न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Sun, 09 Jan 2022 07:56 AM IST
सार
Google Doodle Fatima Sheikh Birthday : फातिमा शेख ने समाज सुधारक ज्योति बा फुले और सावित्री बाई फुले के साथ मिलकर 1848 में स्वदेशी पुस्तकालय की शुरुआत की थी, यह देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है।
भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका फामिता शेख की आज 191 वीं जयंती है। इस मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया है।
फातिमा शेख ने समाज सुधारक ज्योति बा फुले और सावित्री बाई फुले के साथ मिलकर 1848 में स्वदेशी पुस्तकालय की शुरुआत की थी, यह देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। फातिमा शेख का जन्म आज ही के दिन यानी 9 जनवरी 1831 को पुणे में हुआ था। वह अपने भाई उस्मान के साथ रहती थीं। जब फूले दंपती को दलित व गरीबों को शिक्षा देने के विरोध में उनके पिता ने घर से निकाल दिया था तो उस्मान शेख व फातिमा ने उन्हें शरण दी थी।
स्वदेशी पुस्तकालय की स्थापना शेख के घर में ही हुई थी। यहीं फातिमा शेख और फुले दंपती ने समाज के गरीब व वंचित तबकों व मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा देने का काम शुरू किया था। पुणे के इसी स्कूल में उन लोगों को शिक्षा देने का महायज्ञ शुरू हुआ था, जिन्में जाति, धर्म व लिंग के आधार पर उस वक्त शिक्षा से वंचित रखा जाता था।
घर-घर जाती थीं बच्चों को बुलाने
फातिमा बच्चों को अपने घर में पढ़ने बुलाने के लिए घर-घर जाती थीं। वह चाहती थीं कि भारतीय जाति व्यवस्था की बाधा पार कर वंचित तबके के बच्चे पुस्तकालय में आएं और पढ़ें। वह फुले दंपती की तरह जीवन भर शिक्षा व समानता के लिए संघर्ष में जुटी रहीं। अपने इस मिशन में उन्हें भारी अवरोधों का भी सामना करना पड़ा। समाज के प्रभावशाली तबके ने उनके काम में रोड़े डाले। उन्हें परेशान किया गया, लेकिन शेख व उनके सहयोगियों ने हार नहीं मानी।
विस्तार
भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका फामिता शेख की आज 191 वीं जयंती है। इस मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया है।
फातिमा शेख ने समाज सुधारक ज्योति बा फुले और सावित्री बाई फुले के साथ मिलकर 1848 में स्वदेशी पुस्तकालय की शुरुआत की थी, यह देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। फातिमा शेख का जन्म आज ही के दिन यानी 9 जनवरी 1831 को पुणे में हुआ था। वह अपने भाई उस्मान के साथ रहती थीं। जब फूले दंपती को दलित व गरीबों को शिक्षा देने के विरोध में उनके पिता ने घर से निकाल दिया था तो उस्मान शेख व फातिमा ने उन्हें शरण दी थी।
स्वदेशी पुस्तकालय की स्थापना शेख के घर में ही हुई थी। यहीं फातिमा शेख और फुले दंपती ने समाज के गरीब व वंचित तबकों व मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा देने का काम शुरू किया था। पुणे के इसी स्कूल में उन लोगों को शिक्षा देने का महायज्ञ शुरू हुआ था, जिन्में जाति, धर्म व लिंग के आधार पर उस वक्त शिक्षा से वंचित रखा जाता था।
घर-घर जाती थीं बच्चों को बुलाने
फातिमा बच्चों को अपने घर में पढ़ने बुलाने के लिए घर-घर जाती थीं। वह चाहती थीं कि भारतीय जाति व्यवस्था की बाधा पार कर वंचित तबके के बच्चे पुस्तकालय में आएं और पढ़ें। वह फुले दंपती की तरह जीवन भर शिक्षा व समानता के लिए संघर्ष में जुटी रहीं। अपने इस मिशन में उन्हें भारी अवरोधों का भी सामना करना पड़ा। समाज के प्रभावशाली तबके ने उनके काम में रोड़े डाले। उन्हें परेशान किया गया, लेकिन शेख व उनके सहयोगियों ने हार नहीं मानी।
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