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Russia Ukraine War: बाइडन की सफाई, जेलेंस्की के राष्ट्रवाद और पुतिन की रणनीति में छिपे हैं कई राज

सार

राष्ट्रपति जेलेंस्की इसी बात का संकेत दे रहे हैं। उन्होंने स्लाववादियों के देश यूक्रेन के नागरिकों से रूस के विरुद्ध हथियार उठाने का आह्वान किया है। वह खुद सैन्य कमांडों की वेशभूषा में आए। यूक्रेन की महिला सांसद ने भी हथियार के साथ अपना फोटो और वीडियो साझा किया। यूक्रेन के खिलाड़ी, फ्रोफेशनल्स, युवा सभी हथियार उठाकर लड़ाई लड़ने को तैयार दिख रहे हैं। इसने दुनिया की महाशक्ति रूस के राष्ट्रपति को भी परेशान और हैरान कर दिया है…

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के प्रतिनिधि बिना शर्त बेलारूस की सीमा पर चर्चा करने को राजी हैं। रूस ने इसके साथ यूक्रेन में तीसरे चरण के अभियान की शुरुआत कर दी है। इसका मकसद यथाशीघ्र युद्ध समेटना और यूक्रेन का भविष्य तय करना है। यह स्थिति राष्ट्रपति जेलेंस्की के यूक्रेन छोड़कर न भागने और अंतिम समय तक लड़ने का हौसला दिखाने के बाद आई है। दूसरा संदेश अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने आर्थिक प्रतिबंधों पर सफाई और इस सैन्य कार्रवाई को तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा बताकर दिया है। तीसरी सूचना इटली समेत तमाम देशों द्वारा यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक सहायता देने की है। यूरोप ने भी रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने में तेजी दिखानी शुरू की है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर यूक्रेन का भविष्य क्या है?

क्या छिड़ेगा गुरिल्ला युद्ध?

राष्ट्रपति जेलेंस्की इसी बात का संकेत दे रहे हैं। उन्होंने स्लाववादियों के देश यूक्रेन के नागरिकों से रूस के विरुद्ध हथियार उठाने का आह्वान किया है। वह खुद सैन्य कमांडों की वेशभूषा में आए। यूक्रेन की महिला सांसद ने भी हथियार के साथ अपना फोटो और वीडियो साझा किया। यूक्रेन के खिलाड़ी, फ्रोफेशनल्स, युवा सभी हथियार उठाकर लड़ाई लड़ने को तैयार दिख रहे हैं। इसने दुनिया की महाशक्ति रूस के राष्ट्रपति को भी परेशान और हैरान कर दिया है। राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी अपने नागरिकों से खिड़कियों से हमला करने की तरकीब बताई है। यूक्रेन की जनता न तो डर रही है और न ही पीछे हट रही है। राष्ट्रपति पुतिन जैसे रणनीतिकार को पता है कि वह यूक्रेन की आम जनता की इस कदर नाराजगी भड़कने पर यूक्रेन में सफल नहीं हो सकते।

कीव, खारकीव समेत यूक्रेन के तमाम शहरों से खबर आ रही है कि वहां नागरिकों ने हथियार उठाकर प्रतिरोध तेज कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि रूस इस स्थिति से बचना चाहता है। उसे पहले उम्मीद थी कि यूक्रेन की सेना जल्द ही हथियार डाल देगी। राष्ट्रपति जेलेंस्की आत्मसमर्पण करेंगे या फिर देश छोड़ देंगे। लेकिन फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैंक्रों ने इस लड़ाई के लंबा खिचने का संकेत दे दिया है। जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्काल्ज चुप हैं। इस तरह से लड़ाई गुरिल्ला युद्ध पद्धति पर आकर टिक गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन सफाई दे रहे हैं और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कोई बहुत ठोस कदम नहीं उठाया है। ऐसे में दो चींजे बिल्कुल साफ हैं। रूस को बुल्गारिया, रोमानिया, इस्तोनिया, लिथुआनिया, पोलैंड आदि के सहारे कड़ा जवाब नहीं दिया जा सकता। न ही इटली जैसे देशों द्वारा सैन्य उपकरणों की मदद से कुछ खास होने वाला है। बड़ा सवाल यह भी है कि जब तक अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे बड़े देश अभियान में शामिल नहीं होते, यूक्रेन तक सैन्य मदद पहुंचाना भी मुश्किल है। रूस ने यूक्रेन को जमीन, आसमान, जल जैसे सभी रास्तों से घेर रखा है। सब कुछ निगहबानी में है। ऐसे में नागरिकों का संघर्ष या गुरिल्ला वार ही अंतिम विकल्प है।

यूक्रेन में लंबी लड़ाई नहीं चाहता रूस

राष्ट्रपति पुतिन का दिमाग पढ़ना मुश्किल है, लेकिन उनके नए आदेश से लग रहा है कि वह यूक्रेन संकट को जल्द समेटने की तीसरी रणनीति पर काम कर रहे हैं। सामरिक मामलों के विशेषज्ञ और पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा का कहना है कि बेलारूस की सीमापर बातचीत शुरू होने की संभावना के बाद सीधी लड़ाई तो बंद हो जाएगी। लेकिन नागरिक क्षेत्रों में गुरिल्ला संघर्ष चल सकता है। इसके कारण हताहत होने वाले लोगों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हो सकती है। जनरल शर्मा का कहना है कि यूक्रेन राष्ट्रपति और वहां की जनता ने एक जज्बा दिखाया है। यह रूस के लिए परेशानी का सबब है। क्योंकि जितना युद्ध या गुरिल्ला संघर्ष लंबा खिंचेगा, उतना रूस के लिए दिक्कतें बढ़ेंगी। इसलिए संवाद की प्रतिक्रया शुरू करके रूस की भी पहली कोशिश संघर्ष विराम की तरफ बढ़ना हो सकता है। जान-माल के अधिक नुकसान को रोकने में ही भलाई भी है।

रूस, अमेरिका, यूक्रेन को सोचना होगा

जनरल (रिटा.) शर्मा कहते हैं कि यूक्रेन के ताजा संकट के लिए अमेरिका, यूक्रेन, रूस तीनों जिम्मेदार हैं। जब रूस यूक्रेन में हमला कर रहा था तो अमेरिका उस दिन दूसरे देश में बमबारी कर रहा था। कहने का अर्थ यह कि अमेरिका के भी कोई सात खून माफ नहीं हैं। उसे रूस की सुरक्षा चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए। जनरल (रिटा.) राकेश शर्मा कहते हैं कि यूक्रेन को किन लोगों ने रूस के खिलाफ खड़े होने का साहस दिया? यह बड़ा सवाल है। जब रूस ने आक्रमण शुरू किया तो नाटो समेत अमेरिका पीछे हट गया। इसी तरह से यूक्रेन की समझ में भी यह बात आनी चाहिए कि रूस की सुरक्षा चिंताएं जायज हैं। उसका नाटो संगठन में शामिल होना उचित नहीं कहा जाएगा। जनरल शर्मा कहते हैं कि इस पूरे प्रकरण में बहुत गलतियां हुई हैं। गलती रूस ने भी की है और पश्चिम के देशों ने भी की है। इसे सभी को समझ और मानकर ठीक करना पड़ेगा।

नई रणनीति में फंसे रूस के माथे पर बल

रूस की पहली मंशा यूक्रेन को यथाशीघ्र बफर जोन बनाने की है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार मान रहे हैं कि रूस के सामने जटिलताएं आनी शुरू हो रही हैं। पहली रणनीति में सैन्य तैयारी, तैनाती और यूक्रेन को डराकर बातचीत की मेज पर लाना था। रणनीति का दूसरा चरण साइबर हमला, सैनिकों को यूक्रेन भेजने, संक्षिप्त सैन्य ऑपरेशन से स्थितियों पर नियंत्रण करना था। अब उन्होंने तीसरे चरण की शुरुआत की है। इसमें सेना को चारों तरफ से यूक्रेन में घुसने, सैन्य ऑपरेशन तेज करने का आदेश दिया गया है। इसका आशय यथाशीघ्र इस लड़ाई में यूक्रेन के नागरिकों की भागीदारी को रोकना है। ताकि यूक्रेन संकट का रूस अपनी शर्तों पर समाधान कर सके। ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिका समेत तमाम देश यूक्रेन में लड़ाई के लंबे समय तक खिचने के पक्ष में हैं। इससे न केवल रूस की मुश्किलें बढ़ेंगी, बल्कि आर्थिक बोझ, सैन्य संसाधन, रसद सामग्री की आपूर्ति का संकट खड़ा होगा। रूस के लिए यह दबाव झेलना मुश्किल होगा और वह सैन्य ऑपरेशन की बजाय बातचीत, संवाद के रास्ते को अपनाने की तरफ बढ़ेगा।

आर्थिक प्रतिबंधों को क्यों तवज्जो नहीं दे रहा है रूस?

रूस का अधिकांश व्यापार यूरोप के देशों से होता है। मास्को में लंबे समय तक रह चुके एसके शर्मा कहते हैं कि यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था। तब यूक्रेन में सभी बड़े उद्योग और तकनीकी का विकास यूरोप के बाजार को देखकर हुआ था। एसके शर्मा कहते हैं कि रूस के व्यापार का बड़ा केंद्र यूरोपीय देश हैं। यह रूस को भी पता है कि इस संबंध को पूरी तरह समाप्त करने से यूरोप की अर्थव्यवस्था बुरी तरह लडख़ड़ा जाएगी। यही कारण हैं कि अभी तक रूस के खिलाफ कड़े आर्थिक प्रतिबंधों की बात हुई है, लेकिन यह सब हाथी के दिखाने वाले दांत हैं। यूरोपीय और नाटो देशों को आर्थिक प्रतिबंध के अगले चरण को लेकर रूस की प्रतिक्रिया का भी अंदाजा है। इसलिए नाटो संगठन के देश धीरे-धीरे रूस को थकाने की रणनीति पर चल रहे हैं। राष्ट्रपति जेलेंस्की और यूक्रेन के नागरिकों के हौसले ने इस रणनीति में जान डाल दी है। जबकि बदलते हालात में रूस के राष्ट्रपति पुतिन यथाशीघ्र शांति प्रक्रिया की बहाली की रणनीति बना रहे हैं। ताकि यह जीती हुई बाजी बनी रहे।

विस्तार

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के प्रतिनिधि बिना शर्त बेलारूस की सीमा पर चर्चा करने को राजी हैं। रूस ने इसके साथ यूक्रेन में तीसरे चरण के अभियान की शुरुआत कर दी है। इसका मकसद यथाशीघ्र युद्ध समेटना और यूक्रेन का भविष्य तय करना है। यह स्थिति राष्ट्रपति जेलेंस्की के यूक्रेन छोड़कर न भागने और अंतिम समय तक लड़ने का हौसला दिखाने के बाद आई है। दूसरा संदेश अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने आर्थिक प्रतिबंधों पर सफाई और इस सैन्य कार्रवाई को तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा बताकर दिया है। तीसरी सूचना इटली समेत तमाम देशों द्वारा यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक सहायता देने की है। यूरोप ने भी रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने में तेजी दिखानी शुरू की है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर यूक्रेन का भविष्य क्या है?

क्या छिड़ेगा गुरिल्ला युद्ध?

राष्ट्रपति जेलेंस्की इसी बात का संकेत दे रहे हैं। उन्होंने स्लाववादियों के देश यूक्रेन के नागरिकों से रूस के विरुद्ध हथियार उठाने का आह्वान किया है। वह खुद सैन्य कमांडों की वेशभूषा में आए। यूक्रेन की महिला सांसद ने भी हथियार के साथ अपना फोटो और वीडियो साझा किया। यूक्रेन के खिलाड़ी, फ्रोफेशनल्स, युवा सभी हथियार उठाकर लड़ाई लड़ने को तैयार दिख रहे हैं। इसने दुनिया की महाशक्ति रूस के राष्ट्रपति को भी परेशान और हैरान कर दिया है। राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी अपने नागरिकों से खिड़कियों से हमला करने की तरकीब बताई है। यूक्रेन की जनता न तो डर रही है और न ही पीछे हट रही है। राष्ट्रपति पुतिन जैसे रणनीतिकार को पता है कि वह यूक्रेन की आम जनता की इस कदर नाराजगी भड़कने पर यूक्रेन में सफल नहीं हो सकते।

कीव, खारकीव समेत यूक्रेन के तमाम शहरों से खबर आ रही है कि वहां नागरिकों ने हथियार उठाकर प्रतिरोध तेज कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि रूस इस स्थिति से बचना चाहता है। उसे पहले उम्मीद थी कि यूक्रेन की सेना जल्द ही हथियार डाल देगी। राष्ट्रपति जेलेंस्की आत्मसमर्पण करेंगे या फिर देश छोड़ देंगे। लेकिन फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैंक्रों ने इस लड़ाई के लंबा खिचने का संकेत दे दिया है। जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्काल्ज चुप हैं। इस तरह से लड़ाई गुरिल्ला युद्ध पद्धति पर आकर टिक गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन सफाई दे रहे हैं और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कोई बहुत ठोस कदम नहीं उठाया है। ऐसे में दो चींजे बिल्कुल साफ हैं। रूस को बुल्गारिया, रोमानिया, इस्तोनिया, लिथुआनिया, पोलैंड आदि के सहारे कड़ा जवाब नहीं दिया जा सकता। न ही इटली जैसे देशों द्वारा सैन्य उपकरणों की मदद से कुछ खास होने वाला है। बड़ा सवाल यह भी है कि जब तक अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे बड़े देश अभियान में शामिल नहीं होते, यूक्रेन तक सैन्य मदद पहुंचाना भी मुश्किल है। रूस ने यूक्रेन को जमीन, आसमान, जल जैसे सभी रास्तों से घेर रखा है। सब कुछ निगहबानी में है। ऐसे में नागरिकों का संघर्ष या गुरिल्ला वार ही अंतिम विकल्प है।

यूक्रेन में लंबी लड़ाई नहीं चाहता रूस

राष्ट्रपति पुतिन का दिमाग पढ़ना मुश्किल है, लेकिन उनके नए आदेश से लग रहा है कि वह यूक्रेन संकट को जल्द समेटने की तीसरी रणनीति पर काम कर रहे हैं। सामरिक मामलों के विशेषज्ञ और पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा का कहना है कि बेलारूस की सीमापर बातचीत शुरू होने की संभावना के बाद सीधी लड़ाई तो बंद हो जाएगी। लेकिन नागरिक क्षेत्रों में गुरिल्ला संघर्ष चल सकता है। इसके कारण हताहत होने वाले लोगों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हो सकती है। जनरल शर्मा का कहना है कि यूक्रेन राष्ट्रपति और वहां की जनता ने एक जज्बा दिखाया है। यह रूस के लिए परेशानी का सबब है। क्योंकि जितना युद्ध या गुरिल्ला संघर्ष लंबा खिंचेगा, उतना रूस के लिए दिक्कतें बढ़ेंगी। इसलिए संवाद की प्रतिक्रया शुरू करके रूस की भी पहली कोशिश संघर्ष विराम की तरफ बढ़ना हो सकता है। जान-माल के अधिक नुकसान को रोकने में ही भलाई भी है।

रूस, अमेरिका, यूक्रेन को सोचना होगा

जनरल (रिटा.) शर्मा कहते हैं कि यूक्रेन के ताजा संकट के लिए अमेरिका, यूक्रेन, रूस तीनों जिम्मेदार हैं। जब रूस यूक्रेन में हमला कर रहा था तो अमेरिका उस दिन दूसरे देश में बमबारी कर रहा था। कहने का अर्थ यह कि अमेरिका के भी कोई सात खून माफ नहीं हैं। उसे रूस की सुरक्षा चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए। जनरल (रिटा.) राकेश शर्मा कहते हैं कि यूक्रेन को किन लोगों ने रूस के खिलाफ खड़े होने का साहस दिया? यह बड़ा सवाल है। जब रूस ने आक्रमण शुरू किया तो नाटो समेत अमेरिका पीछे हट गया। इसी तरह से यूक्रेन की समझ में भी यह बात आनी चाहिए कि रूस की सुरक्षा चिंताएं जायज हैं। उसका नाटो संगठन में शामिल होना उचित नहीं कहा जाएगा। जनरल शर्मा कहते हैं कि इस पूरे प्रकरण में बहुत गलतियां हुई हैं। गलती रूस ने भी की है और पश्चिम के देशों ने भी की है। इसे सभी को समझ और मानकर ठीक करना पड़ेगा।

नई रणनीति में फंसे रूस के माथे पर बल

रूस की पहली मंशा यूक्रेन को यथाशीघ्र बफर जोन बनाने की है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार मान रहे हैं कि रूस के सामने जटिलताएं आनी शुरू हो रही हैं। पहली रणनीति में सैन्य तैयारी, तैनाती और यूक्रेन को डराकर बातचीत की मेज पर लाना था। रणनीति का दूसरा चरण साइबर हमला, सैनिकों को यूक्रेन भेजने, संक्षिप्त सैन्य ऑपरेशन से स्थितियों पर नियंत्रण करना था। अब उन्होंने तीसरे चरण की शुरुआत की है। इसमें सेना को चारों तरफ से यूक्रेन में घुसने, सैन्य ऑपरेशन तेज करने का आदेश दिया गया है। इसका आशय यथाशीघ्र इस लड़ाई में यूक्रेन के नागरिकों की भागीदारी को रोकना है। ताकि यूक्रेन संकट का रूस अपनी शर्तों पर समाधान कर सके। ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिका समेत तमाम देश यूक्रेन में लड़ाई के लंबे समय तक खिचने के पक्ष में हैं। इससे न केवल रूस की मुश्किलें बढ़ेंगी, बल्कि आर्थिक बोझ, सैन्य संसाधन, रसद सामग्री की आपूर्ति का संकट खड़ा होगा। रूस के लिए यह दबाव झेलना मुश्किल होगा और वह सैन्य ऑपरेशन की बजाय बातचीत, संवाद के रास्ते को अपनाने की तरफ बढ़ेगा।

आर्थिक प्रतिबंधों को क्यों तवज्जो नहीं दे रहा है रूस?

रूस का अधिकांश व्यापार यूरोप के देशों से होता है। मास्को में लंबे समय तक रह चुके एसके शर्मा कहते हैं कि यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था। तब यूक्रेन में सभी बड़े उद्योग और तकनीकी का विकास यूरोप के बाजार को देखकर हुआ था। एसके शर्मा कहते हैं कि रूस के व्यापार का बड़ा केंद्र यूरोपीय देश हैं। यह रूस को भी पता है कि इस संबंध को पूरी तरह समाप्त करने से यूरोप की अर्थव्यवस्था बुरी तरह लडख़ड़ा जाएगी। यही कारण हैं कि अभी तक रूस के खिलाफ कड़े आर्थिक प्रतिबंधों की बात हुई है, लेकिन यह सब हाथी के दिखाने वाले दांत हैं। यूरोपीय और नाटो देशों को आर्थिक प्रतिबंध के अगले चरण को लेकर रूस की प्रतिक्रिया का भी अंदाजा है। इसलिए नाटो संगठन के देश धीरे-धीरे रूस को थकाने की रणनीति पर चल रहे हैं। राष्ट्रपति जेलेंस्की और यूक्रेन के नागरिकों के हौसले ने इस रणनीति में जान डाल दी है। जबकि बदलते हालात में रूस के राष्ट्रपति पुतिन यथाशीघ्र शांति प्रक्रिया की बहाली की रणनीति बना रहे हैं। ताकि यह जीती हुई बाजी बनी रहे।

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