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अकाल का खतरा: साल-डेढ़ साल में और गंभीर हो जाएगा अभी पैदा हुआ खाद्य संकट

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, ब्रसेल्स
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 26 Mar 2022 04:57 PM IST

सार

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने अपने दस्तावेज में कहा है कि अभी भी हालात गंभीर हैं, लेकिन अगले 12 से 18 महीनों में यह और बदतर हो जाएगी। जी-7 बैठक को संबोधित करते हुए मैक्रों ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से अपील की कि वे यूक्रेन को खेती करने का मौका दें, वरना कई देशों को अकाल का सामना करना पड़ेगा…

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जी-7 देशों के विशेष शिखर सम्मेलन का इस हफ्ते आयोजन यूक्रेन पर रूसी हमले पर विचार-विमर्श के लिए हुआ। इस दौरान इन नेताओं के बीच चर्चा का एक खास मुद्दा दुनिया पर गहरा गया खाद्य संकट था। मीडिया का ज्यादा ध्यान युद्ध संबंधी चर्चाओं पर रहा। लेकिन जी-7 नेताओं ने खाद्य पदार्थों की कमी और महंगाई पर भी अपना काफी ध्यान लगाया। बैठक के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ‘खाद्य सुरक्षा के लिए पहल’ नाम से अपना एक अलग दस्तावेज पेश किया।

जी-7 देशों के नेताओं अपनी शिखर बैठक के बाद गुरुवार को जो साझा विज्ञप्ति जारी की, उसमें भी संभावित खाद्य संकट का विस्तार से जिक्र हुआ। विज्ञप्ति में कहा गया- ‘अपने पड़ोसी देश पर रूस के हमले से वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर दबाव बढ़ गया है।’ जी-7 नेता इस बात पर सहमत हुए कि खाद्य सुरक्षा संबंधी चुनौती का मुकाबला करने के लिए वे अपने पास मौजूद सभी उपायों और धन उपलब्ध कराने का स्रोतों का इस्तेमाल करेंगे।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जी-7 नेताओं के आह्वान पर अब संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की विशेष बैठक बुलाई जाएगी। इसके जरिए यह सुनिश्चित करने की कोशिश होगी कि जब दुनिया पर खाद्य संकट मंडरा रहा है, तब विभिन्न देश अपने यहां से अनाज के निर्यात पर रोक न लगाएं। बल्कि अनाज का बाजार विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के तहत खुलेपन और पारदर्शी ढंग से चल सके, इसे सुनिश्चित किया जाए।

रूस से की यूक्रेन को खेती करने देने की अपील

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने अपने दस्तावेज में कहा है कि दुनिया के सामने अभूतपूर्व खाद्य संकट खड़ा हो गया है। यह सीधे तौर पर रूस के युद्ध छेड़ने की वजह से हुआ है। मैक्रों ने कहा है कि अभी भी हालात गंभीर हैं, लेकिन अगले 12 से 18 महीनों में यह और बदतर हो जाएगी। जी-7 बैठक को संबोधित करते हुए मैक्रों ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से अपील की कि वे यूक्रेन को खेती करने का मौका दें, वरना कई देशों को अकाल का सामना करना पड़ेगा।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक मैक्रों की खाद्य सुरक्षा संबंधी पहल में ये बातें शामिल हैं, संकट का सामना करने के लिए खाद्य भंडारों से अनाज जारी किए जाएं, सभी देश यह वचन दें कि कृषि संबंधी कच्चे माल के आयात-निर्यात में रुकावट नहीं डालेंगे, खाद्य पैदावार बढ़ाने के कदम तुरंत उठाए जाएं, और पर्यावरण सम्मत कृषि को बढ़ावा देने के प्रयास में नए सिरे से ताकत झोंकी जाए।

विकासशील देशों पर खराब असर

इसके पहले संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी- यूनाइडेट नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (अंकटाड) अपनी एक रिपोर्ट में कह चुका है कि यूक्रेन युद्ध के कारण सभी देशों को खाद्य पदार्थों और ईंधन की महंगाई का सामना करना पड़ेगा। लेकिन इसका सबसे खराब असर विकासशील देशों पर होगा, जहां गरीब घरों को भोजन जुटाने पर अपनी आमदनी का ज्यादा हिस्सा खर्च करना पड़ेगा। इस स्थिति के कारण दुनिया भर में भूख और दूसरी आम मुसीबतें बढ़ेंगी।

रूस और यूक्रेन गेहूं और सूरजमुखी जैसे पैदावारों के प्रमुख निर्यातक हैँ। इसके अलावा युद्ध की वजह से सप्लाई चेन संबंधी दिक्कतें भी खड़ी हुई हैँ। इन सबका नतीजा खाद्य संकट के रूप में सामने आ रहा है।

विस्तार

जी-7 देशों के विशेष शिखर सम्मेलन का इस हफ्ते आयोजन यूक्रेन पर रूसी हमले पर विचार-विमर्श के लिए हुआ। इस दौरान इन नेताओं के बीच चर्चा का एक खास मुद्दा दुनिया पर गहरा गया खाद्य संकट था। मीडिया का ज्यादा ध्यान युद्ध संबंधी चर्चाओं पर रहा। लेकिन जी-7 नेताओं ने खाद्य पदार्थों की कमी और महंगाई पर भी अपना काफी ध्यान लगाया। बैठक के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ‘खाद्य सुरक्षा के लिए पहल’ नाम से अपना एक अलग दस्तावेज पेश किया।

जी-7 देशों के नेताओं अपनी शिखर बैठक के बाद गुरुवार को जो साझा विज्ञप्ति जारी की, उसमें भी संभावित खाद्य संकट का विस्तार से जिक्र हुआ। विज्ञप्ति में कहा गया- ‘अपने पड़ोसी देश पर रूस के हमले से वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर दबाव बढ़ गया है।’ जी-7 नेता इस बात पर सहमत हुए कि खाद्य सुरक्षा संबंधी चुनौती का मुकाबला करने के लिए वे अपने पास मौजूद सभी उपायों और धन उपलब्ध कराने का स्रोतों का इस्तेमाल करेंगे।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जी-7 नेताओं के आह्वान पर अब संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की विशेष बैठक बुलाई जाएगी। इसके जरिए यह सुनिश्चित करने की कोशिश होगी कि जब दुनिया पर खाद्य संकट मंडरा रहा है, तब विभिन्न देश अपने यहां से अनाज के निर्यात पर रोक न लगाएं। बल्कि अनाज का बाजार विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के तहत खुलेपन और पारदर्शी ढंग से चल सके, इसे सुनिश्चित किया जाए।

रूस से की यूक्रेन को खेती करने देने की अपील

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने अपने दस्तावेज में कहा है कि दुनिया के सामने अभूतपूर्व खाद्य संकट खड़ा हो गया है। यह सीधे तौर पर रूस के युद्ध छेड़ने की वजह से हुआ है। मैक्रों ने कहा है कि अभी भी हालात गंभीर हैं, लेकिन अगले 12 से 18 महीनों में यह और बदतर हो जाएगी। जी-7 बैठक को संबोधित करते हुए मैक्रों ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से अपील की कि वे यूक्रेन को खेती करने का मौका दें, वरना कई देशों को अकाल का सामना करना पड़ेगा।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक मैक्रों की खाद्य सुरक्षा संबंधी पहल में ये बातें शामिल हैं, संकट का सामना करने के लिए खाद्य भंडारों से अनाज जारी किए जाएं, सभी देश यह वचन दें कि कृषि संबंधी कच्चे माल के आयात-निर्यात में रुकावट नहीं डालेंगे, खाद्य पैदावार बढ़ाने के कदम तुरंत उठाए जाएं, और पर्यावरण सम्मत कृषि को बढ़ावा देने के प्रयास में नए सिरे से ताकत झोंकी जाए।

विकासशील देशों पर खराब असर

इसके पहले संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी- यूनाइडेट नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (अंकटाड) अपनी एक रिपोर्ट में कह चुका है कि यूक्रेन युद्ध के कारण सभी देशों को खाद्य पदार्थों और ईंधन की महंगाई का सामना करना पड़ेगा। लेकिन इसका सबसे खराब असर विकासशील देशों पर होगा, जहां गरीब घरों को भोजन जुटाने पर अपनी आमदनी का ज्यादा हिस्सा खर्च करना पड़ेगा। इस स्थिति के कारण दुनिया भर में भूख और दूसरी आम मुसीबतें बढ़ेंगी।

रूस और यूक्रेन गेहूं और सूरजमुखी जैसे पैदावारों के प्रमुख निर्यातक हैँ। इसके अलावा युद्ध की वजह से सप्लाई चेन संबंधी दिक्कतें भी खड़ी हुई हैँ। इन सबका नतीजा खाद्य संकट के रूप में सामने आ रहा है।

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