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Manipur Assembly Elections: मजबूत हुआ भाजपा का पूर्वोत्तर किला, हिमंता के बाद भगवा ब्रिगेड को बीरेन सिंह के रूप में मिला एक और ब्रांड

अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Published by: Rajeev Rai
Updated Fri, 11 Mar 2022 06:42 AM IST

सार

भाजपा को मणिपुर में मिली जीत इस बार खास है। पार्टी पहली बार पूर्वोत्तर के एक और महत्वपूर्ण राज्य में अपने दम पर कमल खिलाने में कामयाब रही। वह भी तब, जब सरकार में उसकी सहयोगी एनपीपी और एनपीएफ ने चुनाव से ठीक पहले अलग रास्ता चुन लिया था।

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भाजपा को मणिपुर में मिली जीत इस बार खास है। पार्टी पहली बार पूर्वोत्तर के एक और महत्वपूर्ण राज्य में अपने दम पर कमल खिलाने में कामयाब रही। वह भी तब, जब सरकार में उसकी सहयोगी एनपीपी और एनपीएफ ने चुनाव से ठीक पहले अलग रास्ता चुन लिया था। इस जीत ने पूर्वोत्तर में असम के सीएम हिमंता विस्वा सरमा के बाद एन बीरेन सिंह के रूप में भाजपा को एक और मजबूत ब्रांड दिया है। भाजपा ऐसे समय में मणिपुर की सत्ता बचाने में कामयाब हुई है, जब पूरे पूर्वोत्तर में अफ्स्पा के खिलाफ आंदोलन चल रहा है। नगालैंड में सेना की गोलीबारी से कई लोगों की मौत के बाद कई राज्यों में हिंसक झड़प हुईं। इसके बावजूद अपने घोषणा पत्र में भाजपा ने अफ्स्पा का जिक्र तक नहीं किया।

तब कांग्रेस को दिया झटका : 
बीते चुनाव में कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से महज तीन सीटें दूर थी। भाजपा को सरकार बनाने के लिए 10 अतिरिक्त विधायकों की जरूरत थी। इस बीच, बीरेन ने एनपीपी, एनपीएफ, लोजपा और दो निर्दलीय विधायकों को साधकर कांग्रेस को सत्ता से दूर कर दिया। अब पूर्वोत्तर के असम, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मेघालय में भाजपा की सरकार है।

पूर्व कांग्रेसी हैं दोनों ब्रांड
पूर्वोत्तर में भाजपा के पास अब हिमंता और बीरेन के रूप में दो मजबूत ब्रांड हैं। कांग्रेस में उपेक्षा से नाराज दोनों नेता करीब-करीब एक ही समय भगवा खेमे में शामिल हुए थे। इनमें हिमंता बीते साल असम चुनाव में जीत के शिल्पकार रहे तो बीरेन ने सीएम पद पर रहते हुए भगवा झंडा बुलंद रखने में कामयाबी हासिल की।

कौन हैं बीरेन सिंह
बीरेन मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी के साथ पत्रकार भी रहे हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक कॅरिअर की शुरुआत डेमोक्रेटिक पीपुल्स फ्रंट (डीपीएफ) से की। बाद में डीपीएफ का कांग्रेस में विलय हो गया। 2012 में तीसरी जीत के बाद भी बीरेन को कांग्रेस सरकार में जगह नहीं मिली। इससे नाराज होकर उन्होंने 2016 में भाजपा का दामन थाम लिया। इसके एक साल बाद ही उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया।

विस्तार

भाजपा को मणिपुर में मिली जीत इस बार खास है। पार्टी पहली बार पूर्वोत्तर के एक और महत्वपूर्ण राज्य में अपने दम पर कमल खिलाने में कामयाब रही। वह भी तब, जब सरकार में उसकी सहयोगी एनपीपी और एनपीएफ ने चुनाव से ठीक पहले अलग रास्ता चुन लिया था। इस जीत ने पूर्वोत्तर में असम के सीएम हिमंता विस्वा सरमा के बाद एन बीरेन सिंह के रूप में भाजपा को एक और मजबूत ब्रांड दिया है। भाजपा ऐसे समय में मणिपुर की सत्ता बचाने में कामयाब हुई है, जब पूरे पूर्वोत्तर में अफ्स्पा के खिलाफ आंदोलन चल रहा है। नगालैंड में सेना की गोलीबारी से कई लोगों की मौत के बाद कई राज्यों में हिंसक झड़प हुईं। इसके बावजूद अपने घोषणा पत्र में भाजपा ने अफ्स्पा का जिक्र तक नहीं किया।

तब कांग्रेस को दिया झटका : 

बीते चुनाव में कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से महज तीन सीटें दूर थी। भाजपा को सरकार बनाने के लिए 10 अतिरिक्त विधायकों की जरूरत थी। इस बीच, बीरेन ने एनपीपी, एनपीएफ, लोजपा और दो निर्दलीय विधायकों को साधकर कांग्रेस को सत्ता से दूर कर दिया। अब पूर्वोत्तर के असम, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मेघालय में भाजपा की सरकार है।

पूर्व कांग्रेसी हैं दोनों ब्रांड

पूर्वोत्तर में भाजपा के पास अब हिमंता और बीरेन के रूप में दो मजबूत ब्रांड हैं। कांग्रेस में उपेक्षा से नाराज दोनों नेता करीब-करीब एक ही समय भगवा खेमे में शामिल हुए थे। इनमें हिमंता बीते साल असम चुनाव में जीत के शिल्पकार रहे तो बीरेन ने सीएम पद पर रहते हुए भगवा झंडा बुलंद रखने में कामयाबी हासिल की।

कौन हैं बीरेन सिंह

बीरेन मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी के साथ पत्रकार भी रहे हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक कॅरिअर की शुरुआत डेमोक्रेटिक पीपुल्स फ्रंट (डीपीएफ) से की। बाद में डीपीएफ का कांग्रेस में विलय हो गया। 2012 में तीसरी जीत के बाद भी बीरेन को कांग्रेस सरकार में जगह नहीं मिली। इससे नाराज होकर उन्होंने 2016 में भाजपा का दामन थाम लिया। इसके एक साल बाद ही उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया।

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