सार
‘साइंस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चे का नाम ईस्टन है। हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक कार्डियक सर्जरी के प्रमुख डॉ, जोसेफ डब्ल्यू तुरेक के मुताबिक, यह सर्जरी भविष्य में ठोस अंग प्रत्यारोपण के तरीकों और संभावनाओं को बदल कर रख देगी।
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‘साइंस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चे का नाम ईस्टन है। हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक कार्डियक सर्जरी के प्रमुख डॉ, जोसेफ डब्ल्यू तुरेक के मुताबिक, यह सर्जरी भविष्य में ठोस अंग प्रत्यारोपण के तरीकों और संभावनाओं को बदल कर रख देगी।
तुरेक ने कहा, ईस्टन कमजोर दिल के साथ पैदा हुआ था। साथ ही उसके प्रतिरोधक ग्रंथि थाइमस में भी दिक्कत थी। यह ग्रंथि शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाले टी-सेल्स को जन्म देती है। ईस्टन को पिछले साल अगस्त में नया दिल और थाइमस ग्लैंड लगाया गया था। इसे लगाने की तकनीक भी ड्यूक यूनिवर्सिटी में ही विकसित की गई थी।
तुरेक ने बताया कि थाइमस को विशेष तरीके से कल्चर और प्रोसेस किया गया था। ऐसी सर्जरी में डॉक्टर अक्सर इम्युनोसप्रेसिव दवा देते हैं, ताकि सर्जरी के दौरान या उसके तत्काल बाद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बाहर से आ रहे अंग को अस्वीकार न करे। इन दवाओं को दो अलग-अलग स्टेज में दिया जाता है। इनमें से कुछ इतने खतरनाक होते हैं, कि उनके दुष्परिणाम जिंदगी भर रहता है।
ऐसे हुई सर्जरी
डॉक्टरों की टीम ने बच्चे को किसी भी तरह के इम्युनोसप्रेसिव दवा देने के बजाय डोनर के शरीर से नए दिल के साथ थाइमस का नया ऊतक प्रत्यारोपित करने की भी योजना बनाई। यानी जिस शरीर से दिल आ रहा है, उसी शरीर से प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की ग्रंथि भी। यानी रिसीवर के शरीर की इम्युनिटी नए दिल को आसानी से स्वीकार कर लेगी।
10 से 15 वर्ष होती है प्रत्यारोपित अंग की उम्र
डॉ. जोसेफ ने बताया कि किसी भी प्रत्यारोपित अंग की उम्र नए शरीर में 10 से 15 साल ही होती है। इसलिए हमने एक नया विकल्प निकाला। ईस्टन कमजोर दिल के साथ पैदा हुआ था। साथ ही उसके प्रतिरोधक ग्रंथि थाइमस में भी दिक्कत थी।
भविष्य में बच सकती हैं कई जानें…
ड्यूक यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में सर्जरी विभाग के प्रमुख एलेन डी. कर्क ने कहा कि अगर बच्चा सेहतमंद रहता है तो हम इस तरीके को भविष्य में अन्य लोगों पर भी इस्तेमाल करके उनकी जान बचा सकते हैं।