सार
कांग्रेस के आठ सांसदों का खेमा चार गुटों में बंटा दिखा। चुनाव की समीक्षा के लिए आए नेताओं का यह रूप रंग और उन्हें खुलकर बोलता हुआ देखकर कांग्रेस अध्यक्ष ने दांतों तले उंगली दबा ली होगी। हालांकि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता इसे पार्टी में लोकतंत्र के जिंदा होने से जोड़ देते हैं। लेकिन समझने वाली बात है कि कांग्रेस में लोकतंत्र भी अब एक निराले मोड़ पर पहुंच रहा है…
राजनीति और एक दिवसीय क्रिकेट मैच में नतीजों के बारे दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कभी सोचा नहीं होगा कि उनके द्वारा बुलाई बैठक में, उनकी मौजूदगी में ही पंजाब कांग्रेस के चार गुट आपस में ही भिड़ पड़ेंगे। पंजाब के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू के दो लाइन के इस्तीफा ने भी कांग्रेस के गलियारों में खूब हलचल मचाई। पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम और सीएम का चेहरा बनाने पर जहां नेताओं ने भड़ास निकाली, वहीं हरीश चौधरी और अजय माकन पर भी खूब आरोप लगे।
कांग्रेस के आठ सांसदों का खेमा चार गुटों में बंटा दिखा। चुनाव की समीक्षा के लिए आए नेताओं का यह रूप रंग और उन्हें खुलकर बोलता हुआ देखकर कांग्रेस अध्यक्ष ने दांतों तले उंगली दबा ली होगी। हालांकि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता इसे पार्टी में लोकतंत्र के जिंदा होने से जोड़ देते हैं। लेकिन समझने वाली बात है कि कांग्रेस में लोकतंत्र भी अब एक निराले मोड़ पर पहुंच रहा है।
गुलाम नबी आजाद के घर जुटे ‘जी23’ के नेता
कांग्रेस नेताओं का एक गुट शाम होते-होते पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के घर पर जमा हुआ। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद आजाद के घर पर बैठक और रात्रिभोज का आयोजन था। पहले यह बैठक पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के घर पर होनी थी, लेकिन एक साक्षात्कार के बाद कांग्रेस के कुछ नेता सिब्बल को ही उनकी हैसियत बताने में जुट गए हैं। गुलाम नबी आजाद के घर पर हुई बैठक में आनंद शर्मा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद शशि थरूर, सांसद मनीष तिवारी, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण, पंजाब की पूर्व प्रधान राजिंदर कौर भट्ठल, कुलदीप शर्मा, वरिष्ठ नेता अखिलेश प्रताप सिंह समेत तमाम नेता जुटे। इन सभी नेताओं का मकसद कांग्रेस में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा देना, संगठन में सुधार की आवाज को तेज करना, सही हाथों में चुनाव के जरिए कांग्रेस की कमान सौंपने के एजेंडे पर चर्चा करना रहा। मिल रहे संकेतों के अनुसार बैठक के बाद पार्टी के नेताओं का यह समूह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखेगा। पार्टी संगठन में सुधार पर जोर देगा।
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह अच्छे वकील हैं, लेकिन अच्छे नेता नहीं हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने याद दिलाते हुए पूछा कि सिब्बल ने पिछला चुनाव कब लड़ा था? लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि पता नहीं सिब्बल कहां के नेता हैं। बात यही नहीं थमी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सिब्बल को डिनर और बंगलों वाली कांग्रेस बना देने के आरोप से सजा दिया। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत काफी पहले से सिब्बल से खफा हैं। उन्होंने कहा कि सिब्बल को कांग्रेस की एबीसीडी का कोई ज्ञान नहीं है। वह फ्रस्ट्रेशन में बात कर रहे हैं।
अजीब दुविधा: हार की समीक्षा करें कि आपसी झगड़े सुलझाएं
एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष पांच राज्यों के चुनाव नतीजों पर समीक्षा कर रही हैं। उन्होंने पांच राज्यों के कांग्रेस प्रमुखों से इस्तीफा भी दिलवा दिया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश में पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा कर रही हैं, दूसरी तरफ पार्टी के नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व तथा कांग्रेस की दशा और दिशा को लेकर मोर्चा खोल दिया है। पार्टी के एक पूर्व महासचिव का कहना है कि इस तरह की स्थिति संक्रमण काल में ही आती है। पार्टी के भीतर चल रहे घटनाक्रमों को वह कुछ मामलों में जरूरी मान रहे हैं। उन्हें 2021 में पश्चिम बंगाल और असम विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के बाद से ही इस स्थिति का अंदेशा था। कर्नाटक के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का कहना है कि जो कांग्रेस में हो रहा है, उससे केंद्रीय नेतृत्व के दायरे से चीजें बाहर जाती दिखाई दे रही हैं। अभी तीन दिन पहले ही कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई थी, और अब पूरी लड़ाई सतह पर आ रही है। यह ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि अब कांग्रेस के भीतर बड़े नेताओं का एक गुट धीरे-धीरे नेहरू-गांधी परिवार की तरफ मुखर हो रहा है। यह साफ-साफ पार्टी के दो फाड़ हो जाने का संकेत है।
इन लोगों के सिवा दूसरे चेहरे क्यों नहीं दिखाई देते?
कांग्रेस गुट-23 के एक बड़े नेता ने कहा कि वह ओछी बात नहीं करना चाहते। लेकिन यह तकलीफ की बात है कि पार्टी नेतृत्व सुधार का संकेत नहीं दे रहा है। उसने पांच राज्यों के चुनाव की समीक्षा के पांच लोगों को जिम्मेदारी सौंपी है। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश को मणिपुर, जितेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश, अविनाश पांडे को उत्तराखंड, अजय माकन को पंजाब और रजनी पाटील को गोवा के बारे में रिपोर्ट देनी है। सूत्र का कहना है कि समीक्षा के नाम पर पर्दा डालने की कोशिशों से कांग्रेस का भला नहीं होने वाला है।
विस्तार
राजनीति और एक दिवसीय क्रिकेट मैच में नतीजों के बारे दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कभी सोचा नहीं होगा कि उनके द्वारा बुलाई बैठक में, उनकी मौजूदगी में ही पंजाब कांग्रेस के चार गुट आपस में ही भिड़ पड़ेंगे। पंजाब के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू के दो लाइन के इस्तीफा ने भी कांग्रेस के गलियारों में खूब हलचल मचाई। पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम और सीएम का चेहरा बनाने पर जहां नेताओं ने भड़ास निकाली, वहीं हरीश चौधरी और अजय माकन पर भी खूब आरोप लगे।
कांग्रेस के आठ सांसदों का खेमा चार गुटों में बंटा दिखा। चुनाव की समीक्षा के लिए आए नेताओं का यह रूप रंग और उन्हें खुलकर बोलता हुआ देखकर कांग्रेस अध्यक्ष ने दांतों तले उंगली दबा ली होगी। हालांकि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता इसे पार्टी में लोकतंत्र के जिंदा होने से जोड़ देते हैं। लेकिन समझने वाली बात है कि कांग्रेस में लोकतंत्र भी अब एक निराले मोड़ पर पहुंच रहा है।
गुलाम नबी आजाद के घर जुटे ‘जी23’ के नेता
कांग्रेस नेताओं का एक गुट शाम होते-होते पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के घर पर जमा हुआ। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद आजाद के घर पर बैठक और रात्रिभोज का आयोजन था। पहले यह बैठक पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के घर पर होनी थी, लेकिन एक साक्षात्कार के बाद कांग्रेस के कुछ नेता सिब्बल को ही उनकी हैसियत बताने में जुट गए हैं। गुलाम नबी आजाद के घर पर हुई बैठक में आनंद शर्मा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद शशि थरूर, सांसद मनीष तिवारी, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण, पंजाब की पूर्व प्रधान राजिंदर कौर भट्ठल, कुलदीप शर्मा, वरिष्ठ नेता अखिलेश प्रताप सिंह समेत तमाम नेता जुटे। इन सभी नेताओं का मकसद कांग्रेस में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा देना, संगठन में सुधार की आवाज को तेज करना, सही हाथों में चुनाव के जरिए कांग्रेस की कमान सौंपने के एजेंडे पर चर्चा करना रहा। मिल रहे संकेतों के अनुसार बैठक के बाद पार्टी के नेताओं का यह समूह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखेगा। पार्टी संगठन में सुधार पर जोर देगा।
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह अच्छे वकील हैं, लेकिन अच्छे नेता नहीं हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने याद दिलाते हुए पूछा कि सिब्बल ने पिछला चुनाव कब लड़ा था? लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि पता नहीं सिब्बल कहां के नेता हैं। बात यही नहीं थमी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सिब्बल को डिनर और बंगलों वाली कांग्रेस बना देने के आरोप से सजा दिया। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत काफी पहले से सिब्बल से खफा हैं। उन्होंने कहा कि सिब्बल को कांग्रेस की एबीसीडी का कोई ज्ञान नहीं है। वह फ्रस्ट्रेशन में बात कर रहे हैं।
अजीब दुविधा: हार की समीक्षा करें कि आपसी झगड़े सुलझाएं
एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष पांच राज्यों के चुनाव नतीजों पर समीक्षा कर रही हैं। उन्होंने पांच राज्यों के कांग्रेस प्रमुखों से इस्तीफा भी दिलवा दिया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश में पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा कर रही हैं, दूसरी तरफ पार्टी के नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व तथा कांग्रेस की दशा और दिशा को लेकर मोर्चा खोल दिया है। पार्टी के एक पूर्व महासचिव का कहना है कि इस तरह की स्थिति संक्रमण काल में ही आती है। पार्टी के भीतर चल रहे घटनाक्रमों को वह कुछ मामलों में जरूरी मान रहे हैं। उन्हें 2021 में पश्चिम बंगाल और असम विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के बाद से ही इस स्थिति का अंदेशा था। कर्नाटक के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का कहना है कि जो कांग्रेस में हो रहा है, उससे केंद्रीय नेतृत्व के दायरे से चीजें बाहर जाती दिखाई दे रही हैं। अभी तीन दिन पहले ही कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई थी, और अब पूरी लड़ाई सतह पर आ रही है। यह ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि अब कांग्रेस के भीतर बड़े नेताओं का एक गुट धीरे-धीरे नेहरू-गांधी परिवार की तरफ मुखर हो रहा है। यह साफ-साफ पार्टी के दो फाड़ हो जाने का संकेत है।
इन लोगों के सिवा दूसरे चेहरे क्यों नहीं दिखाई देते?
कांग्रेस गुट-23 के एक बड़े नेता ने कहा कि वह ओछी बात नहीं करना चाहते। लेकिन यह तकलीफ की बात है कि पार्टी नेतृत्व सुधार का संकेत नहीं दे रहा है। उसने पांच राज्यों के चुनाव की समीक्षा के पांच लोगों को जिम्मेदारी सौंपी है। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश को मणिपुर, जितेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश, अविनाश पांडे को उत्तराखंड, अजय माकन को पंजाब और रजनी पाटील को गोवा के बारे में रिपोर्ट देनी है। सूत्र का कहना है कि समीक्षा के नाम पर पर्दा डालने की कोशिशों से कांग्रेस का भला नहीं होने वाला है।
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