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फ्रांस में मैक्रों की वापसी के आसार : हिजाब पर जुर्माने का वादा करने वाली ली पेन दे रहीं टक्कर, पर एक्जिट पोल में पिछड़ीं

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, पेरिस
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Mon, 11 Apr 2022 08:47 AM IST

सार

फ्रांस के टीवी चैनलों के लिए पोलिंग फर्म इप्सो सोप्रा स्टिरिया ने रविवार को हुए पहले चरण के मतदान के बाद सैंपल वोट लेकर एक्जिट पोल किया है। इसमें मैक्रों बढ़त लिए हुए हैं।

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फ्रांस में हो रहे राष्ट्रपति पद के चुनाव के तहत रविवार को पहले दौर का मतदान हुआ। 24 अप्रैल को अंतिम चरण की वोटिंग होगी। रविवार को आए एक्जिट पोल से राष्ट्रपति इम्मैनुएल मैक्रों के फिर सत्ता में लौटने के आसार हैं। उन्हें दक्षिण पंथी प्रत्याशी व हिजाब पर जुर्माने का वादा करने वाली मरीन ली पेन मैक्रों को कड़ी टक्कर तो दे रही हैं, लेकिन एक्जिट पोल में सत्ता से दूर नजर आ रही हैं। 

फ्रांस के टीवी चैनलों के लिए पोलिंग फर्म इप्सो सोप्रा स्टिरिया ने रविवार को हुए पहले चरण के मतदान के बाद सैंपल वोट लेकर एक्जिट पोल किया है। इसमें मैक्रों बढ़त लिए हुए हैं। उन्हें 28.1 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि मुख्य प्रतिद्वंद्वी ली पेन को 23.3 फीसदी। वहीं, वामपंथी प्रत्याशी मेलेंकन को 20.1 प्रतिशत वोट मिले हैं। 

ली पेन के वादे से बढ़ेगी मैक्रों की मुसीबत?
इससे पहले हुए ओपिनियन पोल में भी मैक्रों को दोबारा सत्ता का ताज मिलने का तो भरोसा जताया गया, लेकिन 2017 की जीत के मुकाबले उनकी जीत इस बार कमजोर रहने का पूर्वानुमान जताया गया। एक्जिट पोल में भी ऐसा ही नजारा दिख रहा है। एक्जिट पोल के बाद यह भी कहा जा रहा है कि यदि वामपंथी प्रत्याशी मेलेंकन के वोट कम हुए और हिजाब या मुस्लिम कट्टरपंथ पर नकेल को लेकर ली पेन के हाल ही में किए गए वादों का असर हुआ तो मैक्रों की मुसीबत बढ़ सकती है। हालांकि मैक्रों खुद स्वदेश समेत दुनियाभर में मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ सख्त रुख अपनाएं हुए हैं। इन चुनावों में कट्टरपंथ बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। 

यूरोपीय यूनियन में बड़ी ताकत बन उभरे मैक्रों
राष्ट्रपति मैक्रों यूरोपीय यूनियन (EU) से ब्रिटेन के बाहर होने के बाद बड़ी ताकत बनकर उभरे हैं। चूंकि जर्मनी से एंगेला मर्केल भी सत्ता से बाहर हो चुकी हैं, इसलिए मैक्रों यदि दोबारा सत्ता में आते हैं, तो फ्रांस का वर्चस्व ईयू के साथ ही पूरी दुनिया में बढ़ेगा। उनकी जीत का मतलब होगा कि विश्व में फ्रांस की मौजूदा रणनीति जारी रहेगी। वहीं, यदि ली पेन सत्ता में आती हैं तो फ्रांस की विदेश नीति में व्यापक बदलाव हो सकते हैं, क्योंकि रूस-यूक्रेन संकट को लेकर पेन का दृष्टिकोण पूरी तरह भिन्न है। 

फ्रांस के बड़े चुनावी मुद्दे और मैक्रों की कमजोरियां
दुनियाभर के देशों में बढ़ती महंगाई फ्रांस में भी चुनौती बनी हुई है। ईंधन की कीमतें बढ़ने से भी फ्रांस की जनता मैक्रों से नाराज हैं। हालांकि उनके कार्यकाल में देश में बेरोजगारी सबसे निचले स्तर पर रही है, इसलिए उनके प्रतिद्वंद्वी इस मामले में उन पर तोहमत नहीं लगा सकते। रूस-यूक्रेन संकट को लेकर मैक्रों की रणनीति का पहले तो जनता से समर्थन किया, लेकिन उसके बाद संकट गहराने पर राष्ट्रति के रुख से वह खफा है। कोरोना महामारी फ्रांस में एक बार फिर उठा रही है। मैक्रों सरकार ने इससे निपटने के लिए टीकाकरण के अलावा लॉकडाउन लगाने व हटाने को लेकर मुस्तैदी दिखाई थी, लेकिन ताजा लहर उनके फिर चुनौती बनी हुई है। 

विस्तार

फ्रांस में हो रहे राष्ट्रपति पद के चुनाव के तहत रविवार को पहले दौर का मतदान हुआ। 24 अप्रैल को अंतिम चरण की वोटिंग होगी। रविवार को आए एक्जिट पोल से राष्ट्रपति इम्मैनुएल मैक्रों के फिर सत्ता में लौटने के आसार हैं। उन्हें दक्षिण पंथी प्रत्याशी व हिजाब पर जुर्माने का वादा करने वाली मरीन ली पेन मैक्रों को कड़ी टक्कर तो दे रही हैं, लेकिन एक्जिट पोल में सत्ता से दूर नजर आ रही हैं। 

फ्रांस के टीवी चैनलों के लिए पोलिंग फर्म इप्सो सोप्रा स्टिरिया ने रविवार को हुए पहले चरण के मतदान के बाद सैंपल वोट लेकर एक्जिट पोल किया है। इसमें मैक्रों बढ़त लिए हुए हैं। उन्हें 28.1 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि मुख्य प्रतिद्वंद्वी ली पेन को 23.3 फीसदी। वहीं, वामपंथी प्रत्याशी मेलेंकन को 20.1 प्रतिशत वोट मिले हैं। 

ली पेन के वादे से बढ़ेगी मैक्रों की मुसीबत?

इससे पहले हुए ओपिनियन पोल में भी मैक्रों को दोबारा सत्ता का ताज मिलने का तो भरोसा जताया गया, लेकिन 2017 की जीत के मुकाबले उनकी जीत इस बार कमजोर रहने का पूर्वानुमान जताया गया। एक्जिट पोल में भी ऐसा ही नजारा दिख रहा है। एक्जिट पोल के बाद यह भी कहा जा रहा है कि यदि वामपंथी प्रत्याशी मेलेंकन के वोट कम हुए और हिजाब या मुस्लिम कट्टरपंथ पर नकेल को लेकर ली पेन के हाल ही में किए गए वादों का असर हुआ तो मैक्रों की मुसीबत बढ़ सकती है। हालांकि मैक्रों खुद स्वदेश समेत दुनियाभर में मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ सख्त रुख अपनाएं हुए हैं। इन चुनावों में कट्टरपंथ बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। 

यूरोपीय यूनियन में बड़ी ताकत बन उभरे मैक्रों

राष्ट्रपति मैक्रों यूरोपीय यूनियन (EU) से ब्रिटेन के बाहर होने के बाद बड़ी ताकत बनकर उभरे हैं। चूंकि जर्मनी से एंगेला मर्केल भी सत्ता से बाहर हो चुकी हैं, इसलिए मैक्रों यदि दोबारा सत्ता में आते हैं, तो फ्रांस का वर्चस्व ईयू के साथ ही पूरी दुनिया में बढ़ेगा। उनकी जीत का मतलब होगा कि विश्व में फ्रांस की मौजूदा रणनीति जारी रहेगी। वहीं, यदि ली पेन सत्ता में आती हैं तो फ्रांस की विदेश नीति में व्यापक बदलाव हो सकते हैं, क्योंकि रूस-यूक्रेन संकट को लेकर पेन का दृष्टिकोण पूरी तरह भिन्न है। 

फ्रांस के बड़े चुनावी मुद्दे और मैक्रों की कमजोरियां

दुनियाभर के देशों में बढ़ती महंगाई फ्रांस में भी चुनौती बनी हुई है। ईंधन की कीमतें बढ़ने से भी फ्रांस की जनता मैक्रों से नाराज हैं। हालांकि उनके कार्यकाल में देश में बेरोजगारी सबसे निचले स्तर पर रही है, इसलिए उनके प्रतिद्वंद्वी इस मामले में उन पर तोहमत नहीं लगा सकते। रूस-यूक्रेन संकट को लेकर मैक्रों की रणनीति का पहले तो जनता से समर्थन किया, लेकिन उसके बाद संकट गहराने पर राष्ट्रति के रुख से वह खफा है। कोरोना महामारी फ्रांस में एक बार फिर उठा रही है। मैक्रों सरकार ने इससे निपटने के लिए टीकाकरण के अलावा लॉकडाउन लगाने व हटाने को लेकर मुस्तैदी दिखाई थी, लेकिन ताजा लहर उनके फिर चुनौती बनी हुई है। 

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