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क्यों गिर रही है जापान की आर्थिक हैसियत: क्या बन जाएगा एक गरीब देश?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, टोक्यो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 03 Jan 2022 07:44 PM IST

सार

जापान के मेधावी लोग अब बेहतर तनख्वाह और कार्य-स्थितियों के लिए विदेशों में नौकरी करना पसंद कर रहे हैं। इसलिए देश धीरे-धीरे पर्यटन उद्योग पर निर्भर होता जा रहा है। 30 वर्ष पहले जापान को दुनिया का सबसे महंगा देश बताया जाता था। लेकिन अब धनी देशों से आने वाले लोगों को यहां बहुत सी चीजें काफी सस्ती महसूस होती हैं…

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जापान गरीब देश होने की तरफ बढ़ रहा है। इस धनी देश के बारे में ऐसी खबर पर बहुत से लोगों को यकीन करना शायद मुमकिन ना हो, लेकिन एक ताजा किताब में दावा किया गया है कि देश में बहुत से लोगों के लिए रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किल हो गई है। इस किताब के लेखक वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम के वित्तीय रिपोर्टर रेई नाकाफुजी हैं।

जापान पर्यटन का सस्ता विकल्प

नाकाफुजी ने बताया है कि जापान के मेधावी लोग अब बेहतर तनख्वाह और कार्य-स्थितियों के लिए विदेशों में नौकरी करना पसंद कर रहे हैं। इसलिए देश धीरे-धीरे पर्यटन उद्योग पर निर्भर होता जा रहा है। 30 वर्ष पहले जापान को दुनिया का सबसे महंगा देश बताया जाता था। लेकिन अब धनी देशों से आने वाले लोगों को यहां बहुत सी चीजें काफी सस्ती महसूस होती हैं। यह देश की आर्थिक हैसियत गिरने का संकेत है।

किताब में बताया गया है कि आज अमेरिका में जो लग्जरी होटल रूम 1,400 डॉलर प्रति दिन की लागत पर मिलता है, वह जापान में सात सौ डॉलर में उपलब्ध है। इसी तरह खाने-पीने की कई चीजें अमेरिका की तुलना में आधे दाम पर यहां मिल रही हैं। यही हाल मनोरंजन पर होने वाले खर्च का है। इसलिए धनी देशों के लिए लोगों के लिए जापान पर्यटन का सस्ता विकल्प बन गया है।

नाकाफुजी ने लिखा है- ‘दूसरे देशों की तुलना में जापान में चीजें और सेवाएं सस्ती मिल रही हैं। देश के पर्यटन उद्योग में हाल के वर्षों में आई खुशहाली का यही प्रमुख कारण है। 2013 की तुलना में 2018 में विदेशी पर्यटकों ने यहां तीन गुना ज्यादा रकम खर्च की।’

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जापान में पर्यटन बढ़ने की वजह यहां सर्विस सेक्टर और पर्यटन उद्योग को सरकार की तरफ से दिया गया प्रोत्साहन है। 2019 में हुए रग्बी वर्ल्ड कप और 2020 के ओलिंपिक खेलों की मेजबानी को देखते हुए सरकार ने इन क्षेत्रों को बढ़ावा देने की नीति अपनाई थी। लेकिन कई अर्थशास्त्रियों की राय है कि ‘आबेनोमिक्स’ ने देश की आर्थिक सेहत बिगाड़ दी है। पूर्व प्रधानमंत्री शिन्जो आबे की नीतियों को ‘आबेनोमिक्स’ के रूप में जाना जाता है। इन नीतियों के तहत पूंजीपतियों के हक में नीतियां बनाई गईं और कहा गया था कि उनकी समृद्धि बढ़ने पर उसके लाभ दूसरे तबकों को भी मिलेंगे।

‘आबेनोमिक्स’ को बदलेंगे किशिदा

पिछले साल देश के प्रधानमंत्री बने फुमियो किशिदा ने अब शिन्जो आबे की नीतियों को बदलने का संकेत दिया है। उनकी सरकार ने एलान किया है कि अगले फरवरी से स्वास्थ्य, बाल देखभाल और शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहे कर्मचारियों की तनख्वाह तीन फीसदी बढ़ाई जाएगी। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि किशिदा के लिए पुरानी नीतियों में बुनियादी बदलाव लाना संभव नहीं होगा। बल्कि एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पूंजीपतियों ने किशिदा की नीतियों का विरोध तेज कर दिया है।

इस मुद्दे पर देश में तीखी बहस चल रही है। जापानी भाषा के प्रमुख अखबार मैनिची शिम्बुन ने पिछले साल एक संपादकीय में जापान में बढ़ रही गैर बराबरी का जिक्र करते हुए ‘आबेनोमिक्स’ पर पुनर्विचार करने की वकालत की थी।  

विस्तार

जापान गरीब देश होने की तरफ बढ़ रहा है। इस धनी देश के बारे में ऐसी खबर पर बहुत से लोगों को यकीन करना शायद मुमकिन ना हो, लेकिन एक ताजा किताब में दावा किया गया है कि देश में बहुत से लोगों के लिए रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किल हो गई है। इस किताब के लेखक वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम के वित्तीय रिपोर्टर रेई नाकाफुजी हैं।

जापान पर्यटन का सस्ता विकल्प

नाकाफुजी ने बताया है कि जापान के मेधावी लोग अब बेहतर तनख्वाह और कार्य-स्थितियों के लिए विदेशों में नौकरी करना पसंद कर रहे हैं। इसलिए देश धीरे-धीरे पर्यटन उद्योग पर निर्भर होता जा रहा है। 30 वर्ष पहले जापान को दुनिया का सबसे महंगा देश बताया जाता था। लेकिन अब धनी देशों से आने वाले लोगों को यहां बहुत सी चीजें काफी सस्ती महसूस होती हैं। यह देश की आर्थिक हैसियत गिरने का संकेत है।

किताब में बताया गया है कि आज अमेरिका में जो लग्जरी होटल रूम 1,400 डॉलर प्रति दिन की लागत पर मिलता है, वह जापान में सात सौ डॉलर में उपलब्ध है। इसी तरह खाने-पीने की कई चीजें अमेरिका की तुलना में आधे दाम पर यहां मिल रही हैं। यही हाल मनोरंजन पर होने वाले खर्च का है। इसलिए धनी देशों के लिए लोगों के लिए जापान पर्यटन का सस्ता विकल्प बन गया है।

नाकाफुजी ने लिखा है- ‘दूसरे देशों की तुलना में जापान में चीजें और सेवाएं सस्ती मिल रही हैं। देश के पर्यटन उद्योग में हाल के वर्षों में आई खुशहाली का यही प्रमुख कारण है। 2013 की तुलना में 2018 में विदेशी पर्यटकों ने यहां तीन गुना ज्यादा रकम खर्च की।’

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जापान में पर्यटन बढ़ने की वजह यहां सर्विस सेक्टर और पर्यटन उद्योग को सरकार की तरफ से दिया गया प्रोत्साहन है। 2019 में हुए रग्बी वर्ल्ड कप और 2020 के ओलिंपिक खेलों की मेजबानी को देखते हुए सरकार ने इन क्षेत्रों को बढ़ावा देने की नीति अपनाई थी। लेकिन कई अर्थशास्त्रियों की राय है कि ‘आबेनोमिक्स’ ने देश की आर्थिक सेहत बिगाड़ दी है। पूर्व प्रधानमंत्री शिन्जो आबे की नीतियों को ‘आबेनोमिक्स’ के रूप में जाना जाता है। इन नीतियों के तहत पूंजीपतियों के हक में नीतियां बनाई गईं और कहा गया था कि उनकी समृद्धि बढ़ने पर उसके लाभ दूसरे तबकों को भी मिलेंगे।

‘आबेनोमिक्स’ को बदलेंगे किशिदा

पिछले साल देश के प्रधानमंत्री बने फुमियो किशिदा ने अब शिन्जो आबे की नीतियों को बदलने का संकेत दिया है। उनकी सरकार ने एलान किया है कि अगले फरवरी से स्वास्थ्य, बाल देखभाल और शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहे कर्मचारियों की तनख्वाह तीन फीसदी बढ़ाई जाएगी। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि किशिदा के लिए पुरानी नीतियों में बुनियादी बदलाव लाना संभव नहीं होगा। बल्कि एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पूंजीपतियों ने किशिदा की नीतियों का विरोध तेज कर दिया है।

इस मुद्दे पर देश में तीखी बहस चल रही है। जापानी भाषा के प्रमुख अखबार मैनिची शिम्बुन ने पिछले साल एक संपादकीय में जापान में बढ़ रही गैर बराबरी का जिक्र करते हुए ‘आबेनोमिक्स’ पर पुनर्विचार करने की वकालत की थी।  

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