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Budget 2022: रूस-यूक्रेन, इस्लामिक देशों के टकराव से कैसे प्रभावित होगा भारत का बजट, सरकार कैसे रोक सकती है महंगाई, जानें

कीर्तिवर्धन मिश्र
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Tue, 01 Feb 2022 07:30 AM IST

सार

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर रूस-यूक्रेन और अरब देशों के बीच जारी तनाव आने वाले समय में नहीं रुका, तो कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी जारी रहेगी। इसका असर सीधे तौर पर भारत के बजट पर भी पड़ने के आसार हैं। 

बजट 2022
– फोटो : अमर उजाला

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विस्तार

2022 की शुरुआत दुनियाभर के लिए काफी चुनौती भरी साबित हो रही है। पहले रूस और यूक्रेन के बीच टकराव और फिर पश्चिम एशिया में स्थित इस्लामिक देशों के आपसी तनाव ने एक बार फिर अलग-अलग देशों की आर्थिक स्थिरता को असंतुलित करने का काम किया है। इस तनाव का असर भारत के बजट पर भी पड़ने का अनुमान है। दरअसल, इन वैश्विक शक्तियों के बीच टकराव की जो स्थिति पैदा हो रही है, उसका असर सीधे तौर पर तेल के दामों पर पड़ने लगा है। कच्चे तेल की कीमतों की ही बात कर लें तो पिछले हफ्ते यह 90 डॉलर प्रति बैरल के पार चला गया था। 2014 के बाद यह पहली बार था, जब कच्चे तेल के दामों का स्तर यहां तक पहुंच गया। 

दो महीने में ही एक-तिहाई तक बढ़ गए कच्चे तेल के दाम

कई विश्लेषकों का मानना है कि दुनियाभर में जारी टकराव के बीच कच्चे तेल के दाम आने वाले दिनों में 100 से 110 डॉलर प्रति बैरल की कीमत तक पहुंच जाएंगे। इसकी वजह यह है कि तनाव के बीच कई देशों से तेल के निर्यात में कमी आ रही है, जबकि कोरोना की तीसरी लहर से उबरने के बीच अब ज्यादातर देशों में फिर से कच्चे तेल की मांग में बढ़ोतरी देखी जा रही है। 

यानी अलग-अलग देशों के बीच तनाव का सीधा असर कच्चे तेल की इस सप्लाई और डिमांड की खाई को बढ़ाएगा। इसका असर 2022 में दिखना शुरू भी हो गया है। जहां दो दिसंबर 2021 को कच्चे तेल के दाम 65.88 डॉलर प्रति बैरल पर थे, वहीं अब कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल के आसपास ठहरी हैं। यानी पिछले दो महीने में ही कच्चे तेल की कीमतों में तकरीबन 36 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। वह भी तब जब टकराव की जद में आए देशों के बीच तनाव अभी लगातार बढ़ता जा रहा है। 

ऐसे में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से केंद्र और राज्य सरकार पर भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा करने का काफी दबाव बन रहा है। इसी तरह मोदी सरकार पर भी बजट के अंतर्गत टैक्स छूट देने को लेकर बड़ा दबाव बनने की संभावना है। 

पर आखिर क्यों बढ़ रहे हैं कच्चे तेल के दाम?

दुनियाभर में कच्चे तेल के दाम मुख्य तौर पर इस साल की शुरुआत में बढ़ना शुरू हुए। इसकी तीन बड़ी वजहें सामने आईं हैं…

1. कोरोनावायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट के फैलने के बाद दिसंबर से ही कई देशों में तेल की खपत कम हो गई। हालांकि, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों में कोरोना की पीक भी जल्द आ गई, जिसकी वजह से इन देशों में जनवरी से ही तेल की खपत फिर बढ़ने लगी। 

2. इस साल की शुरुआत से ही पश्चिमी एशिया में काफी हलचल रही। यमन के हूती विद्रोहियों के संयुक्त अरब अमीरात-सऊदी अरब से बढ़े टकराव की वजह से इन देशों से कच्चे तेल की सप्लाई बाधित रही है। इसके अलावा रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव ने कच्चे तेल की सप्लाई में काफी व्यवधान पैदा किए हैं। 

3. ऊपर दिए गए दोनों कारणों से साफ है कि जनवरी की शुरुआत में ही अलग-अलग देशों में तेल की खपत में बढ़ोतरी हुई है, जबकि इसकी आपूर्ति करने वाले देशों को टकराव और तनाव के चलते कच्चे तेल के उत्पादन में खासी दिक्कतें आ रही हैं। इसका असर यह हुआ है कि कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ रही हैं। 

भारत के बजट और महंगाई पर कैसे असर डालेंगी तेल की बढ़ती कीमतें?

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर रूस-यूक्रेन और अरब देशों के बीच जारी तनाव आने वाले समय में नहीं रुका, तो कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी जारी रहेगी। इसका असर सीधे तौर पर भारत के बजट पर भी दिखने के आसार हैं। दरअसल, भारत में वित्त मंत्रालय जब बजट तैयारी में जुटा था, उस वक्त तेल के दाम 65 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में थे। इससे पहले अप्रैल से सितंबर तक कच्चे तेल की कीमत 60 से 75 डॉलर प्रति बैरल थी। अक्तूबर में यह कीमतें बढ़कर 86 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं। लेकिन इसके बाद से कच्चे तेल के दाम दिसंबर तक लगातार गिरे। 

भारत में बजट की तैयारी के लिए पीक टाइम नवंबर और दिसंबर का होता है। इस दौरान कच्चे तेल की कीमतें 65.86 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गईं और फिर इसी रेंज में घूमती रहीं। यानी वित्त वर्ष 2022-23 का बजट कच्चे तेल की इन्हीं कीमतों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया। लेकिन कोरोना की तीसरी लहर के बाद कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने की वजह से न सिर्फ पेट्रोल-डीजल के महंगे होने का खतरा पैदा हो गया, बल्कि इसके उपोत्पाद जैसे एलपीजी और केरोसीन के दाम भी बढ़ने के आसार रहे। यानी सरकार पर गैस और केरोसिन के लिए दी जाने वाली सब्सिडी का अतिरिक्त दबाव पैदा हुआ। जबकि सरकार ने पिछले करीब तीन महीनों से तेल के दाम स्थिर रखने की कोशिश की है। 

85 दिन से नहीं बढ़े पेट्रोल-डीजल के दाम, अब एक्साइज ड्यूटी पर होगा फैसला

भारत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इस साल पेट्रोल-डीजल के दामों में 85 दिनों से बदलाव नहीं किया गया है। यानी कच्चे तेल के महंगे होने के बावजूद भारत सरकार ने अतिरिक्त टैक्स का बोझ जनता पर डालने के बजाय खुद वहन किया है। इसका असर आज पेश होने वाले बजट पर भी दिख सकता है, क्योंकि या तो कच्चे तेल के दामों की बढ़ोतरी को देखते हुए सरकार को घाटा कम करने के लिए पेट्रोल-डीजल, एलपीजी के दामों में बढ़ोतरी का एलान करना पड़ेगा या फिर इनके दाम स्थिर रखने के लिए केंद्र को जनता से वसूली जाने वाली एक्साइज ड्यूटी को घटाना जरूरी होगा। इससे जुड़ा एलान आज बजट में देखने को मिल सकता है। 

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