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Russia Ukraine War: यूक्रेन अगर नाटो में शामिल होता तो क्या मदद मिलती? जानें नाटो चार्टर के सभी नियम

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कीव
Published by: कुमार संभव
Updated Tue, 01 Mar 2022 07:59 PM IST

सार

बता दें कि यूक्रेन ने नाटो से मदद मांगी थी, लेकिन उसने इनकार कर दिया। नाटो का कहना था कि वह गठबंधन का सदस्य नहीं है। अब सवाल यह है कि अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाता तो रूस के हमले की स्थिति में क्या उसे मदद मिलती?

नाटो हेडक्वार्टर
– फोटो : Istock

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विस्तार

यूक्रेन पर रूस के हमले को कई दिन बीत चुके हैं। रूस की सेना यूक्रेन की राजधानी कीव के अलावा जारकीव को भी घेर चुकी है। इस दौरान यूक्रेन को कई देशों से सैन्य मदद भी मिल रही है। अहम बात यह है कि यूक्रेन ने नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन किया था, लेकिन उसे अब तक मंजूरी नहीं मिली। हालांकि, सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन को अमेरिका-ब्रिटेन से सुरक्षा गारंटी भी मिली थी, लेकिन दोनों ही देश उसे रूस के हमले से नहीं बचा पाए। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल होता तो क्या उसे मदद मिलती? कहीं उसका हाल भी तुर्की जैसा तो नहीं होता? क्या हैं 1949 में गठित हुए नाटो चार्टर के नियम और कैसे मिलती है इसमें शामिल देशों को मदद? इस स्पेशल रिपोर्ट में जानते हैं सबकुछ…

नाटो के लिए आवेदन कर चुका है यूक्रेन

रूस के हमले के बाद यूक्रेन लगातार दुनियाभर के देशों से मदद मांग रहा है। शुरुआत में उसने खुद को अकेला छोड़ने का आरोप भी लगाया था। दरअसल, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने शुक्रवार (25 फरवरी) को कहा था, ‘मैंने आज 27 यूरोपियन नेताओं से पूछा कि क्या यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाएगा…’ मुझे कोई जवाब नहीं मिला। गौरतलब है कि यूक्रेन ने नाटो की सदस्यता के आवेदन किया था, लेकिन उसे अब तक मंजूरी नहीं मिली। 

नाटो में शामिल होता तो यूक्रेन को मिलती मदद?

बता दें कि यूक्रेन ने नाटो से मदद मांगी थी, लेकिन उसने इनकार कर दिया। नाटो का कहना था कि वह गठबंधन का सदस्य नहीं है। अब सवाल यह है कि अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाता तो रूस के हमले की स्थिति में क्या उसे मदद मिलती? दरअसल, ऐसा नहीं है, क्योंकि नाटो में शामिल किसी भी देश की मदद नाटो चार्टर के नियमों के हिसाब से की जाती है। इसे तुर्की के मामले से समझा जा सकता है। दरअसल, दो साल पहले फरवरी 2020 में सीरिया के जवानों ने इदलिब प्रांत में तुर्की के 34 सैनिकों की हत्या कर दी थी। इस मामले में तुर्की ने नाटो से मदद मांगी थी, जिसे ठुकरा दिया गया था, जबकि तुर्की 1952 से नाटो का सदस्य है। 

क्या हैं नाटो चार्टर के नियम?

गौरतलब है कि जब द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हो रहा था और अमेरिका-सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हो रही थी, तब 1949 में नाटो का गठन हुआ था। शुरुआत में इस संगठन में 12 देश सदस्य थे, जिनकी संख्या अब 30 हो चुकी है। इनमें से कई देश 1991 में सोवियत संघ का विघटन होने के बाद नाटो में शामिल हुए। नाटो के चार्टर में कुल 14 आर्टिकल हैं, जिनमें अनुच्छेद पांच सबसे अहम है। दरअसल, इस नियम के तहत नाटो गारंटी देता है कि उसके किसी सदस्य पर हमला होता है तो वह अपने सामूहिक सैन्य प्रतिक्रिया तंत्र को सक्रिय कर देगा। 

सिर्फ एक ही बार काम आया यह नियम

दिलचस्प बात यह है कि नाटो के इतिहास के 71 साल में अनुच्छेद पांच का इस्तेमाल सिर्फ एक ही बार किया गया। दरअसल, जब अमेरिका में 9/11 के आतंकी हमले हुए थे, तब इस नियम का इस्तेमाल किया गया था। बता दें कि अनुच्छेद पांच के तहत सामूहिक कार्रवाई के लिए गठबंधन के सभी सदस्यों का सहमत होना बेहद जरूरी है।

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