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दोस्तों आज एक ऐसे बॉलीवुड कपल के बीच का किस्सा आपको सुनाऊंगी जो इंडस्ट्री में एक बेस्ट कपल की मिसाल से किसी भी सूरत में कम नहीं और ऐसा कभी हुआ भी नहीं कि दोनों के दरमियान कभी मनमुटाव पब्लिकली हुए हों। लेकिन आज इऩ दोनों ही सुपरस्टार्स के बीच उपजे एक विवाद का किस्सा सुनिए।
दोस्तों अगर हम आज की बॉलीवुड फिल्मों की बात करें तो कहानी में मुख्यता दो किरदार ही केंद्र में नजर आते हैं और पूरी फिल्म उन्हीं के इर्द-गिर्द चक्कर खाती दिखाई पड़ती है। बाकी सारे किरदार साइड कैरेक्टर मालूम पड़ते हैं। लेकिन हम फिल्मों की किताब के थोड़े पन्ने उलटते हैं और आज से कुछ साल पीछे नजर दौड़ाएं तो कई ऐसी कहानियां मिलेंगी जहां लीड कैरेक्टर के अलावा अन्य किरदार भी अहम हुआ करते थे।
आज दोस्तों ‘सुन सिनेमा’ में बात करेंगे हिंदुस्तान के दिग्गज फिल्ममेकर और शो-मैन के नाम से मशहूर राज कपूर की, जिनकी फिल्मों ने ना केवल दर्शकों के दिलो-दिमाग पर यादगार छाप छोड़ी बल्कि इन फिल्मों ने विदेशी सरजमीं पर भी फैंस को अपना मुरीद बनाया। लेकिन आज उनकी फिल्मों की कहानी,एक्टिंग स्टाइल,निर्देशन जैसे पहलुओं पर नहीं बल्कि उनकी फिल्मों के गानों की बात करूंगी।
जिस नए अफगानिस्तान में भविष्य की रोशनी दस्तक दे रही थी अब वहां दहशत दाखिल हो चुकी है। निर्दोष अफगानियों का पलायन शुरू हो चुका है। वे किसी भी कीमत पर अपने प्यारे वतन को अलविदा कहने पर मजबूर हैं। आज अफगानियों का जो दर्द है उसे 60 साल पहले फिल्म काबुलीवाला के किरदार रहमत पठान ने बखूबी महसूस किया था।
दोस्तों बॉलीवुड आज हम बात करेंगे 55 साल पुरानी एक ऐसी हिंदी फिल्म की जिसे एक देश में आज भी दिखाया जाता है…फिल्म के हीरो के शहर से रिश्ता रखने वाले को दुकानदार सामान में छूट देते हैं…इस फिल्म ने आनंद बख्शी जैसे गीतकार को कामयाबी की राह दिखाई और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने असिस्टेंट के तौर पर संगीत दिया था…चलिए ज्यादा वक्त जाया नहीं करते हैं और बताते हैं उस फिल्म का नाम…हम बात कर रहे हैं 1965 में रिलीज हुई फिल्म जब-जब फूल खिले की…मधुर संगीत, रोमांटिक कहानी और शशि कपूर -नंदा की जोड़ी ने इस फिल्म के जरिए सभी का मन मोह लिया। चलिए आज आपको बताते हैं इस फिल्म से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्सों के बारे में…
हिंदी सिनेमा के बेहतरीन अभिनेताओं में भारत भूषण का नाम लिया जाता है। वो 1950 के दशक में जवां दिलों की धड़कन हुआ करते थे। इसी दौरान राज कपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार जैसे दिग्गज अभिनेताओं का बोलबाला था लेकिन फिर भी भूषण अपने लिए एक जगह बनाने में कामयाब रहे। उन्होंने अपने करियर में करीब 30 फिल्में कीं जिनमें से बैजू बावरा, आनदमंठ, मिर्जा गालिब और मुड़ मुड़के ना देख को हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में गिना जाता है। लेकिन, उनकी जिंदगी इस बात का सबूत रही कि शोहरत और लोकप्रियता कुछ पल की होती है क्योंकि उनके जैसे एक उम्दा सितारे को बाद में फिल्मों में छोटी भूमिकाएं करने के लिए मजबूर होना पड़ा। एक वक्त ऐसा भी आया जब वो पाई-पाई के लिए मोहताज हो गए।
फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेत्री मीना को ट्रेजेडी क्वीन कहा जाता है। पर्दे पर राज करने वाली मीना कुमारी को जिंदगीभर प्यार नसीब नहीं हो सका। एक बेहतरीन अभिनेत्री, खूबसूरत गायिका और शायरा के रूप में मीना कुमारी को हमेशा याद किया जाता है। मीना कुमारी को लेकर यूं तो कई किस्से मशहूर हैं। उनके बचपन से लेकर फिल्मों के सफर, प्यार से लेकर शादीशुदा जिंदगी और शराब की लत लगने तक मीना कुमारी ने अपनी जिंदगी में काफी कुछ सहा।
हिंदी सिनेमा में 70-80 का ऐसा दौर था जब नायिकाओं के साथ खलनायिकाओं का भी अहम रोल हुआ करता था। उसी दौर में एक्ट्रेस बिंदु ने एंट्री की और देखते ही देखते उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली। हिन्दी सिनेमा की कई ऐसी वैंप रहीं जो आज भी अपने एक किरदार या गाने से सालों तक लोगों को याद रहीं और रहेंगी भी। ऐसी ही एक वैंप रहीं हैं बिंदु यानी की ‘मोना डार्लिंग’।
आज हम बात करेंगे फिल्म गाइड की…गाइड हिंदी फिल्मों की मास्टरपीस तो मानी ही जाती है साथ ही इसके अंग्रेजी संस्करण ने कान्स में भी जलवा बिखेरा वो भी अपनी रिलीज के 42 साल बाद 2007 में… हालांकि इसका अंग्रेजी संस्करण अपने रिलीज के वक्त फ्लॉप रहा था जबकि डायरेक्टर टैड डेनियलवस्की ने इस फिल्म में वहीदा रहमान का एक न्यूड सीन भी रखा था जिसे बॉडी डबल पर फिल्माया गया था…देव आनंद और वहीदा रहमान की जोड़ी से सजी इस फिल्म ने गीत-संगीत, डायलॉग, एक्टिंग हर तरह से इतिहास रच दिया….
दोस्तों आज बात होगी बॉलीवुड की उस फिल्म की जिसकी शूटिंग पहली बार विदेश में गई थी….ये फिल्म देश की पहली सबसे लंबी फिल्म भी थी…आजकल हर फिल्म में कोई न कोई सीन विदेश का होता ही है लेकिन एक जमाना था जब कम बजट की वजह से निर्माता-निर्देशक देश में ही फिल्म बनाना पसंद करते थे… 1964 में आई राजकपूर की फिल्म ‘संगम’ भारत की पहली फिल्म थी जिसे विदेश में शूट किया गया। यही नहीं…संगम देश की पहली सबसे लंबी फिल्म भी बनी जो 238 मिनट यानी करीब चार घंटे की है…
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