ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Wed, 09 Feb 2022 01:46 PM IST
सार
kumbh sankranti 2022: 13 फरवरी को कुंभ संक्रांति के दिन त्रिपुष्कर और प्रीति योग का निर्माण हो रहा है जिसके कारण से इस संक्रांति का महत्व काफी बढ़ गया है।
Kumbh Sankranti 2022 Puja Vidhi Shubh Muhurat: वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य लगभग एक महीने एक से दूसरी राशि में अपना स्थान परिवर्तन करते रहते हैं। सूर्य के राशि परिवर्तन को ही संक्रांति कहा जाता है। सूर्य देव अभी मकर राशि में विचरण कर रहे हैं। 13 फरवरी को सूर्य मकर राशि की अपनी यात्रा को छोड़कर कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। करीब एक महीने तक कुंभ राशि में गोचर करने से इसे कुंभ संक्रांति कहा जाएगा। दरअसल, सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में जाते हैं तो इसे संक्रांति कहते हैं। सूर्य देव जिस भी राशि में जाते हैं संक्रांति उसी राशि के नाम पर पड़ती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए सूर्य चालीसा का पाठ करना बहुत लाभकारी होता है। 13 फरवरी को कुंभ संक्रांति के दिन त्रिपुष्कर और प्रीति योग का निर्माण हो रहा है जिसके कारण से इस संक्रांति का महत्व काफी बढ़ गया है। आइए जानते हैं कुंभ संक्रांति का महत्व, शुभ मुहूर्त और पुण्यकाल …
कुंभ संक्रांति का महत्व
हिंदू धर्म में जिस तरह से पूर्णिमा, अमावस्या और एकादशी तिथि का महत्व होता है उसी तरह से हर माह पड़ने वाली सूर्य संक्रांति का भी विशेष महत्व होता है। 13 फरवरी को कुंभ संक्रांति है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुंभ संक्रांति के दिन सभी पवित्र नदियों में स्नान करके सूर्य देव को जल अर्पित करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन स्नान के साथ दान करने का भी विशेष महत्व होता है। मान्यता है इस दिन दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
कुंभ संक्रांति का शुभ मुहूर्त और पुण्य काल
कुंभ राशि में सूर्य का प्रवेश 13 फरवरी को सुबह 03 बजकर 41 मिनट पर हो जाएगा। इस तरह से कुंभ संक्रांति का पुण्य काल सुबह 07 बजकर 01 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। वही अगर महापुण्य काल की बात करें तो कुंभ संक्रांति का महापुण्य काल सुबह 7 बजकर 01 मिनट से 08 बजकर 53 मिनट तक है।
संक्रांति पर दान का महत्व
सभी 12 संक्रांतियों पर गंगा स्नान और दान करने का विशेष महत्व होता है। संक्रांति के पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद सूर्यदेव को अक्षत के साथ जल अर्पित किया जाता है। इस मौके पर सूर्यदेव से जुड़े मंत्रों का जाप करना और इनसे जुड़ी वस्तुओं का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
विस्तार
Kumbh Sankranti 2022 Puja Vidhi Shubh Muhurat: वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य लगभग एक महीने एक से दूसरी राशि में अपना स्थान परिवर्तन करते रहते हैं। सूर्य के राशि परिवर्तन को ही संक्रांति कहा जाता है। सूर्य देव अभी मकर राशि में विचरण कर रहे हैं। 13 फरवरी को सूर्य मकर राशि की अपनी यात्रा को छोड़कर कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। करीब एक महीने तक कुंभ राशि में गोचर करने से इसे कुंभ संक्रांति कहा जाएगा। दरअसल, सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में जाते हैं तो इसे संक्रांति कहते हैं। सूर्य देव जिस भी राशि में जाते हैं संक्रांति उसी राशि के नाम पर पड़ती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए सूर्य चालीसा का पाठ करना बहुत लाभकारी होता है। 13 फरवरी को कुंभ संक्रांति के दिन त्रिपुष्कर और प्रीति योग का निर्माण हो रहा है जिसके कारण से इस संक्रांति का महत्व काफी बढ़ गया है। आइए जानते हैं कुंभ संक्रांति का महत्व, शुभ मुहूर्त और पुण्यकाल …
कुंभ संक्रांति का महत्व
हिंदू धर्म में जिस तरह से पूर्णिमा, अमावस्या और एकादशी तिथि का महत्व होता है उसी तरह से हर माह पड़ने वाली सूर्य संक्रांति का भी विशेष महत्व होता है। 13 फरवरी को कुंभ संक्रांति है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुंभ संक्रांति के दिन सभी पवित्र नदियों में स्नान करके सूर्य देव को जल अर्पित करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन स्नान के साथ दान करने का भी विशेष महत्व होता है। मान्यता है इस दिन दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
कुंभ संक्रांति का शुभ मुहूर्त और पुण्य काल
कुंभ राशि में सूर्य का प्रवेश 13 फरवरी को सुबह 03 बजकर 41 मिनट पर हो जाएगा। इस तरह से कुंभ संक्रांति का पुण्य काल सुबह 07 बजकर 01 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। वही अगर महापुण्य काल की बात करें तो कुंभ संक्रांति का महापुण्य काल सुबह 7 बजकर 01 मिनट से 08 बजकर 53 मिनट तक है।
संक्रांति पर दान का महत्व
सभी 12 संक्रांतियों पर गंगा स्नान और दान करने का विशेष महत्व होता है। संक्रांति के पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद सूर्यदेव को अक्षत के साथ जल अर्पित किया जाता है। इस मौके पर सूर्यदेव से जुड़े मंत्रों का जाप करना और इनसे जुड़ी वस्तुओं का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
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