साल 2003 में मार्क जुकरबर्ग हार्वड विश्वविद्यालय में एक स्टूडेंट थे। मार्क ने शुरू से ही कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में महारत हासिल कर रखी थी। 2003 में मार्क ने हार्वड स्टूडेंट की डायरेक्टरी सर्वेर को हैक कर उसमें जितनी प्रोफाइल थी, उन्हें एकत्रित कर एक नई साइट बनाई फेशमैस।
इस मजाकिया प्लेटफॉर्म पर सुंदर लड़कियों की तस्वीरों को लगाया जाता था और उस पर वोटिंग होती थी कि उनमें से ज्यादा आकर्षक कौन है? इसके विषय में जैसे ही हावर्ड के प्रबंधन को पता चला उन्होंने तुरंत वेबसाइट को बंद करवा दिया। इसके बाद साल 2004 शुरू होता है। साल के शुरुआती दौर में मार्क जुकरबर्ग अपने तीन साथियों (डीउस्टिन मोस्कोवीटज, एडुआर्ड़ो सवेरिन और क्रिस ह्यूज) के साथ पार्टनरशिप कर फरवरी 2004 मेें फेसबुक डॉट कॉम की शुरुआत की।
फेसबुक की शुरुआत केवल हावर्ड यूनिवर्सिटी के बच्चों के लिए की गई थी। हालांकि बाद में बड़े पैमाने पर दूसरे यूनिवर्सिटी के छात्र भी इसमें शामिल होने लगे। फेसबुक का बड़ी तेजी से विस्तार हो रहा था। देखते ही देखते इसका प्रसार प्रचार दुनिया के बाकी देशों में भी होने लगा। इसी बीच दिव्या नरेंद्र, ट्विन्स कैमरन और टायलर विंकलवॉस ने मार्क जुकरबर्ग पर ये आरोप लगाया कि जुकरबर्ग ने उनके आइडिया को चोरी करके वेबसाइट बनाई है। हालांकि बाद में दोनों पक्षों के बीच इसे लेकर कोर्ट में सैटलमेंट हुआ।
फेसबुक के साथ अब लाखों की संख्या में लोग जुड़ रहे थे। ऐसे में अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कई बड़ी कंपनियों ने उसके साथ साझेदारी की, जिसके चलते फेसबुक को बड़े स्तर पर फायदा पहुंचा। साल 2010 तक आते आते फेसबुक का नाम दुनिया के सभी देशों में जाना जाने लगा था। उसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए फेसबुक का शेयर प्राइस आसमान छू रहा था।
सफलता के साथ साथ फेसबुक की कामयाबी के रास्ते में कई अड़चनें भी आईं। फेसबुक कई बार सवालों के घेरे में आया। कैंब्रिज एनालिटिका का मामला जब दुनिया के सामने उजागर हुआ, उस दौरान फेसबुक पर ये आरोप लगे कि उसने करोड़ों यूजर्स के डाटा को पॉलिटिकली पॉलोराइज करने के लिए बेचा है। इस बड़ी घटना के सामने आने के बाद यूजर्स डाटा प्राइवेसी के कई सवाल दुनिया के सामने उभरे। हालांकि बाद में कोर्ट में इसे लेकर काफी बहसबाजी भी हुई थी।
