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कुरुक्षेत्र: उत्तराखंड में कांग्रेस की संभावनाओं को खुद रौंद रहे हैं कांग्रेसी, प्रियंका की पहल पर आहत हरीश रावत समेत सभी नेता दिल्ली तलब 

उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के सेनापति पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत विरोधी सेना के प्रहारों से नहीं बल्कि अपनी सेना के कुछ सिपहसालारों से आहत हैं। बुधवार को एक ट्वीट के जरिए हरीश रावत ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कांग्रेस नेतृत्व को आगाह किया कि अगर संगठन के कथित कर्णधारों की मनमानी पर रोक नहीं लगाई गई तो नए साल में जब राज्य में चुनाव होंगे तो कुछ भी हो सकता है।

रावत की इस पीड़ा का केंद्रीय नेतृत्व ने तत्काली संज्ञान लिया और सबसे पहले कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने हरीश रावत से फोन पर बात की। प्रियंका ने अपने सूत्रों के जरिए पूरे मामले का फीड बैक लिया और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से भी बात की। इसके बाद ही शुक्रवार को हरीश रावत, प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोंडियाल, नेता विधायक दल प्रीतम सिंह और प्रभारी देवेंद्र यादव समेत सभी संबंधित नेताओं को केंद्रीय नेतृत्व ने दिल्ली तलब किया है। 

कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक हरीश रावत की पीड़ा के पीछे कांग्रेस हाईकमान के वो सिपहसालार हैं जिन्होंने इन दिनों अपनी मनमानी से उत्तराखंड में कांग्रेस और उसकी जीत की संभावनाओं को रौंदना शुरु कर दिया है। यह जानकारी देने वाले कांग्रेस के एक युवा नेता ने बताया कि इनमें कांग्रेस के दो राष्ट्रीय सचिव, एक महासचिव, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष समेत कुछ वो नेता शामिल हैं जिन्हें कायदे से पार्टी से बाहर होना चाहिए लेकिन वह इस समय प्रदेश में कांग्रेस के कर्ता-धर्ता बने हुए हैं। 

हरीश रावत उत्तराखंड में सिर्फ कांग्रेस के ही नहीं बल्कि पूरे राज्य के सबसे कद्दावर और वरिष्ठ नेता हैं। नारायण दत्त तिवारी के बाद कांग्रेस के पास उनसे बड़ा और लोकप्रिय दूसरा कोई चेहरा नहीं है। यह बात कांग्रेस नेतृत्व को भली-भांति पता है। इसीलिए उन्हें पंजाब के प्रभार से मुक्त करके उत्तराखंड में पार्टी को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी दी गई है। भले ही उन्हें अभी तक मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया लेकिन चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर यह संकेत जरूर दे दिया गया मुख्यमंत्री पद के लिए हरीश रावत ही कांग्रेस का अघोषित चेहरा हैं। इसके बाद हरीश रावत पूरे मनोयोग से चुनाव अभियान में जुट गए। पार्टी हाईकमान यानी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी ने हरीश रावत को अपना पूरा भरोसा देते हुए तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह से इस्तीफा लेकर रावत की पसंद गणेश गोंडियाल को संगठन की कमान दे दी। प्रीतम सिंह नाराज न हों इसलिए नए प्रदेश अध्यक्ष को संगठन में किसी भी तरह के फेरबदल न करने की हिदायत दी गई और प्रीतम सिंह को नेता विधायक दल बने रहने दिया गया। इसके साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष भी घोषित कर दिए गए। 

हरीश रावत को उम्मीद थी कि उन्हें संगठन का पूरा सहयोग मिलेगा और सब मिलकर विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत सुनिश्चित करेंगे। लेकिन पिछले कुछ महीनों में हुआ यह कि संगठन में फेरबदल की पाबंदी की वजह से प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोंडियाल के हाथ पांव बंध गए और कांग्रेस के भीतर हरीश रावत को रोकने का खेल शुरु हो गया। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि पूर्व अध्यक्ष प्रीतम सिंह जो कभी हरीश रावत के वफादार माने जाते थे, बतौर नेता कांग्रेस विधायक दल अगले मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी बिसात बिछानी शुरु कर दी। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस सचिव और प्रभारी देवेंद्र यादव को अपने भरोसे में ले लिया। 

देवेंद्र यादव बतौर प्रभारी जिनकी जिम्मेदारी सभी नेताओं और उनके समर्थकों के बीच समन्वय और संतुलन बनाकर हाईकमान के साथ संवाद बनाए रखना, भी सवालों के घेरे में हैं। उनकी भूमिका को लेकर राज्य कांग्रेस के कई नेता कहते हैं कि उन्होंने बजाय आग को ठंडा करने के उसे भड़काने का काम किया है। यादव से सबसे बड़ी शिकायत है कि उन्होंने पूरे राज्य में चार सौ से ज्यादा दिल्ली कांग्रेस के अपने समर्थकों को बतौर पर्यवेक्षक बनाकर राज्य के विभिन्न जिलों में भेजा है। इन पर्यवेक्षकों ने कांग्रेस हाईकमान और राहुल गांधी का नाम लेकर स्थानीय कार्यकर्ताओं को इस कदर उलझा रखा है कि उन्हें पार्टी के लिए प्रचार और जनसंपर्क का समय ही नहीं मिल पा रहा है। कांग्रेस के एक विधायक का कहना है कि तमाम टिकटार्थी अपने अपने जिलों में डेरा डाले इन पर्यवेक्षकों की सेवा टहल में जुटे हुए हैं जिससे संगठन का काम पूरी तरह पंगु हो गया है। हरीश रावत की पीड़ा का एक कारण यह भी है। उधर दिल्ली में एक दलित की जमीन कब्जाने के आरोप को लेकर राज्य में भाजपा और आम आदमी पार्टी कांग्रेस प्रभारी के खिलाफ प्रचार कर रही है। इस मामले की अखबारों में छपी खबरों की कतरने बांटी जा रही हैं। 

कांग्रेस के एक पूर्व पदाधिकारी के मुताबिक, प्रदेश कांग्रेस के सारे पदाधिकारी प्रदेश अध्यक्ष की मानने की बजाय वही कर रहे हैं जो उन्हें प्रीतम सिंह और देवेंद्र यादव कहते हैं।प्रदेश कांग्रेस की सोशल मीडिया शाखा हरीश रावत की जन सभाओं कार्यक्रमों को कोई तवज्जो नहीं देती है। बल्कि लगातार यह प्रचार किया जाता है कि प्रदेश के चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़े जाएंगे और मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फैसला चुनाव के बाद विधायक दल और हाईकमान करेगा। 

कांग्रेस सूत्रों का यह भी कहना है कि इस प्रकरण में दो और अहम किरदार हैं जिनकी वजह से भी हरीश रावत आहत और परेशान हैं। एक हैं पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के निजी सचिव रहे आर्येंद्र शर्मा और दूसरे प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रंजीत रावत। आर्येंद्र शर्मा 2012 में कांग्रेस टिकट पर सहसपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और हार गए। 2017 में फिर वह टिकट मांग रहे थे, लेकिन तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को सहसपुर से पार्टी ने उम्मीदवार बना दिया। आर्येंद्र इससे इस कदर नाराज हुए कि उनके समर्थकों ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में जमकर तोड़फोड़ की और उसके बाद आर्येंद्र बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ गए। उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया।लेकिन प्रीतम सिंह जब अध्यक्ष बने तो उन्होंने आर्येंद्र शर्मा को पार्टी में वापस ले लिया। बताया जाता है कि अब आर्येंद्र शर्मा भी प्रीतम सिंह और देंवेंद्र यादव के साथ मिलकर हरीश रावत के लिए कांटे बो रहे हैं।

दूसरे रंजीत रावत जिन्हें कभी हरीश रावत का बेहद करीबी माना जाता था। यहां तक कि हरीश रावत के मुख्यमंत्री कार्यालय में रंजीत रावत की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था और इस वजह से हरीश रावत पर भी सवाल उठे। लेकिन जब 2017 में हरीश रावत चुनाव हारने के बाद केंद्र में सक्रिय हो गए तो रंजीत रावत ने पाला बदल कर अपनी निष्ठा प्रीतम सिंह के प्रति कर ली। अब रंजीत रावत भी प्रीतम सिंह के साथ हैं और वो सब कर रहे हैं जिससे हरीश रावत कमजोर हों। 

हरीश रावत को दिल्ली से आने वाले उन नेताओं से भी शिकायत है जो देहरादून आते ही सामूहिक नेतृत्व का राग अलापने लगते हैं जबकि राज्य की जनता के सामने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मुकाबले कांग्रेस का कोई चेहरा चाहिए और हरीश रावत के समर्थकों का कहना है कि यह चेहरा सिर्फ हरीश रावत का ही हो सकता है। लेकिन प्रीतम सिंह जो नेता विपक्ष हैं और प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, उनका खेमा रावत का रास्ता रोक कर अपने नेता प्रीतम सिंह के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहता है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक दिल्ली दरबार में कांग्रेस के शक्तिशाली महासचिव केसी वेणुगोपाल के बेहद करीबी और पार्टी सचिव काजी निजामुद्दीन जो उत्तराखंड से ही हैं, का पूरा सहयोग देवेंद्र यादव और प्रीतम सिंह को मिल रहा है। यादव को उत्तराखंड का प्रभार दिलाने में भी निजामुद्दीन की अहम भूमिका रही है। 

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