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जंग का 13 वां दिन : निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंच रहा युद्ध, इन पांच कारणों से रूसी फौज को छका रही यूक्रेन की सेना

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Tue, 08 Mar 2022 11:10 AM IST

सार

जंग छिड़े करीब दो सप्ताह हो चुके हैं, लेकिन महाशक्ति देश रूस बड़ी कामयाबी हासिल नहीं कर पाया है, सिवाय व्यापक विध्वंस और हिंसा के। यूक्रेन रूस को कड़ी चुनौती दे रहा है।

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24 फरवरी से जारी रूस-यूक्रेन जंग को मंगलवार 8 मार्च को 13 दिन हो गए हैं। दोनों ओर से घमासान जारी है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन साफतौर पर कह चुके हैं कि यूक्रेन को लेकर उनके इरादे अटल हैं, उन्हें कोई डिगा नहीं सकता। उधर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की भी हथियार डालने को तैयार नहीं हैं। यूक्रेन की सेना विशाल रूसी फौज से लोहा ले रही है। रूस को पस्त करना मुश्किल है, लेकिन उसके लिए जीत आसान भी नजर नहीं आ रही है। आइये जानते हैं यूक्रेन की सेना कैसे रूस को छका रही है? 

जंग छिड़े करीब दो सप्ताह हो चुके हैं, लेकिन महाशक्ति देश रूस बड़ी कामयाबी हासिल नहीं कर पाया है, सिवाय व्यापक विध्वंस और हिंसा के। यूक्रेन रूस को कड़ी चुनौती दे रहा है। जानकारों का कहना है कि रूसी फौज की तादाद भले ही बड़ी हो, लेकिन यूक्रेन की अच्छी तैयारी, राष्ट्रीय एकजुटता व रूसी गलतियों का करारा जवाब देने की उसकी रणनीति ने उसकी सेना का हौसला बढ़ा रखा है। एक वरिष्ठ फ्रांसीसी सैन्य सूत्र के अनुसार रूसी मूल रूप से बहुत तेजी से आगे नहीं बढ़ रहे हैं। किसी मोड़ पर रूसी फौज को फिर से संगठित करना पड़ेगा, लेकिन यह उसकी विफलता का संकेत नहीं होगा। यूक्रेनी सेना के हौसले से पश्चिम के उसके सहयोगी  देश खुश नजर आ रहे हैं। ये देश रूस से सीधे पंगा लेने व जंग में कूदने के बजाए यूक्रेन की परोक्ष मदद कर रहे हैं। ऐसे में उन पांच प्रमुख कारणों को जानना जरूरी है, जिनके दम पर यूक्रेन जंग में अब तक टिका ही नहीं हुआ है, बल्कि रूस के लिए कड़े प्रतिरोध पैदा कर रहा है। 

ये हैं पांच प्रमुख कारण
 

  1. पश्चिमी देशों की मदद लेकर यूक्रेन ने 2014 के बाद अपने सशस्त्र बलों को काफी मजबूत किया है। उस वक्त रूस ने क्रीमिया के यूक्रेनी प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया था और रूस समर्थक अलगाववादियों ने यूक्रेन के पूर्वी हिस्सों पर कब्जा जमा लिया था। 2016 में नाटो और कीव ने यूक्रेन के विशेष बलों के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया, जो अब 2,000 की संख्या में हैं और नागरिक स्वयंसेवकों की मदद करने में सक्षम हैं। जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के एक सहायक एसोसिएट प्रोफेसर डगलस लंदन का कहना है कि यूक्रेनीवासियों ने पिछले आठ साल रूसी कब्जे का विरोध करने की योजना बनाने, प्रशिक्षण लेने और खुद को शस्त्रों से लैस करने में बिताए हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के अनुसार यूक्रेन जानता है कि अमेरिका और नाटो युद्ध के मैदान में उसके बचाव के लिए नहीं आएंगे। इसलिए उसने अपनी रणनीति को रूस को चोंट पहुंचाने पर केंद्रित किया,  ताकि रूसी इरादों को अस्थिर किया जा सके। 
  2. रूस को पूर्ववर्ती सोवियत संघ के वक्त का यूक्रेन पता था, जब मॉस्को से यूक्रेन संचालित होता था। बीते 25-30 सालों में यूक्रेन में हुए बदलाव व भौगोलिक परिवर्तनों का रूसी फौजों की जानकारी नहीं है। ऐसा लगता है कि रूस ने यूक्रेनी सेना के घरेलू मैदानी क्षमताओं को कम कर के आंका है। कॉलेज ऑफ इंटरनेशनल सिक्योरिटी अफेयर्स के प्रोफेसर स्पेंसर मेरेडिथ ने कहा कि यूक्रेनी जनता स्वयं हथियार उठा लेगी, इसका अंदाजा भी रूस को शायद नहीं था। 
  3. यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अपनी जान की जोखिम के बाद भी कीव में मौजूद हैं और सेना व देशवासियों का हौसला बढ़ा रहे हैं। यूक्रेन के आम लोग फ्रंटलाइन वर्कर व सैनिक बतौर सेवाएं दे रहे हैं, उनके परिवार को पहले ही सुरक्षित बाहर भेजा जा चुका है। 
  4. सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि 24 फरवरी को जंग शुरू होने के बाद रूस ने शुरुआती दिनों में ही रणनीतिक त्रुटियां कीं। शुरू में बहुत कम थल सैनिकों को रणभूमि में भेजा। वह थल व वायु सेना को एक साथ तैनात करने में विफल रहा। मास्को को कुछ ही दिनों में सैन्य सफलता हासिल करने की उम्मीद थी, लेकिन यूक्रेनी सेना ने नाकों चने चबवा दिए। 
  5. रूस ने जब हजारों सैनिकों को सीमा पर तैनात किया था उन्हें अंदाज नहीं था कि उन्हें अपने ही पूर्ववर्ती प्रांत के लोगों पर बम व गोलियां बरसाना पड़ेंगी। यूक्रेन के लोग स्लाव हैं और रूसी मातृभाषा बोलते हैं। इस जंग में अब तक रूस को भी भारी सैन्य हानि उठाना पड़ी है। उसके कई सैनिक व एक मेजर जनरल के भी मारे जाने का दावा किया गया है। इससे रूसी सेना के हौसले पर भी मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है। 

विस्तार

24 फरवरी से जारी रूस-यूक्रेन जंग को मंगलवार 8 मार्च को 13 दिन हो गए हैं। दोनों ओर से घमासान जारी है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन साफतौर पर कह चुके हैं कि यूक्रेन को लेकर उनके इरादे अटल हैं, उन्हें कोई डिगा नहीं सकता। उधर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की भी हथियार डालने को तैयार नहीं हैं। यूक्रेन की सेना विशाल रूसी फौज से लोहा ले रही है। रूस को पस्त करना मुश्किल है, लेकिन उसके लिए जीत आसान भी नजर नहीं आ रही है। आइये जानते हैं यूक्रेन की सेना कैसे रूस को छका रही है? 

जंग छिड़े करीब दो सप्ताह हो चुके हैं, लेकिन महाशक्ति देश रूस बड़ी कामयाबी हासिल नहीं कर पाया है, सिवाय व्यापक विध्वंस और हिंसा के। यूक्रेन रूस को कड़ी चुनौती दे रहा है। जानकारों का कहना है कि रूसी फौज की तादाद भले ही बड़ी हो, लेकिन यूक्रेन की अच्छी तैयारी, राष्ट्रीय एकजुटता व रूसी गलतियों का करारा जवाब देने की उसकी रणनीति ने उसकी सेना का हौसला बढ़ा रखा है। एक वरिष्ठ फ्रांसीसी सैन्य सूत्र के अनुसार रूसी मूल रूप से बहुत तेजी से आगे नहीं बढ़ रहे हैं। किसी मोड़ पर रूसी फौज को फिर से संगठित करना पड़ेगा, लेकिन यह उसकी विफलता का संकेत नहीं होगा। यूक्रेनी सेना के हौसले से पश्चिम के उसके सहयोगी  देश खुश नजर आ रहे हैं। ये देश रूस से सीधे पंगा लेने व जंग में कूदने के बजाए यूक्रेन की परोक्ष मदद कर रहे हैं। ऐसे में उन पांच प्रमुख कारणों को जानना जरूरी है, जिनके दम पर यूक्रेन जंग में अब तक टिका ही नहीं हुआ है, बल्कि रूस के लिए कड़े प्रतिरोध पैदा कर रहा है। 

ये हैं पांच प्रमुख कारण

 

  1. पश्चिमी देशों की मदद लेकर यूक्रेन ने 2014 के बाद अपने सशस्त्र बलों को काफी मजबूत किया है। उस वक्त रूस ने क्रीमिया के यूक्रेनी प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया था और रूस समर्थक अलगाववादियों ने यूक्रेन के पूर्वी हिस्सों पर कब्जा जमा लिया था। 2016 में नाटो और कीव ने यूक्रेन के विशेष बलों के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया, जो अब 2,000 की संख्या में हैं और नागरिक स्वयंसेवकों की मदद करने में सक्षम हैं। जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के एक सहायक एसोसिएट प्रोफेसर डगलस लंदन का कहना है कि यूक्रेनीवासियों ने पिछले आठ साल रूसी कब्जे का विरोध करने की योजना बनाने, प्रशिक्षण लेने और खुद को शस्त्रों से लैस करने में बिताए हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के अनुसार यूक्रेन जानता है कि अमेरिका और नाटो युद्ध के मैदान में उसके बचाव के लिए नहीं आएंगे। इसलिए उसने अपनी रणनीति को रूस को चोंट पहुंचाने पर केंद्रित किया,  ताकि रूसी इरादों को अस्थिर किया जा सके। 
  2. रूस को पूर्ववर्ती सोवियत संघ के वक्त का यूक्रेन पता था, जब मॉस्को से यूक्रेन संचालित होता था। बीते 25-30 सालों में यूक्रेन में हुए बदलाव व भौगोलिक परिवर्तनों का रूसी फौजों की जानकारी नहीं है। ऐसा लगता है कि रूस ने यूक्रेनी सेना के घरेलू मैदानी क्षमताओं को कम कर के आंका है। कॉलेज ऑफ इंटरनेशनल सिक्योरिटी अफेयर्स के प्रोफेसर स्पेंसर मेरेडिथ ने कहा कि यूक्रेनी जनता स्वयं हथियार उठा लेगी, इसका अंदाजा भी रूस को शायद नहीं था। 
  3. यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अपनी जान की जोखिम के बाद भी कीव में मौजूद हैं और सेना व देशवासियों का हौसला बढ़ा रहे हैं। यूक्रेन के आम लोग फ्रंटलाइन वर्कर व सैनिक बतौर सेवाएं दे रहे हैं, उनके परिवार को पहले ही सुरक्षित बाहर भेजा जा चुका है। 
  4. सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि 24 फरवरी को जंग शुरू होने के बाद रूस ने शुरुआती दिनों में ही रणनीतिक त्रुटियां कीं। शुरू में बहुत कम थल सैनिकों को रणभूमि में भेजा। वह थल व वायु सेना को एक साथ तैनात करने में विफल रहा। मास्को को कुछ ही दिनों में सैन्य सफलता हासिल करने की उम्मीद थी, लेकिन यूक्रेनी सेना ने नाकों चने चबवा दिए। 
  5. रूस ने जब हजारों सैनिकों को सीमा पर तैनात किया था उन्हें अंदाज नहीं था कि उन्हें अपने ही पूर्ववर्ती प्रांत के लोगों पर बम व गोलियां बरसाना पड़ेंगी। यूक्रेन के लोग स्लाव हैं और रूसी मातृभाषा बोलते हैं। इस जंग में अब तक रूस को भी भारी सैन्य हानि उठाना पड़ी है। उसके कई सैनिक व एक मेजर जनरल के भी मारे जाने का दावा किया गया है। इससे रूसी सेना के हौसले पर भी मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है। 

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