एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला
Published by: हर्षिता सक्सेना
Updated Tue, 01 Mar 2022 02:27 AM IST
सार
मशहूर अभिनेता गजेंद्र चौहान हाल ही में हरियाणा की सुपवा यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के पद पर नियुक्त किए हैं। ऐसे में अभिनेता ने अमर उजाला के साथ अपने अभिनय से लेकर कुलपति तक के सफर से जुड़ी गई सारी बातें साझा की।
अभिनेता गजेंद्र चौहान से खास बातचीत
– फोटो : यूट्यूब
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विस्तार
टेलीविजन के मशहूर धारावाहिक महाभारत में धर्मराज युधिष्ठिर का किरदार निभाने वाले मशहूर अभिनेता गजेंद्र चौहान हाल ही में हरियाणा की सुपवा यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के पद पर नियुक्त किए हैं। ऐसे में अभिनेता ने अमर उजाला के साथ अपने अभिनय से लेकर कुलपति तक के सफर से जुड़ी गई सारी बातें साझा की। पढ़िए एक्टर के साक्षात्कार के कुछ अंश-
सवाल:अभिनय की दुनिया में आप की शुरुआत कब और कैसे हुई?
जवाब: मैं एक मिडिल क्लास फैमिली ताल्लुक रखता हूं। दिल्ली के पास एक छोटे से गांव खानपुर का रहने वाला हूं। मेरे परिवार में इस पीढ़ी और बीती पीढ़ी से कोई भी कलाकार नहीं रहा और ना ही किसी का फिल्म इंडस्ट्री से कोई संबंध रहा है। लेकिन ना जाने मेरे अंदर कहां से यह प्रतिभा आई और मैं स्कूल- गांव में छोटे-छोटे नाटकों में हिस्सा लेने लगा। इसके बाद मैं ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज गया, जहां से मैंने डिप्लोमा इन रेडियोग्राफी किया। इस दौरान मैं कॉलेज में भी कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेता था। इस बीच मेरी मुलाकात रोशन तनेजा साहब से हुई, जो उस समय न्यू हंट टैलेंट की तलाश कर रहे थे। इस दौरान 200 -250 बच्चों में से मैं इकलौता ऐसा स्टूडेंट था, जो दिल्ली बैच से सिलेक्ट हुआ था। इसके बाद में डिप्लोमा इन एक्टिंग करने के लिए मुंबई चला गया। रोशन तनेजा साहब एसटीआईआई में एचओडी थे। मेरा सौभाग्य है कि मैंने उनके यहां से 1 साल का एक्टिंग का कोर्स किया और अपने अभिनय करियर की शुरुआत की।
सवाल: महाभारत में युधिष्ठिर के किरदार के लिए आपका चयन कैसे हुआ?
जवाब: 1984 में चोपड़ा साहब के यहां से एक विज्ञापन निकला था, जिसमें बताया गया था कि एक नया धारावाहिक आ रहा है महाभारत जिसके लिए कलाकारों की आवश्यकता है। उस समय मैं पहले से ही चोपड़ा साहब के कैंप में काम कर रहा था। मैंने भी अपना रिज्यूम ओर फोटो भेजकर जमा कर दिए। इस धारावाहिक के लिए लाखों की तादाद में चिट्ठी आई थी, जिनमें से चोपड़ा साहब ने 8000 लड़के- लड़कियों को फाइनल किया। इसके बाद इनमें से 3000 लोगों के ऑडिशन हुए, जिसमें से 1500 सिलेक्ट हुए। इसके बाद 1500 से 500 हुए, 500 से 250 हुए और फिर डेढ़ सौ में से 12 लोगों की फाइनल लिस्ट आई, जिसमें पहला नाम गजेंद्र चौहान का था। लेकिन उस दौरान मुझे कृष्ण के रोल के लिए फाइनल किया गया था। महाभारत की शूटिंग में देरी हो गई और फिर सामने रामायण आ गई, जिसकी वजह से महाभारत में 2 साल की और देरी हो गई। इस दौरान एक कलाकार के तौर पर काम ढूंढने के लिए मैं साउथ इंडियन फिल्मों में चला गया। यहां मैंने मलयालम, तेलुगू, तमिल, कन्नड़ फिल्में की। साउथ में मुझे खाने के लिए सबसे ज्यादा चावल ही मिलता था, जिसकी वजह से मेरा काफी वजन बढ़ गया था और जब मैं वापस लौटा तो रवि चोपड़ा साहब ने मुझसे कहा कि महाभारत की शूटिंग शुरू होने वाली है और तुमने यह खुद को क्या कर लिया है। उन्होंने कहा कि या तो तुम वजन कम करो या इस किरदार को छोड़ दो। इसके बाद मैंने बहुत कोशिश की अपना वजन पहले की तरह करने की, लेकिन मैं फिर से वैसा नहीं हो पाया। फिर मुझे बलराम का किरदार ऑफर किया गया, लेकिन मैं इस रोल से खुश नहीं था, क्योंकि मैंने कृष्ण के रोल के लिए काफी मेहनत और तैयारी की थी। लेकिन मैंने फिर भी हार नहीं मानी। इसके बाद एक दिन रवि चोपड़ा साहब ने मुझे बुलाया कि एक किरदार और है, जिसके लिए संजय का किरदार निभाने वाले ललित तिवारी जी को फाइनल किया गया था। लेकिन बाद में इस किरदार के लिए मेरा ऑडिशन लिया गया और अंत में 17 अगस्त 1998 को मुझे युधिष्ठिर के किरदार के लिए फाइनल कर लिया गया।
सवाल: महाभारत से जुड़ी कोई बात जो आप हमें बताना चाहें?
जवाब: टेलीविजन के माध्यम से महाभारत और रामायण लोगों के सामने आया तो दर्शकों ने इसे हाथों-हाथ ले लिया, क्योंकि अगर हम भारत की धरती पर जन्म लेते हैं तो हमारे अंदर शुरू से ही महाभारत और रामायण होती है। अपने अंदर की सभ्यता और संस्कृति को जब टीवी के जरिए लोगों तक पहुंचाया गया तो लोगों ने इसे स्वीकार किया। इन दोनों ही महाकाव्य के जरिए लोगों को यह संदेश दिया गया कि राष्ट्रीय से बड़ा कुछ नहीं होता। मुझे महाभारत की एक बात याद है जब बाणों की शैया पर लेटे भीष्म पितामह कहते हैं कि कोई भी पुत्र, कोई भी पिता, कोई भी प्रतिज्ञा, कोई भी परंपरा, कोई भी प्राण राष्ट्र से बड़ा नहीं हो सकता। मैं हमेशा से यही कहता हूं कि महाभारत सिर्फ देखने की नहीं बल्कि सीखने की चीज है। इसके अंदर छिपे संदेशों को हमें और आने वाली पीढ़ी को अपनाना चाहिए।
सवाल: महाभारत की शूटिंग के दौरान कोई यादगार पल जो आज भी आपको याद आता हो?
जवाब: यादें तो बहुत सारी है, लेकिन मुझे याद आता है जब हम सब एक शो के लिए बर्मिंघम गए हुए थे। वहां एक छोटा सा बच्चा शो खत्म होने के बाद अपने पिता के साथ मेरे पास आया और उसने रोते हुए मुझसे पूछा कि आप फिर कब आओगे। मुझे याद देख कर बहुत अच्छा लगा कि एक सात साल का बच्चा जो हिंदुस्तानी है और दूसरे देश में रह रहा है वह इस कल्चर को कितनी गहराई से समझता है। उसे कितना दुख हो रहा था कि हम प्रोग्राम खत्म करके वापस जा रहे हैं। ऐसी चीजें दिल को छू जाती हैं और हमेशा के लिए याद बन जाती है। मुझे याद है जब मैं लंदन एयरपोर्ट पर वापस आने के लिए चेकइन कर रहा था, तो वहां काउंटर पर बैठा अंग्रेज मुझे काफी देर से घूम रहा था। फिर कुछ देर बाद वह काउंटर छोड़कर मेरे पास आया और उसने मुझसे पूछा आप वही राजा है जो कभी झूठ नहीं बोलते। यह सुनकर मैं हैरान था कि वह अंग्रेज जिन्होंने कभी हम पर राज किया है, आज हमारी सभ्यता और संस्कृति उन पर राज कर रही है।
सवाल: अपने अभिनय करियर के दौरान आपने कई सारी फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया है। इस दौरान ऐसा कोई किरदार, जो आपका पसंदीदा किरदार रहा हो?
जवाब: कलाकार होने के नाते मुझे अपने सभी किरदार पसंद हैं, क्योंकि जब तक मैं उस किरदार के लिए खुद को राजी नहीं कर पाऊंगा, मैं उस किरदार को निभा नहीं पाऊंगा। इसीलिए मेरे लिए सारे किरदार ही प्रिय है। युधिष्ठिर का किरदार तो मेरे लिए हमेशा से यादगार रहा है। इसके अलावा अजनबी सीरियल का किरदार भी मेरा काफी प्रिय रहा है। ऐसे कई किरदार है जो मैंने निभाए हैं, लेकिन मैं इन में अंतर नहीं करना चाहूंगा कि कौन मुझे ज्यादा पसंद है और कौन सा कम। मुझे मेरे किए सारे किरदार पसंद है। मैं दर्शकों से एक बात साझा करना चाहूंगा कि अभी भी मेरे मन में एक इच्छा रहती है कि मैं एक ऐसा रोल करूं जैसा संजीव कुमार साहब ने नया दिन नई रात में किया था। मन में हमेशा से ऐसी इच्छा रहती है कि ऐसा कोई प्रोजेक्ट मुझे करने को मिले जिसमें मैं हर तरह का किरदार कर सकूं। अभी तक मेरी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी है।
सवाल: अगर बात की जाए सुपवा विश्वविद्यालय की, जहां आप को कुलपति नियुक्त किया गया, जो एक बड़ी जिम्मेदारी है। लेकिन आपको क्या लगता है कि इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी और इतने कोर्स होने के बाद भी इसकी मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग में कमी है, जिसकी वजह से लोग इसे ज्यादा जानते नहीं?
जवाब: मैं इस पद को जिम्मेदारी के तौर पर लेता हूं। कोई भी पद महत्वपूर्ण नहीं होता, अगर आप उसकी जिम्मेदारी ना निभा पाए। मेरे पास 3 साल के लिए यह जिम्मेदारी है और इन 3 सालों में मैं यह चाहूंगा कि सिर्फ हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे देश के लोग यह जाने की सुपवा नाम की एक यूनिवर्सिटी है। इस यूनिवर्सिटी की खास बात यह है कि यहां फिल्म से जुड़े सभी कोर्स के डिग्री कोर्सेज जबकि अन्य सभी जगह सिर्फ डिप्लोमा कोर्सेज उपलब्ध हैं। यहां सभी सुविधाएं बहुत अच्छी हैं, लेकिन ब्रांडिंग इसलिए कमजोर है, क्योंकि मेरा मानना है कि यहां कभी फिल्म जगत से जुड़ा कोई हेड ऑफ़ इंस्टिट्यूशन नहीं आया है। मेरा अभिनय का सफर काफी लंबा रहा है। आज भी मुझे कई रोल ऑफर किए जाते हैं, लेकिन फिलहाल में 3 साल तक अपनी इस जिम्मेदारी को पूरा करना चाहता हूं। यूनिवर्सिटी को आगे ले जाने के लिए मैं अपनी तरफ से प्रयास कर रहा हूं। अभी मुझे यहां आए डेढ़ महीना हुआ है। मार्च के अंत तक में मैं पूरे हरियाणा में शॉर्ट टर्म कोर्स की शुरुआत कर रहा हूं। इसके जरिए मैं हरियाणा के हर जिले में सुपवा को लेकर जाऊंगा। यह मेरा इस यूनिवर्सिटी को आगे ले जाने के लिए पहला कदम है। सरकार ने मुझे मौका दिया है तो आने वाले समय में लोग इस यूनिवर्सिटी को भी जानेंगे। इस यूनिवर्सिटी को लोगों तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि यहां के लोगों को काम मिलें, क्योंकि अगर यहां के लोगों का नाम होगा तो सुपवा का भी नाम होगा, इसकी सिर्फ ब्रांडिंग होनी बाकी है।
सवाल: महाभारत में अपने धर्मराज युधिष्ठिर का किरदार निभाया, इसका आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
जवाब: मैं हमेशा से यही मानता हूं कि किसी भी कलाकार के ऊपर किसी भई किरदार का स्थायी असर नहीं होना चाहिए, क्योंकि फिर वह कलाकार उस ढांचे में बंध कर रह जाएगा। धर्मराज युधिष्ठिर के जो गुण थे, उसे मैंने पर्दे तक सीमित रखा। जीवन में जैसा था वैसा ही हूं, जमीन से जुड़ा हुआ हूं। छोटे से गांव से उठकर यहां तक भगवान की कृपा से पहुंचा हूं।