वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, दुबई
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Tue, 28 Dec 2021 06:18 PM IST
सार
पश्चिम एशिया में ये धारणा हाल के वर्षों में गहराई है कि ये इलाका अमेरिका की प्राथमिकता नहीं रहा। इस क्षेत्र से अमेरिकी वापसी की वजह से यहां चीन के अनुकूल स्थितियां बनी हैं।
चीन-अमेरिका
– फोटो : पीटीआई (फाइल)
पश्चिमी एशिया अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी और राजनयिक होड़ का केंद्र बन गया है। साल 2021 में ये होड़ और तेज हुई। बीते हफ्ते वाशिंगटन में एक बैठक के दौरान पश्चिम एशिया में बनते हालात पर खास चर्चा हुई। उस दौरान संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) सरकार के राजनयिक सलाहकार अनवर गार्गेश ने कहा था, ‘तीखी होड़ और एक नए शीत युद्ध के बीच मिटते अंतर से हम चिंतित हैं।’ अरब गल्फ स्टेट्स इंस्टीट्यूट में हुई बैठक के दौरान उन्होंने कहा था कि छोटा देश होने की वजह से हम इस होड़ से बुरी तरह प्रभावित होंगे।
गार्गेश ने इस बात की पुष्टि की कि यूएई ने अमेरिकी के आपत्ति दर्ज कराने की वजह से एक चीनी निर्माण को रोक दिया है। उन्होंने कहा कि अबू धाबी का प्रशासन अमेरिका के इस दावे से सहमत नहीं था कि चीन उस निर्माण स्थल का इस्तेमाल सैनिक अड्डे के रूप में कर रहा है। इसके बावजूद वह चूंकि अमेरिका को नाराज नहीं करना चाहता था, इसलिए उसने निर्माण कार्य रोक दिया।
लेकिन विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि इस होड़ में हर बार अमेरिका की ही जीत नहीं हुई है। हाल में इस खबर की पुष्टि हुई कि यूएई ने अमेरिका से एफ-35 लड़ाकू विमानों की खरीद के सौदे पर अमल फिलहाल रोक दिया है। अमेरिका ने शर्त लगाई थी कि यूएई चीनी की कंपनी हुवावे टेक्नोलॉजीज को अपने दूरसंचार नेटवर्क से हटाए। लेकिन यूएई ने ये शर्त नहीं मानी। अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से वहां के एक अधिकारी ने कहा कि लागत और नुकसान का जायजा लेने के बाद यूएई सरकार ने हुवावे का प्रोजेक्ट जारी रखने का फैसला किया।
चीन ने मजबूत किए हैं सऊदी और ईरान के साथ आर्थिक संबंध
विश्लेषकों का कहना है कि पश्चिम एशिया में ये धारणा हाल के वर्षों में गहराई है कि ये इलाका अमेरिका की प्राथमिकता नहीं रहा। इस क्षेत्र से अमेरिकी वापसी की वजह से यहां चीन के अनुकूल स्थितियां बनी हैं। एक समय सऊदी अरब जैसे देश कम्युनिस्ट विचारधारा के कारण चीन से दूरी बनाए रखते थे। लेकिन अब वहां भी चीनी कंपनियां अपने पांव फैला रही हैं। चीन ने अपनी योजनाबद्ध रणनीति के तहत सउदी अरब और ईरान, दोनों देशों से ही अपने आर्थिक रिश्ते मजबूत किए हैं, जबकि इन दोनों देशों के बीच तीखे आपसी टकराव की स्थिति है।
अमेरिकी थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल में सीनियर फेलो जोनाथन फुल्टन ने सीएनएन से कहा, ‘आपके सामने ऐसी सूरत है कि एक प्रमुख विश्व शक्ति उस क्षेत्र से जा रही है। तो सामने चीन है, जो इस इलाके का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर बन कर उभरा है।’ विश्लेषकों का कहना है कि लेकिन अब अमेरिका ने एक बार फिर इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया है। उससे इस देश के सामने अमेरिका या चीन के बीच से किसी एक को चुनने की समस्या पेश आ रही है।
चीन के आकर्षक पेशकशों का अमेरिका नहीं दे पा रहा विकल्प
फुल्टन के मुताबिक ये क्षेत्र चीन की तरफ इसलिए झुकता दिख रहा है क्योंकि वह जो आकर्षक सौदे सामने रखता है, अमेरिका के पास उसका कोई जवाब नहीं है। मसलन, अमेरिका यह तो चाहता है कि यूएई हुवावे से संबंध न रखे, लेकिन इसके बदले वह कोई विकल्प पेश नहीं करता। जानकारों के मुताबिक ऐसा ही लेबनान में हुआ, जहां की सरकार ने चीनी निवेश को इजाजत दी है। अमेरिका ने लेबनान को चीन के कर्ज जाल में फंसने की चेतावनी दी, लेकिन उसने यह नहीं बताया है कि लेबनान अपने कमजोर पड़ते इन्फ्रास्ट्रक्चर को कैसे संभाले।
ब्रिटिश थिंक टैंक चैटहैम हाउस में एसोसिएट फेलॉ हिनेन एल कादी ने कहा है, ‘हाल के वर्षों में अमेरिकी दबाव बढ़ गया है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में आप तभी देशों पर दबाव डाल सकते हैं अगर आपके पास बेहतर डील देने की क्षमता हो।’ फुल्टन ने कहा है कि सिर्फ तानाशाही व्यवस्था का भय दिखाना कारगर साबित नहीं हुआ है।
विस्तार
पश्चिमी एशिया अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी और राजनयिक होड़ का केंद्र बन गया है। साल 2021 में ये होड़ और तेज हुई। बीते हफ्ते वाशिंगटन में एक बैठक के दौरान पश्चिम एशिया में बनते हालात पर खास चर्चा हुई। उस दौरान संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) सरकार के राजनयिक सलाहकार अनवर गार्गेश ने कहा था, ‘तीखी होड़ और एक नए शीत युद्ध के बीच मिटते अंतर से हम चिंतित हैं।’ अरब गल्फ स्टेट्स इंस्टीट्यूट में हुई बैठक के दौरान उन्होंने कहा था कि छोटा देश होने की वजह से हम इस होड़ से बुरी तरह प्रभावित होंगे।
गार्गेश ने इस बात की पुष्टि की कि यूएई ने अमेरिकी के आपत्ति दर्ज कराने की वजह से एक चीनी निर्माण को रोक दिया है। उन्होंने कहा कि अबू धाबी का प्रशासन अमेरिका के इस दावे से सहमत नहीं था कि चीन उस निर्माण स्थल का इस्तेमाल सैनिक अड्डे के रूप में कर रहा है। इसके बावजूद वह चूंकि अमेरिका को नाराज नहीं करना चाहता था, इसलिए उसने निर्माण कार्य रोक दिया।
लेकिन विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि इस होड़ में हर बार अमेरिका की ही जीत नहीं हुई है। हाल में इस खबर की पुष्टि हुई कि यूएई ने अमेरिका से एफ-35 लड़ाकू विमानों की खरीद के सौदे पर अमल फिलहाल रोक दिया है। अमेरिका ने शर्त लगाई थी कि यूएई चीनी की कंपनी हुवावे टेक्नोलॉजीज को अपने दूरसंचार नेटवर्क से हटाए। लेकिन यूएई ने ये शर्त नहीं मानी। अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से वहां के एक अधिकारी ने कहा कि लागत और नुकसान का जायजा लेने के बाद यूएई सरकार ने हुवावे का प्रोजेक्ट जारी रखने का फैसला किया।
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