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A Thursday Review: सिस्टम पर चोट करने की बनावटी कोशिश में चूकी ‘अ थर्सडे’, यामी गौतम की मेहनत निष्प्रभावी

Movie Review

अ थर्सडे

कलाकार

यामी गौतम
,
नेहा धूपिया
,
डिंपल कपाड़िया
और
अतुल कुलकर्णी

लेखक

एशले लोबो
और
बेहजाद खंबाटा

निर्देशक

बेहजाद खंबाटा

निर्माता

आरएसवीपी
और
ब्लू मंकी फिल्म्स

ओटीटी

डिज्नी प्लस हॉटस्टार

मुंबई से मीलों दूर एक विलुप्त हो चुकी नदी के किनारे बसे कस्बे फतेहपुर चौरासी में मैं फिल्म ‘अ थर्सडे’ देख रहा हूं। उस उन्नाव जिले का ये एक छोटा सा हिस्सा है जिसकी पहचान कभी भगवती चरण वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, के के शुक्ला, गोविंद मूनीस जैसे रचनात्मक लोगों से रही है। बीते कुछ साल से जिला किशोरियों व युवतियों के साथ बलात्कारों को लेकर सुर्खियों में है। बेटियां मरती रहती हैं। सियासत होती रहती है। चुनाव होते रहते हैं। न नदी में पानी अठखेलियां करता है और न बेटियां अपने मन को बहने दे पाती हैं। पथभ्रष्ट हो चुके लोगों ने दोनों को कहीं का नहीं रखा। ये चुनावी मुद्दा भी नहीं बनता। सोशल मीडिया पर लोग अपनी बात कहकर फिर से जातियों और धर्मों के वोट गिनने में लग जाते हैं। बात मुंबई जैसे किसी बड़े शहर की हो तो वहां तो सिस्टम या लोगों को जगाने के लिए ‘अ वेडनेसडे’ और ‘अ थर्सडे’ जैसा लोग कुछ कर भी जाते हैं। यहां राजधानी में अपनी जान देने की कोशिश करने के बाद ही सिस्टम जागता है। और, अक्सर इस देर से टूटी नींद का खामियाजा सिस्टम पर टूटते भरोसे के रूप में सामने आता है। इसी नींद को तोड़ने की कोशिश है फिल्म ‘अ थर्सडे’।

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