एएनआई, गुवाहाटी
Published by: Jeet Kumar
Updated Mon, 21 Feb 2022 12:22 AM IST
सार
असम के मुख्यमंत्री सरमा ने कहा कि लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती का एक कार्यक्रम नई दिल्ली में होगा और राज्य सरकार उस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित करेगी।
ख़बर सुनें
विस्तार
उन्होंने कहा भारत के राष्ट्रपति गुवाहाटी के श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती के सालभर चलने वाले समारोह का उद्घाटन करेंगे। साथ ही कहा असम सरकार ने अलाबोई युद्ध के सैनिकों की भक्ति, समर्पण, शहादत के लिए राज्य सरकार ने श्रद्धांजलि के रूप में कामरूप जिले के दादरा में एक सुंदर युद्ध स्मारक स्थापित करने का निर्णय लिया है, जहां विभिन्न जाति और पंथ के असमिया सैनिक हैं।
तेजपुर के दीक्षांत समारोह में लेंगे भाग
भारत के राष्ट्रपति कोविंद जोरहाट में लचित बोरफुकन मैदान की आधारशिला भी रखेंगे, जिसका नए डिजाइन के साथ पुनर्निर्माण किया जाएगा। साथ ही अपनी तीन दिवसीय लंबी यात्रा के दौरान भारत के राष्ट्रपति 26 फरवरी को तेजपुर का दौरा करेंगे और वह केंद्रीय विश्वविद्यालय, तेजपुर के दीक्षांत समारोह में भाग लेंगे।
असम के मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि 26 फरवरी की शाम भारत के राष्ट्रपति काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का दौरा करेंगे और साथ ही वह एलिवेटेड कॉरिडोर, काजीरंगा के इतिहास के संरक्षण के उपायों सहित काजीरंगा के संरक्षण पर असम सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलों की भी समीक्षा करेंगे। भारत के राष्ट्रपति 27 फरवरी को नई दिल्ली के लिए रवाना होंगे।
लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती पर एक और कार्यक्रम नई दिल्ली में होगा
असम के मुख्यमंत्री सरमा ने आगे कहा कि लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती का एक और कार्यक्रम नई दिल्ली में होगा और राज्य सरकार उस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित करेगी। आगे सीएम सरमा ने यह भी बताया कि लचित बोरफुकन जयंती मनाने के कार्यक्रम मुंबई और अहमदाबाद में आयोजित किए जाएंगे यहां रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह को आमंत्रित किया जाएगा।
17वीं शताब्दी के एक महान और वीर योद्धा थे लचित बोरफुकन
लचित बोरफुकन, जिन्हें ‘चाउ लासित फुकनलुंग’ नाम से भी जाना जाता है,17वीं शताब्दी के एक महान और वीर योद्धा थे। उनकी वीरता के कारण ही उन्हें पूर्वोत्तर भारत का वीर ‘शिवाजी’ कहा जाता है। उन्होंने मुगलों के खिलाफ जो निर्णायक लड़ाई लड़ी थी, उसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। वैसे तो इस महान योद्धा का कोई भी चित्र आज दुनिया में उपलब्ध नहीं है, लेकिन माना जाता है कि उनका मुख चौड़ा था, जो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह दिखाई देता था। कोई भी उनके चेहरे की ओर आंख उठाकर नहीं देख सकता था।