बेरोजगारी घटाकर रोजगार बढ़ाना
कोरोना महामारी के बाद से देश में बेरोजगारी की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। आर्थिक मंदी ने पिछले छह वर्षों में से पांच में बेरोजगारी दर को वैश्विक आंकड़े से ऊपर धकेल दिया है। हालांकि, हाल के दिनों में सुधार आया है लेकिन अभी भी यह औसत से काफी अधिक है। सीएमआईई के आंकड़ों को देखें तो भारत में बेरोजगारी दर फिलहाल, 6.9 फीसदी पर है। शहरी बेरोजगारी दर 8.4 फीसदी और ग्रीमीण बेरोजगारी दर 6.2 फीसदी है। देश की इस सबसे बड़ी समस्या से उबरने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को बजट में बेरोजगारी कम करने के उपायों पर जोर देना होगा। इसके लिए मनरेगा पर बजट आवंटन बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा ग्रामीण मनरेगा के तर्ज पर शहरी बेरोजगारों के लिए शहरी मनरेगा शुरू करने का एलान भी किया जा सकता है जो एक सराहनीय कदम होगा। इससे बेरोजगारी दर घटाने और रोजगार बढ़ाने में मदद मिलेगी।
सर्वे में भी बेरोजगारी प्रमुख मुद्दा
एसोचैम के हालिया सर्वे में कहा गया कि 2022 के बजट में, सरकार को पहले बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए, इसके बाद विनिर्माण क्षमताओं के उच्च प्रोत्साहन विस्तार के माध्यम से रोजगार सृजन को बढ़ाना चाहिए। बजट 2022 को रोजगार और रोजगार पैदा करने के लिए देखना चाहिए। आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने भी कहा है कि बजट 2022 में रोजगार सृजन और अर्थव्यवस्था में व्यापक असमानता को पाटने के अलावा विकास में तेजी लाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
करदाताओं को देनी होगी राहत
कोविड -19 महामारी के बीच, करदाता उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार 2.5 लाख रुपये की मूल आयकर छूट सीमा और 10 लाख रुपये और उससे अधिक के शीर्ष आय स्लैब में ऊपर की ओर संशोधन करेगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को संसद में वर्ष 2022-23 के लिए आम बजट पेश करने के दौरान इसमें व्यक्तिगत करदाताओं को कई राहतें दे सकती हैं। इनमे आयकर अधिनियम के सेक्शन 80सी के तहत मिलने वाली 1.5 लाख रुपये की छूट महत्वपूर्ण है, जिसे 2014 से नहीं बदला गया है। इसी तरह स्लैब्स में बदलाव भी हो सकता है, जिसमें लंबे समय से कोई बदलाव नहीं हुआ है। बैंकबाजार.कॉम के सीईओ आदिल शेट्टी का कहना है कि 2014 में आयकर अधिनियम के तहत 80सी के तहत मिलने वाली छूट 1.5 लाख रुपये की गई थी। महंगाई और बढ़ती आय को देखते हुए इसे 1.5 लाख से बढ़ाकर 3 लाख रुपये किया जाना चाहिए। 80सी में इन्वेस्टमेंट, इंश्योरेंस और अन्य खर्च पर टैक्स में छूट दी जाती है। इसे सिर्फ निवेश तक सीमित रखा जाए तो लोगों को निवेश के लिए
राजकोषीय घाटा कम कर निवेश बढ़ाना
बजट 2022 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने राजकोषीय घाटा कम करना और निवेश बढ़ाने की बड़ी चुनौती होगी। कोरोना काल में अत्यधिक उधारी और खर्च ने भी राजकोषीय घाटा बढ़ा दिया है। वहीं, निजी निवेश अभी भी बहुत कम है। वित्त मंत्री को इससे बचने के उपाय इस बजट में करने होंगे। भारत का राजकोषीय घाटा रिकॉर्ड 9.3 प्रतिशत तक पहुंच गया, क्योंकि मोदी सरकार ने महामारी के दौरान अपने 800 मिलियन गरीबों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराने में उर्वरक और खाद्य सब्सिडी पर खर्च किया। अब सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष में इसे वापस 6.8 प्रतिशत करने का है। सरकार को धीरे-धीरे राजकोषीय समेकन पर ध्यान देना चाहिए और निवेश-संचालित विकास का विकल्प चुनना चाहिए। क्रेडएबल फॉर इंडिया इंक. के सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक राम केवलरमानी ने कहा कि बजट से अर्थव्यवस्था को बड़ी गति मिलने की उम्मीद है। सरकार के लिए नंबर एक प्राथमिकता के रूप में आर्थिक पुनरुद्धार चार्ट में सबसे ऊपर होना चाहिए। कैलिब्रेटेड खर्च और जरूरत-आधारित पूंजीगत व्यय एजेंडे का हिस्सा होना चाहिए। राजकोषीय नीति को आर्थिक विकास का समर्थन करते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि आगामी बजट ऐसा होने की उम्मीद है जो इस वर्ष, देश को अत्यधिक उच्च राजकोषीय घाटे से बाहर निकाल सके।
किसानों को साधने पर फोकस
महंगाई और बेरोजगारी के साथ ही सरकार के सामने किसानों को साधना भी एक बड़ी चुनौती है। बीते समय में किसानों के भारी विरोध का सामना करने के बाद अब वित्त मंत्री को बजट 2022 में किसानों की आय दोगुनी करने पर जोर देना होगा। गौरतलग है कि कोरोना संकट में देश की अर्थव्यवस्था को संभालने में कृषि क्षेत्र की अहम भूमिका रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कह चुके हैं। इसलिए इस बार के बजट में किसानों के लिए होने वाले एलान पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि ये घोषणाएं जहां किसानों की नाराजगी दूर कर सकती हैं, वहीं दूसरी ओर किसानों की आय बढ़ाने में भी मददगार होंगी।
बेपटरी हुई घरेलू मांग में सुधार
नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) का अनुमान है कि 2021-22 के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था 9.2 फीसदी की दर से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगी। इसके बावजूद कि इस साल की ग्रोथ रेट पिछले साल के अभूतपूर्व 7.3 फीसदी की नकारात्मक दर के बेस पर आ रही है। यानी भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने की जरूरत है। सरकार को मांग बढ़ाने पर जोर देना। मांग बढ़ाने के लिए सरकार को सामाज के निचले पायदान के लोगों में हाथ में पैसा पहुंचाने का प्रयास बजट में करना चाहिए। इसके लिए कैश ट्रांसफर जैसे कदम सरकार को उठाने होंगे।
महंगाई पर काबू पाना जरूरी
देश में महंगाई भी लगातार उछाल मार रही है। खाने-पीने की चीजों पर मूल्यवृद्धि के कारण खुदरा महंगाई दर बढ़ कर 5.59 फीसदी पहुंच गई है। वहीं, थोक महंगाई 13.56 फीसदी के उच्चतम स्तर पर है, हालांकि दिसंबर में इसमें कुछ कमी आई है। महंगाई बढ़ने से लोगों की क्रय क्षमता प्रभावित हुई और घर का बजट बिगड़ा है। वित्त मंत्री को महंगाई पर काबू करते हुए खर्च बढ़ाने के उपाय पर जोर देना चाहिए। बजट में लोगों के बचत बढ़ाने के तरीकों पर जोर देने की जरूरत है। ऐसा करने से लोगों के हाथ में पैसे आएगा जिससे मांग बढ़ेगी जो अर्थव्यवस्था को गति देने का काम करेगी।
सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना
कोरोना महामारी के दौरान हेल्थकेयर सेक्टर ने बड़ी चुनौती का सामना किया है। आम लोगों को भयंकर परेशानी का सामना करना पड़ा है। ऐसे मे कोरोना के साये में पेश होने जा रहे इस बजट 2022 में भी हेल्थकेयर पर विशेष जोर होने की संभावना जताई जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना जैसी महामारी को देखते हुए वित्त मंत्री को सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए हेल्थ पर खर्च बढ़ाकर कम से कम जीडीपी का 3 फीसदी करने की जरूरत है। इससे देशभर में अस्पताल और इलाज की बेहतर व्यवस्था करने में मदद मिलेगी जो कम आय वर्ग को बड़ी राहत मिलेगी।