सा बनाया जाता है। दिल्ली के बाद पंजाब में आप को मिले प्रचंड बहुमत के बाद राष्ट्रीय राजनीति में केजरीवाल का कद अब बढ़ना तय है।

तीसरे मोर्चे का चेहरा बन सकते हैं केजरीवाल

आज की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले प्रशांत किशोर गत वर्ष से काफी सक्रिय हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने केजरीवाल को पूर्ण सहयोग दिया था। इस चुनाव में प्रशांत किशोर की कंपनी आईपैक ने आप के लिए रणनीति तैयार की थी। चुनाव में एक तरफ भाजपा राम मंदिर और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दे उठा रही थी तो केजरीवाल पानी, बिजली, मोहल्ला क्लिनिक और स्कूल पर बात करते रहे। प्रशांत किशोर ने उन्हें भाजपा के ‘हिंदुत्व’ के खेल से दूर रखा। जब देश में तीसरे मोर्चे को लेकर प्रशांत या किसी दूसरे नेता से पूछा जाता है तो वे ऐसा कुछ होने से मना कर देते हैं, लेकिन पिछले साल ऐसी कई बैठकें हुई थी। एनसीपी नेता शरद पवार ने राष्ट्र मंच की बैठक के नाम पर विपक्ष के कई नेताओं से चर्चा की थी। राष्ट्र मंच वह संगठन है, जिसे यशवंत सिन्हा ने 30 जनवरी 2018 को मोदी सरकार के खिलाफ बनाया था। केजरीवाल ने इन बैठकों में अपना प्रतिनिधि भेजा था। इन बैठकों के बाद कुछ ऐसे बयान सामने आए कि प्रशांत किशोर, ममता बनर्जी को तीसरे मोर्चे का चेहरा बनाने में जुटे हैं। शरद पवार को तीसरे मोर्चे के संयोजक की भूमिका दी जाएगी। यहां भी केजरीवाल को कोई बड़ी जिम्मेदारी से दूर रखा गया। पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत के बाद अब उनकी भूमिका बढ़ जाएगी। 

आप तेजी से कर रही है अपना विस्तार

राजनीतिक विशेषज्ञ एवं जेएनयू के पूर्व प्रो. आनंद कुमार के अनुसार, आने वाले समय में केजरीवाल एक बड़ा चेहरा बन सकते हैं। हालांकि वह उतना आसान भी नहीं है। ये जरुर है कि अब तकरीबन सभी दलों में नेताओं की एक पीढ़ी रिटायरमेंट पर है। शरद पवार या चंद्रबाबू नायडू की ही बात नहीं है, बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी अब विपक्ष या तीसरे मोर्चे का चेहरा बन सकेंगे, इसमें शक है। उन्होंने भाजपा के साथ जो आना-जाना रखा है, उसे लेकर कथित तीसरा मोर्चा या विपक्ष उन्हें स्वीकार कर पाएगा, ये कहना मुश्किल है। तेलंगाना के सीएम केसीआर व महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे जैसे नेता भी अपने राज्यों तक ही सीमित हैं। कांग्रेस पार्टी को छोड़ दें तो ऐसे में अरविंद केजरीवाल ही एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिनकी पार्टी तेजी से अपना विस्तार कर रही है। केजरीवाल की भूमिका का टेस्ट आने वाले कुछ ही महीनों में हो जाएगा। जुलाई-अगस्त में राष्ट्रपति का चुनाव होना है।

दूसरी तरफ तेलंगाना के सीएम चाहते हैं कि देश में तीसरा मोर्चा खड़ा किया जाए। ऐसा मोर्चा जो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकता है। केसीआर की सोच है कि तीसरा मोर्चा, गैर-भाजपाई और गैर-कांग्रेसी दलों गठबंधन होगा। इसमें टीएमसी, राजद, सपा, आप, शिवसेना और एनसीपी जैसी पार्टियां बड़ी भूमिका में रहेंगी। अब पंजाब के चुनाव परिणामों ने अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक कद बढ़ा दिया है। आप के दिल्ली में विधायक और पंजाब में पार्टी के सह-प्रभारी राघव चड्ढा ने साफ कर दिया है कि आम आदमी पार्टी, अब राष्ट्रीय ताकत बन चुकी है। राष्ट्रीय राजनीति में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस का स्थान लेगी। 

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