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ईरान परमाणु समझौते पर नई उम्मीदें: क्या इस बार बन जाएगी दोनों पक्ष में सहमति?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, तेहरान
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 10 Feb 2022 12:02 PM IST

सार

ईरान और दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों और जर्मनी के बीच परमाणु समझौता 2015 में हुआ था। इसका मकसद ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना था। 2017 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से अमेरिका को निकाल लिया। उसके बाद ईरान ने भी समझौते की शर्तों का पालन रोक दिया…

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ईरान पर लगे प्रतिबंधों में कुछ छूट देने के हाल के अमेरिकी फैसले से ईरान परमाणु समझौते के पुनर्जीवित होने को लेकर नई उम्मीद जगी है। अमेरिका के जो बाइडन प्रशासन के इस फैसले का ईरान ने स्वागत किया है। अमेरिका के इस एलान के बाद वियना में समझौते को पुनर्जीवित करने के लिए चल रही वार्ता का नया दौर शुरू करने पर सहमति बनी। ईरान के अलावा अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और चीन के प्रतिनिधि इस वार्ता का हिस्सा हैं। ये वार्ता बीते साल अप्रैल में शुरू हुई थी, लेकिन अब तक किसी ठोस मुकाम तक नहीं पहुंच सकी है।

ईरान और दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों और जर्मनी के बीच ये समझौता 2015 में हुआ था। इसका मकसद ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना था। 2017 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से अमेरिका को निकाल लिया। उसके बाद ईरान ने भी समझौते की शर्तों का पालन रोक दिया। पिछले साल जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने फिर से समझौते को लागू करने के लिए बातचीत शुरू की थी।

ईरान ने हासिल की यूरेनियम संवर्धन की क्षमता

ईरान की मांग रही है कि ट्रंप के कार्यकाल में उस पर लगाए गए तमाम प्रतिबंधों को अमेरिका हटा ले। बाइडन प्रशासन ने पहली बार इस हफ्ते इस दिशा में एक पहल की है। ये समझौता ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) नाम से हुआ था। लेकिन अमेरिका के इससे हटने का नतीजा हुआ कि ईरान ने यूरेनियम संवर्धन की नई कोशिशें शुरू कर दीं। बताया जाता है कि वह यूरेनियम के 60 फीसदी तक संवर्धन की क्षमता हासिल कर चुका है। यानी वह परमाणु बम बनाने की क्षमता से कुछ ही पीछे है।

विश्लेषकों का कहना है कि वियना वार्ता तभी सफल हो सकती है, अगर इससे जुड़े सभी पक्ष समझौते के प्रति यथार्थवादी नजरिया अपनाएं। तेहरान स्थित विदेश नीति विश्लेषक दियको हुसैनी ने टीवी चैनल अल-जजीरा से कहा- ‘मेरी राय में अभी शुरू हुआ दौर संभवतया वार्ता का अंतिम दौर साबित होगा। अभी हम जो अनुमान लगा पा रहे हैं, वो यह है कि वार्ता के सफल होने की संभावना अधिक है। इस राह में तभी रुकावट आएगी, अगर कोई पक्ष जरूरत से ज्यादा रियायत हासिल करने की कोशिश करेगा।’

समझौते पर ज्यादा उत्साहित नहीं ईरान

वियना वार्ता में अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि रॉबर्ट मैले ने यह स्वीकार किया है कि पुनर्जीवित समझौते से ईरान को परमाणु अप्रसार के उस स्तर पर रोकना संभव नहीं होगा, जहां उसे रखने का प्रावधान आरंभ में किया गया था। लेकिन उन्होंने कहा- ‘फिर भी यह समझौता करने योग्य है। अभी भी बहुत कुछ बचाया जा सकता है।’

अमेरिकी थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल में फ्यूचर ऑफ ईरान इनिशिएटिव खंड की निदेशक बारबरा स्लेविन ने कहा है- ‘जब तक ईरान अतिरिक्त यूरेनियम का भंडारण से दूर रहने को इच्छुक है, ये समझौता महत्वपूर्ण है। लेकिन बातचीत जितनी लंबी खिंचेगी, दोनों ही पक्षों को बातचीत के लक्ष्यों की अनदेखी करने का उतना ही मौका मिलेगा।’

इब्राहिम रईसी के राष्ट्रपति बनने बाद से ईरान ने समझौते को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया है। उधर वॉशिंगटन में राष्ट्रपति बाइडन पर लगातार ये दवाब डाला गया है कि वे ईरान को ज्यादा रियायत ना दें। विश्लेषकों का कहना है कि अगर दोनों देशों की सरकारों ने इन रुकावटों को पार करने की इच्छाशक्ति दिखाई, तो वार्ता का ताजा दौर फलदायी साबित हो सकता है।

विस्तार

ईरान पर लगे प्रतिबंधों में कुछ छूट देने के हाल के अमेरिकी फैसले से ईरान परमाणु समझौते के पुनर्जीवित होने को लेकर नई उम्मीद जगी है। अमेरिका के जो बाइडन प्रशासन के इस फैसले का ईरान ने स्वागत किया है। अमेरिका के इस एलान के बाद वियना में समझौते को पुनर्जीवित करने के लिए चल रही वार्ता का नया दौर शुरू करने पर सहमति बनी। ईरान के अलावा अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और चीन के प्रतिनिधि इस वार्ता का हिस्सा हैं। ये वार्ता बीते साल अप्रैल में शुरू हुई थी, लेकिन अब तक किसी ठोस मुकाम तक नहीं पहुंच सकी है।

ईरान और दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों और जर्मनी के बीच ये समझौता 2015 में हुआ था। इसका मकसद ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना था। 2017 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से अमेरिका को निकाल लिया। उसके बाद ईरान ने भी समझौते की शर्तों का पालन रोक दिया। पिछले साल जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने फिर से समझौते को लागू करने के लिए बातचीत शुरू की थी।

ईरान ने हासिल की यूरेनियम संवर्धन की क्षमता

ईरान की मांग रही है कि ट्रंप के कार्यकाल में उस पर लगाए गए तमाम प्रतिबंधों को अमेरिका हटा ले। बाइडन प्रशासन ने पहली बार इस हफ्ते इस दिशा में एक पहल की है। ये समझौता ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) नाम से हुआ था। लेकिन अमेरिका के इससे हटने का नतीजा हुआ कि ईरान ने यूरेनियम संवर्धन की नई कोशिशें शुरू कर दीं। बताया जाता है कि वह यूरेनियम के 60 फीसदी तक संवर्धन की क्षमता हासिल कर चुका है। यानी वह परमाणु बम बनाने की क्षमता से कुछ ही पीछे है।

विश्लेषकों का कहना है कि वियना वार्ता तभी सफल हो सकती है, अगर इससे जुड़े सभी पक्ष समझौते के प्रति यथार्थवादी नजरिया अपनाएं। तेहरान स्थित विदेश नीति विश्लेषक दियको हुसैनी ने टीवी चैनल अल-जजीरा से कहा- ‘मेरी राय में अभी शुरू हुआ दौर संभवतया वार्ता का अंतिम दौर साबित होगा। अभी हम जो अनुमान लगा पा रहे हैं, वो यह है कि वार्ता के सफल होने की संभावना अधिक है। इस राह में तभी रुकावट आएगी, अगर कोई पक्ष जरूरत से ज्यादा रियायत हासिल करने की कोशिश करेगा।’

समझौते पर ज्यादा उत्साहित नहीं ईरान

वियना वार्ता में अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि रॉबर्ट मैले ने यह स्वीकार किया है कि पुनर्जीवित समझौते से ईरान को परमाणु अप्रसार के उस स्तर पर रोकना संभव नहीं होगा, जहां उसे रखने का प्रावधान आरंभ में किया गया था। लेकिन उन्होंने कहा- ‘फिर भी यह समझौता करने योग्य है। अभी भी बहुत कुछ बचाया जा सकता है।’

अमेरिकी थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल में फ्यूचर ऑफ ईरान इनिशिएटिव खंड की निदेशक बारबरा स्लेविन ने कहा है- ‘जब तक ईरान अतिरिक्त यूरेनियम का भंडारण से दूर रहने को इच्छुक है, ये समझौता महत्वपूर्ण है। लेकिन बातचीत जितनी लंबी खिंचेगी, दोनों ही पक्षों को बातचीत के लक्ष्यों की अनदेखी करने का उतना ही मौका मिलेगा।’

इब्राहिम रईसी के राष्ट्रपति बनने बाद से ईरान ने समझौते को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया है। उधर वॉशिंगटन में राष्ट्रपति बाइडन पर लगातार ये दवाब डाला गया है कि वे ईरान को ज्यादा रियायत ना दें। विश्लेषकों का कहना है कि अगर दोनों देशों की सरकारों ने इन रुकावटों को पार करने की इच्छाशक्ति दिखाई, तो वार्ता का ताजा दौर फलदायी साबित हो सकता है।

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