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कामयाबी: पहली बार टीबी मरीजों के लार के सैंपल लेकर ड्रोन पहुंचा लैब

अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली।
Published by: Jeet Kumar
Updated Mon, 11 Apr 2022 05:54 AM IST

सार

हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले मेंटीबी के सैंपल को हवाई मार्ग से लैब तक पहुंचाने में ड्रोन की मदद ली गई। बीते चार वर्षों से इस पर काम चल रहा था, जिसके बाद अब जाकर सफल परिणाम मिले हैं।

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चिकित्सा क्षेत्र में नई तकनीकों के इस्तेमाल में भारत को बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। देश में पहली बार टीबी मरीजों के लार सैंपल को ड्रोन से लैब तक पहुंचाया गया। इसमें पता चला कि पहाड़ी क्षेत्र में सैंपल को ड्रोन से भेजना दोपहिया की तुलना में चार गुना सस्ता है और इसे पांच गुना तेजी से गंतव्य तक पहुंचाया जा सकता है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने रविवार को बताया कि हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले मेंटीबी के सैंपल को हवाई मार्ग से लैब तक पहुंचाने में ड्रोन की मदद ली गई। बीते चार वर्षों से इस पर काम चल रहा था, जिसके बाद अब जाकर सफल परिणाम मिले हैं।

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. समीरन पांडा ने इसे पूरे देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानते हुए कहा कि टीबी मुक्त अभियान का लक्ष्य हासिल करना अब और भी आसान होगा। इस दौरान आईसीएमआर की एक समिति ने इस पूरी यात्रा को बाकायदा हर पैमाने पर परखा और फिर इसे लेकर एक अध्ययन भी तैयार किया है। 

समय व खर्च की कसौटी पर खरा
आईसीएमआर के वरिष्ठ डॉ. पी गणेश कुमार के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में उनकी टीम ने करीब 151 बार ड्रोन और मोटरबाइक से सैंपल को लैब तक पहुंचाया। इस दौरान ड्रोन ने सैंपल पहुंचने के लिए करीब सात मिनट का सफर पूरा किया। जबकि उसी स्थान से लैब तक सैंपल पहुंचाने में बाइक को 22 मिनट लगे। वैज्ञानिकों ने कहा कि ड्रोन से करीब 51.6 रुपये का खर्च आया, जबकि बाइक से करीब 106.28 रुपये खर्च आया।

विस्तार

चिकित्सा क्षेत्र में नई तकनीकों के इस्तेमाल में भारत को बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। देश में पहली बार टीबी मरीजों के लार सैंपल को ड्रोन से लैब तक पहुंचाया गया। इसमें पता चला कि पहाड़ी क्षेत्र में सैंपल को ड्रोन से भेजना दोपहिया की तुलना में चार गुना सस्ता है और इसे पांच गुना तेजी से गंतव्य तक पहुंचाया जा सकता है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने रविवार को बताया कि हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले मेंटीबी के सैंपल को हवाई मार्ग से लैब तक पहुंचाने में ड्रोन की मदद ली गई। बीते चार वर्षों से इस पर काम चल रहा था, जिसके बाद अब जाकर सफल परिणाम मिले हैं।

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. समीरन पांडा ने इसे पूरे देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानते हुए कहा कि टीबी मुक्त अभियान का लक्ष्य हासिल करना अब और भी आसान होगा। इस दौरान आईसीएमआर की एक समिति ने इस पूरी यात्रा को बाकायदा हर पैमाने पर परखा और फिर इसे लेकर एक अध्ययन भी तैयार किया है। 

समय व खर्च की कसौटी पर खरा

आईसीएमआर के वरिष्ठ डॉ. पी गणेश कुमार के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में उनकी टीम ने करीब 151 बार ड्रोन और मोटरबाइक से सैंपल को लैब तक पहुंचाया। इस दौरान ड्रोन ने सैंपल पहुंचने के लिए करीब सात मिनट का सफर पूरा किया। जबकि उसी स्थान से लैब तक सैंपल पहुंचाने में बाइक को 22 मिनट लगे। वैज्ञानिकों ने कहा कि ड्रोन से करीब 51.6 रुपये का खर्च आया, जबकि बाइक से करीब 106.28 रुपये खर्च आया।

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