सार
विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 संक्रमण एक साधारण रोग बन कर रह जाए, उस मुकाम तक पहुंचने के लिए सरकारों और मानव समाज को कोशिश करनी होगी। वैक्सीन का विकास, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, जिनोमिक एनालिसिस, संक्रमण रोकने के उपाय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग ही वो तरीके हैं, जिनसे इस संक्रामक रोग पर काबू पाया जा सकता है…
ओमीक्रॉन।
– फोटो : अमर उजाला (फाइल फोटो)
अब यह उम्मीद मजबूत होने लगी है कि कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट का वैसा मारक असर नही होगा, जैसा डेल्टा और उसके पहले के कई वैरिएंट्स का हुआ था। ओमिक्रॉन वैरिएंट से संक्रमित लोगों में हल्के लक्षण उभरते हैं- इस बात की पुष्टि दुनिया के कई हिस्सों में हो गई है। लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इससे दुनिया को निश्चित नहीं हो जाना चाहिए। उनका कहना है कि अगर महामारी को पूरी तरह नियंत्रित नहीं किया गया, तो भविष्य में खतरनाक वैरिएंट्स के सामने आने का खतरा बना रहेगा।
आने वाली पीढ़ियों को भी संक्रमित करता रहेगा कोरोना
ब्रिटेन की ईस्ट एंग्लिया यूनिवर्सिटी में मेडिसीन के प्रोफेसर पॉल हंटर ने कहा है- ‘ज्यादातर संक्रामक रोग विशेषज्ञों की राय है कि कोविड-19 दुनिया में बना रहेगा। आने वाली पीढ़ियां भी इससे संक्रमित होती रहेंगी। लेकिन जब इसका संक्रमण एक साधारण जुकाम की तरह होकर रह जाएगा, तब हम कह सकेंगे कि यह इतिहास की बात बन गया है।’
विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 संक्रमण एक साधारण रोग बन कर रह जाए, उस मुकाम तक पहुंचने के लिए सरकारों और मानव समाज को कोशिश करनी होगी। वैक्सीन का विकास, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, जिनोमिक एनालिसिस, संक्रमण रोकने के उपाय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग ही वो तरीके हैं, जिनसे इस संक्रामक रोग पर काबू पाया जा सकता है। दुनिया जितनी गंभीरता से इन उपायों को अपनाएगी, उतनी जल्द कोविड-19 के भय से उसे छुटकारा मिलेगा।
विशेषज्ञों के मुताबिक बीते 20 महीनों का अनुभव इस मामले में उत्साहवर्धक नहीं है। ब्रिटेन के ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट की सहायक निदेशक आद्रिंया टेलर ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- ‘यह एक बड़ा मुद्दा है कि दुनिया के स्तर पर आज भी कोई योजना नहीं है। हमारे पास वैश्विक स्तर पर ना तो इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर है, ना नेतृत्व और ना ही जवाबदेही का कोई सिस्टम।’
जानकारों के मुताबिक यही वजह है कि कोविड महामारी से निपटने में कुछ देश अधिक सफल रहे हैं, जबकि कुछ का प्रदर्शन बहुत खराब है। इसलिए अब ये जरूरी हो गया है कि कम से कम वैक्सीन और सूचनाओं के आदान-प्रदान के मामले में वैश्विक सहयोग को बढ़ाया जाए।
रिकॉर्ड समय में तैयार हुई वैक्सीन
ज्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि दुनिया के पास महामारी से निपटने के पर्याप्त संसाधन हैं। जरूरत उनका ठीक से इस्तेमाल करने की है। इटली के यूनिवर्सिटी ऑफ मिलान में माइक्रो-बायोलॉजी के प्रोफेसर सैन रफायल ने सीएनएन से कहा- ‘सबसे बड़ा संसाधन वैक्सीन है। कोविड-19 की वैक्सीन रिकॉर्ड समय में तैयार हुई।’ लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सहयोग करने की अनिच्छा के कारण वैक्सीन अब तक पर्याप्त संख्या में सभी देशों को उपलब्ध नहीं हुई है।
पॉल हंटर ने कहा- ‘जैसे-जैसे अधिक लोग संक्रमित होंगे, उन्हें टीका लगेगा, वे फिर से संक्रमित होंगे, वैसे-वैसे इम्युनिटी बढ़ने के साथ कोविड की मारक क्षमता घटती जाएगी। यही सिद्धांत है।’ लेकिन जानकारों का कहना है कि सिर्फ वैक्सीन बन जाना पर्याप्त नहीं है। इसे सभी देशों और सभी लोगों तक पहुंचनी भी चाहिए। इस मामले में अब तक का रिकॉर्ड निराशाजनक है। ये हाल रहा, तो नए वैरिएंट पैदा होते रहेंगे और उनसे सबकी सेहत के लिए खतरा बना रहेगा।
विस्तार
अब यह उम्मीद मजबूत होने लगी है कि कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट का वैसा मारक असर नही होगा, जैसा डेल्टा और उसके पहले के कई वैरिएंट्स का हुआ था। ओमिक्रॉन वैरिएंट से संक्रमित लोगों में हल्के लक्षण उभरते हैं- इस बात की पुष्टि दुनिया के कई हिस्सों में हो गई है। लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इससे दुनिया को निश्चित नहीं हो जाना चाहिए। उनका कहना है कि अगर महामारी को पूरी तरह नियंत्रित नहीं किया गया, तो भविष्य में खतरनाक वैरिएंट्स के सामने आने का खतरा बना रहेगा।
आने वाली पीढ़ियों को भी संक्रमित करता रहेगा कोरोना
ब्रिटेन की ईस्ट एंग्लिया यूनिवर्सिटी में मेडिसीन के प्रोफेसर पॉल हंटर ने कहा है- ‘ज्यादातर संक्रामक रोग विशेषज्ञों की राय है कि कोविड-19 दुनिया में बना रहेगा। आने वाली पीढ़ियां भी इससे संक्रमित होती रहेंगी। लेकिन जब इसका संक्रमण एक साधारण जुकाम की तरह होकर रह जाएगा, तब हम कह सकेंगे कि यह इतिहास की बात बन गया है।’
विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 संक्रमण एक साधारण रोग बन कर रह जाए, उस मुकाम तक पहुंचने के लिए सरकारों और मानव समाज को कोशिश करनी होगी। वैक्सीन का विकास, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, जिनोमिक एनालिसिस, संक्रमण रोकने के उपाय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग ही वो तरीके हैं, जिनसे इस संक्रामक रोग पर काबू पाया जा सकता है। दुनिया जितनी गंभीरता से इन उपायों को अपनाएगी, उतनी जल्द कोविड-19 के भय से उसे छुटकारा मिलेगा।
विशेषज्ञों के मुताबिक बीते 20 महीनों का अनुभव इस मामले में उत्साहवर्धक नहीं है। ब्रिटेन के ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट की सहायक निदेशक आद्रिंया टेलर ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- ‘यह एक बड़ा मुद्दा है कि दुनिया के स्तर पर आज भी कोई योजना नहीं है। हमारे पास वैश्विक स्तर पर ना तो इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर है, ना नेतृत्व और ना ही जवाबदेही का कोई सिस्टम।’
जानकारों के मुताबिक यही वजह है कि कोविड महामारी से निपटने में कुछ देश अधिक सफल रहे हैं, जबकि कुछ का प्रदर्शन बहुत खराब है। इसलिए अब ये जरूरी हो गया है कि कम से कम वैक्सीन और सूचनाओं के आदान-प्रदान के मामले में वैश्विक सहयोग को बढ़ाया जाए।
रिकॉर्ड समय में तैयार हुई वैक्सीन
ज्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि दुनिया के पास महामारी से निपटने के पर्याप्त संसाधन हैं। जरूरत उनका ठीक से इस्तेमाल करने की है। इटली के यूनिवर्सिटी ऑफ मिलान में माइक्रो-बायोलॉजी के प्रोफेसर सैन रफायल ने सीएनएन से कहा- ‘सबसे बड़ा संसाधन वैक्सीन है। कोविड-19 की वैक्सीन रिकॉर्ड समय में तैयार हुई।’ लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सहयोग करने की अनिच्छा के कारण वैक्सीन अब तक पर्याप्त संख्या में सभी देशों को उपलब्ध नहीं हुई है।
पॉल हंटर ने कहा- ‘जैसे-जैसे अधिक लोग संक्रमित होंगे, उन्हें टीका लगेगा, वे फिर से संक्रमित होंगे, वैसे-वैसे इम्युनिटी बढ़ने के साथ कोविड की मारक क्षमता घटती जाएगी। यही सिद्धांत है।’ लेकिन जानकारों का कहना है कि सिर्फ वैक्सीन बन जाना पर्याप्त नहीं है। इसे सभी देशों और सभी लोगों तक पहुंचनी भी चाहिए। इस मामले में अब तक का रिकॉर्ड निराशाजनक है। ये हाल रहा, तो नए वैरिएंट पैदा होते रहेंगे और उनसे सबकी सेहत के लिए खतरा बना रहेगा।
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