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शबाना आजमी की इस फिल्म की वजह से संजय गांधी को हुई थी 25 महीने की सजा

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दोस्तों फिल्मों को समाज का आईना कहा जाता है…कई फिल्में महज मनोरंजन के लिए बनाई जाती है तो कई ऐसी होती जो समाज को आईना भी दिखाती हैं…ऐसी ही एक फिल्म की आज हम बात करेंगे जो बनी तो लेकिन कभी सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच पाई…हम बात कर रहे हैं फिल्म किस्सा कुर्सी का की…इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाई तो उसका असर बॉलीवुड में भी देखा गया। बॉलीवुड में कई फिल्मों की रिलीज को रोक दिया गया। ऐसी ही एक फिल्म थी किस्सा कुर्सी का। फिल्म पर आरोप लगा था कि इसमें इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ-साथ सरकारी की नीतियों पर भी तंज कसे गए थे। फिल्म का निर्देशन अमृत नाहटा ने किया था।  


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शबाना आजमी की इस फिल्म की वजह से संजय गांधी को हुई थी 25 महीने की सजा

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दोस्तों फिल्मों को समाज का आईना कहा जाता है…कई फिल्में महज मनोरंजन के लिए बनाई जाती है तो कई ऐसी होती जो समाज को आईना भी दिखाती हैं…ऐसी ही एक फिल्म की आज हम बात करेंगे जो बनी तो लेकिन कभी सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच पाई…हम बात कर रहे हैं फिल्म किस्सा कुर्सी का की…इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाई तो उसका असर बॉलीवुड में भी देखा गया। बॉलीवुड में कई फिल्मों की रिलीज को रोक दिया गया। ऐसी ही एक फिल्म थी किस्सा कुर्सी का। फिल्म पर आरोप लगा था कि इसमें इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ-साथ सरकारी की नीतियों पर भी तंज कसे गए थे। फिल्म का निर्देशन अमृत नाहटा ने किया था।  

मजरूह सुल्तानपुरी एक उर्दू शायर, हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकार और आंदोलनकारी थे। उनका नाम 20वीं सदी के तरक्कीपसंद शायरों में गिना जाता है। उन्होंने तमाम हिन्दी फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं, जो आज भी लोगों के जेहन में तरोताजा हैं। 1964 में फिल्म ‘दोस्ती’ के गीत ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे’ के लिए मजरूह को फिल्मफेयर एवार्ड से नवाजा गया। इसके अलावा वे पहले ऐसे गीतकार थे, जिन्हें दादासाहब फाल्के मिला। मजरूह सुल्तानपुरी महान शायर ही नहीं पक्के देशभक्त भी थे। उन्होंने विदेशों में भी भारत को झुकने नहीं दिया। उनके जीवन का एक किस्सा भारत के प्रति उनके प्यार और देशभक्ति को दर्शाता है।  एक बार विदेश में मुशायरे के दौरान पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज ने भारत की गरीबी का मजाक उड़ाया था। इस पर सुल्तानपुरी ने न सिर्फ फैज को मुशायरे के मंच से ही मुंहतोड़ जवाब दिया बल्कि भारत की गरिमा भी कायम रखी। 

1933 में नवाब बानो यानी निम्मी का जन्म आगरा के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था…उनकी मां वहीदन एक मशहूर गायिका थीं और पिता सेना में ठेकेदारी करते थे…गायिका होने के नाते निम्मी की मां फिल्म जगत से जुड़ी थीं…निम्मी को नवाब नाम उनकी दादी ने दिया था  और इसमें बानो उनकी मां ने जोड़ा था…निम्मी के मां के संबंध फिल्मकार महबूब खान और उनके परिवार से अच्छे थे…जब निम्मी 11 साल की थीं तभी उनकी मां का इंतेकाल हो गया…इसलिए उनकी देखरेख के लिए उन्हें उनकी नानी के घर एबटाबाद भेज दिया गया…

दोस्तों अभिनेता प्राण अगर हिंदी सिनेमा के सबसे ज्यादा नफरत पाने वाले खलनायक थे तो फिल्म इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा प्यार पाने वालों में से भी एक थे। वह एक सच्चे कलाकार थे। ऐसे कलाकार जो दूसरों की कला की भी कद्र करे। यही कारण है कि एक बार उन्होंने फिल्मफेयर जैसा पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया था। और उसकी वजह भी अनोखी थी। यह किस्सा बहुत दिलचस्प है। बात है 1970 के दशक की। चार फरवरी 1972 को फिल्म ‘पाकीजा’ सिनेमाघरों में लगी थी और लोगों ने बहुत ठंडे मिजाज से इसका स्वागत किया था। 

मशहूर गायक-संगीतकार बप्पी लाहिड़ी का मंगलवार रात मुंबई के एक अस्पताल में कई स्वास्थ्य समस्याओं के कारण निधन हो गया…बप्पी लहरी ने महज 19 साल की उम्र में अपने करियर की शुरुआत की थी। मुंबई आने के बाद उन्हें पहला ब्रेक बंगाली फिल्म ‘दादू’ 1972 में मिल गया था इसके बाद उन्होंने 1973 में फिल्म ‘ नन्हा शिकारी’ के लिए म्यूजिक कंपोज किया था। लेकिन उन्हें पहचान दिलाने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर करने वाली फिल्म थी डिस्को डांसर… इस फिल्म ने न सिर्फ बप्पी दा बल्कि मिथुन को भी शोहरत की ऊंचाइयों पर पहुंचाया..1982 में आई डिस्को डांसर डांस पर आधारित एक फिल्म थी…फिल्म की कहानी राही मासूम रजा लिखी थी और बब्बर सुभाष इसके निर्देशक थे… फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती की हीरोइन किम थीं…जबकि ओम पुरी और राजेश खन्ना सहायक भूमिकाओं में दिखाई पड़े… फिल्म बॉम्बे की मलिन बस्तियों के एक युवा स्ट्रीट डांसर की कहानी बताती है। पिक्चर के संगीत ने बॉलीवुड तो क्या भारतीय संगीत को एक नई दिशा दी थी लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके ज्यादातर गाने किसी न किसी गाने से इंस्पायर्ड थे….

बॉलीवुड में बहुत ही कम ऐसे कलाकार हैं जिन्हें पहली ही फिल्म में लीड अभिनेता या अभिनेत्री का किरदार मिल जाए…कुछ लोगों को यह मौका किसी स्टार की संतान या जान-पहचान होने से आसानी से मिल जाती है तो कुछ को काफी स्ट्रगल के बाद किसी फिल्म में साइड रोल या छोटा-मोटा काम मिलता है. बहुत खुशनसीब होते हैं वो जिन्हें बतौर लीड एक्टर की तौर पर पहली फिल्म मिल जाती है. उन्हीं में से एक थी दिव्या राणा , शायद ही अभी के समय के ज्यादा लोग इस एक्ट्रेस के बारे में जानते होंगे.

दोस्तों बॉलीवुड में कई फिल्में ऐसी हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता है और हमेशा किया जाता रहेगा…इन्हीं फिल्मों में से एक है शहंशाह….जी हां अमिताभ बच्चन की शहंशाह…शहंशाह का नाम सुनते ही जुबान पर एक ही संवाद आता है…रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप होते हैं, नाम है शहंशाह”…फिल्म शहंशाह का निर्माण और निर्देशन टीनू आनंद ने किया था। इसकी कहानी अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन ने लिखी थी और पटकथा अनुभवी पटकथा लेखक इंदर राज आनंद ने लिखी थी…हालांकि इंदर राज फिल्म रिलीज होने से पहले ही दुनिया से चल बसे थे । इस फिल्म ने बच्चन की तीन साल के अंतराल के बाद फिल्मों में वापसी की, जिसके दौरान उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया था। यह फिल्म 1988 की दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी थी। फिल्म को अमिताभ बच्चन के कॉमिक पुलिसकर्मी और जुर्म से लड़ने वाले मसीहा के रूप में जबल रोल के लिए भी याद किया जाता है।

राखी सांवत कंगना रणौत से भिड़ीं, दिया चैलेंज।नवाजुद्दीन सिद्दीकी की अपकमिंग कॉमेडी फिल्म की शूटिंग हुई शुरू। राजकुमार राव और भूमि पेडनेकर स्टार फिल्म ‘बधाई दो’ का बॉक्स आॉफिस कलेक्शन लगातार बढ़ता जा रहा।

आज बात करेंगे मधुबाला की…क्या आप जानते हैं कि हिंदी सिनेमा की सबसे खूबसूरत अभिनेत्री मानी जाने वाली मधुबाला को भी फिल्म पाने के लिए स्क्रीन टेस्ट देना पड़ा था… यह बात सोच कर भी ताज्जुब होता है। मधुबाला ने बाल कलाकार के रूप में कैरियर शुरू किया था और जब वह हीरोइन बनने को तैयार हुईं तो हर कोई उनका मुरीद नहीं था। वह मात्र 16 साल की थीं और निर्देशक कमाल अमरोही की उन पर नजर पड़ी। कमाल उन दिनों इंडस्ट्री में लेखक के तौर पर स्थापित थे और निर्देशक के रूप में अपनी पहली फिल्म ‘महल’ (1949) बनाने की तैयारी कर रहे थे।

दोस्तों आज हम बात करेंगे अपने जमाने की मोस्ट टैलेंटेड और खूबसूरत अदाकारा मधुबाला की…उनकी जिंदगी में कितने लोग आए और अपने आखिरी दिनों में उनकी हालत कैसी हो गई थी…दिलीप कुमार और मधुबाला की प्रेम कहानी तो जगजाहिर है, लेकिन मधुबाला की पहली मोहब्बत दिलीप कुमार नहीं बल्कि मशहूर फिल्मकार कमाल अमरोही थे..जिन्हें महल और पाकीजा जैसी अमर फिल्मों के लिए जाना जाता है…मीना कुमारी के पति कमाल अमरोही भी मधुबाला से शादी करना चाहते थे….कमाल अमरोही फिल्म महल बना रहे थे और इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान कमाल अमरोही का दिल मधुबाला पर आ गया…

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