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कच्चे तेल में तेजी: रूस-यूक्रेन युद्ध से पैदा हुए 2008 जैसे हालात, क्या फिर बंद होंगे रिलायंस के पेट्रोल पंप?

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: दीपक चतुर्वेदी
Updated Fri, 25 Mar 2022 01:36 PM IST

सार

RIL Fuel Retailers Fear Replay Of 2008: रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के चलते कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से तेल कंपनियों का नुकसान बढ़ता जा रहा है। इन हालातों में रिलायंस पेट्रोल पंप पर एक बार फिर 2008 जैसे हालात बनते दिख रहे हैं। गौरतलब है कि तक कच्चे तेल का दाम 150 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया था और रिलायंस ने अपने सभी पेट्रोल पंप बंद कर दिए थे। 
 

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रूस और यूक्रेन के बीच 30 दिनों से भीषण युद्ध जारी है। इस बीच कच्चे तेल की कीमतों में जबदस्त तेजी आई है, जो कि साढ़े चार महीनों से पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर रखने को मजबूर तेल कंपनियों के लिए नुकसानदायक साबित हुई हैं। इस समस्या से देश में फिर से 2008 जैसे हालात पैदा होते जा रहे हैं और डीलरों को आशंका है कि रिलायंस पेट्रोल पंप फिर से बंद हो सकते हैं। 

1432 पेट्रोल पंप बंद किए थे रिलायंस ने
एक रिपोर्ट के मुताबिक, कच्चे तेल की कीमतों मे बेतहाशा तेजी के चलते तेल कंपनियों को जो नुकसान हो रहा है, उससे रिलायंस इंडस्ट्रीज के पेट्रोल पंप बंद होने का खतरा बढ़ गया है। गौरतलब है कि इससे पहले भी 2008 में जब कच्चे तेल की कीमतें हाई लेवल पर पहुंची थीं, तो कंपनी ने अपने सभी 1432 पेट्रोल पंप बंद कर दिए थे। अब एक बार फिर से डीलरों को ये डर सताने लगा है। बता दें कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुए हालातों के चलते कच्चे तेल का दाम बीते दिनों 2008 के बाद के अपने उच्चतम स्तर 139 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया था और अब भी 120 डॉलर के दायरे में बना हुआ है। 

2008 में यहां पहुंचा था कच्चा तेल
गौरतलब है कि साल 2008 में तेल की कीमत अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं। इन हालातों में सबसे ज्यादा असर रिलायंस के पेट्रोल पंपों पर ही देखने को मिला था और कंपनी ने अपने पेट्रोल पंपों का संचालन बंद कर दिया था। अब हालात फिर से वैसे ही हो चुके हैं। कच्चे तेल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और इसके साथ ही तेल कंपनियों का घाटा भी बढ़ता जा रहा है। गुरुवार को आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ मार्च महीने में ही आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल कंपनियों को कच्चे तेल में तेजी के कारण 19,000 करोड़ रुपये का भारी-भरकम नुकसान उठाना पड़ा है। 

देश में महंगाई का सिलसिला शुरू
कच्चे तेल के भाव में तेजी के बीच भी देश में चार नवंबर 2021 के बाद से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया गया था। हालांकि, इससे तेल कंपनियों को जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई का सिलसिला कंपनियों ने शुरू कर दिया है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते चार दिनों के भीतर ही देश में पेट्रोल और डीजल के दाम 2.40 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ गए हैं। मौजूदा बाजार भाव के हिसाब से देखें तो तेल कंपनियां पेट्रोल पर 25 डॉलर प्रति बैरल और डीजल पर 24 डॉलर प्रति बैरल का नुकसान उठा रही हैं। 

नवंबर में 82 डॉलर था कच्चा तेल
नवंबर 2021 की बात करें तो उस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमत 82 डॉलर प्रति बैरल थी, जो बीते दिनों अपने 14 साल के शिखर पर पहुंच गई थी। मूडीज की रिपोर्ट में अनुमान जाताया गया है कि तेल कंपनियों का घाटा और भी बढ़ सकता है और अगर ऐसा होता है तो आम जनता पर बोझ बढ़ना भी तय है। इस बीच रिलायंस डीलरों की आशंका की बात करें तो एक डीलर मितेश जैनी (बदला हुआ नाम) ने कहा कि महामारी के कारण हालत पहले ही खराब थी और अब पेट्रोल पंप के बंद होने की आशंका से उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा कि तीन दिनों से मेरा पेट्रोल पंप सूखा है। ऐसा लगता है कि 2008 में भी ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई है। 

कच्चा तेल बढ़ाएगा राजकोषीय बोझ 
एक अन्य रिपोर्ट की बात करें तो रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के चलते कच्चे तेल की कीमतों में हो रही यह वृद्धि एक और लिहाज से देश के लिए नुकसानदायक साबित होगी। विशेषज्ञों ने कहा है कि इससे राजकोषीय बोझ में इजाफा होगा। बता दें कि रूस और यूक्रेन से भारत का कमोडिटी आयात दो फीसदी से भी कम है। अन्य देशों से आयातित प्रमुख वस्तुओं में तेल, सोना, धातु और रसायन शामिल हैं। कई देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाने के साथ, उक्त वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं। नतीजतन, भारत के विकास और मुद्रास्फीति अनुमानों पर चिंताएं बढ़ रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि यह कमोडिटी मूल्य वृद्धि लंबे समय तक बनी रहती है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। 

विस्तार

रूस और यूक्रेन के बीच 30 दिनों से भीषण युद्ध जारी है। इस बीच कच्चे तेल की कीमतों में जबदस्त तेजी आई है, जो कि साढ़े चार महीनों से पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर रखने को मजबूर तेल कंपनियों के लिए नुकसानदायक साबित हुई हैं। इस समस्या से देश में फिर से 2008 जैसे हालात पैदा होते जा रहे हैं और डीलरों को आशंका है कि रिलायंस पेट्रोल पंप फिर से बंद हो सकते हैं। 

1432 पेट्रोल पंप बंद किए थे रिलायंस ने

एक रिपोर्ट के मुताबिक, कच्चे तेल की कीमतों मे बेतहाशा तेजी के चलते तेल कंपनियों को जो नुकसान हो रहा है, उससे रिलायंस इंडस्ट्रीज के पेट्रोल पंप बंद होने का खतरा बढ़ गया है। गौरतलब है कि इससे पहले भी 2008 में जब कच्चे तेल की कीमतें हाई लेवल पर पहुंची थीं, तो कंपनी ने अपने सभी 1432 पेट्रोल पंप बंद कर दिए थे। अब एक बार फिर से डीलरों को ये डर सताने लगा है। बता दें कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुए हालातों के चलते कच्चे तेल का दाम बीते दिनों 2008 के बाद के अपने उच्चतम स्तर 139 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया था और अब भी 120 डॉलर के दायरे में बना हुआ है। 

2008 में यहां पहुंचा था कच्चा तेल

गौरतलब है कि साल 2008 में तेल की कीमत अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं। इन हालातों में सबसे ज्यादा असर रिलायंस के पेट्रोल पंपों पर ही देखने को मिला था और कंपनी ने अपने पेट्रोल पंपों का संचालन बंद कर दिया था। अब हालात फिर से वैसे ही हो चुके हैं। कच्चे तेल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और इसके साथ ही तेल कंपनियों का घाटा भी बढ़ता जा रहा है। गुरुवार को आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ मार्च महीने में ही आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल कंपनियों को कच्चे तेल में तेजी के कारण 19,000 करोड़ रुपये का भारी-भरकम नुकसान उठाना पड़ा है। 

देश में महंगाई का सिलसिला शुरू

कच्चे तेल के भाव में तेजी के बीच भी देश में चार नवंबर 2021 के बाद से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया गया था। हालांकि, इससे तेल कंपनियों को जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई का सिलसिला कंपनियों ने शुरू कर दिया है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते चार दिनों के भीतर ही देश में पेट्रोल और डीजल के दाम 2.40 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ गए हैं। मौजूदा बाजार भाव के हिसाब से देखें तो तेल कंपनियां पेट्रोल पर 25 डॉलर प्रति बैरल और डीजल पर 24 डॉलर प्रति बैरल का नुकसान उठा रही हैं। 

नवंबर में 82 डॉलर था कच्चा तेल

नवंबर 2021 की बात करें तो उस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमत 82 डॉलर प्रति बैरल थी, जो बीते दिनों अपने 14 साल के शिखर पर पहुंच गई थी। मूडीज की रिपोर्ट में अनुमान जाताया गया है कि तेल कंपनियों का घाटा और भी बढ़ सकता है और अगर ऐसा होता है तो आम जनता पर बोझ बढ़ना भी तय है। इस बीच रिलायंस डीलरों की आशंका की बात करें तो एक डीलर मितेश जैनी (बदला हुआ नाम) ने कहा कि महामारी के कारण हालत पहले ही खराब थी और अब पेट्रोल पंप के बंद होने की आशंका से उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा कि तीन दिनों से मेरा पेट्रोल पंप सूखा है। ऐसा लगता है कि 2008 में भी ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई है। 

कच्चा तेल बढ़ाएगा राजकोषीय बोझ 

एक अन्य रिपोर्ट की बात करें तो रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के चलते कच्चे तेल की कीमतों में हो रही यह वृद्धि एक और लिहाज से देश के लिए नुकसानदायक साबित होगी। विशेषज्ञों ने कहा है कि इससे राजकोषीय बोझ में इजाफा होगा। बता दें कि रूस और यूक्रेन से भारत का कमोडिटी आयात दो फीसदी से भी कम है। अन्य देशों से आयातित प्रमुख वस्तुओं में तेल, सोना, धातु और रसायन शामिल हैं। कई देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाने के साथ, उक्त वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं। नतीजतन, भारत के विकास और मुद्रास्फीति अनुमानों पर चिंताएं बढ़ रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि यह कमोडिटी मूल्य वृद्धि लंबे समय तक बनी रहती है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। 

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