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सुप्रीम कोर्ट ने कहा: नजरबंदी के आदेश के खिलाफ प्रतिवेदन पर जल्द विचार करना अधिकारियों का कर्तव्य

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Wed, 05 Jan 2022 10:32 PM IST

सार

तमिलनाडु के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह अधिकारियों का कर्तव्य है कि वह नजरबंदी के खिलाफ प्रतिवेदन पर जल्द से जल्द विचार करें।

सर्वोच्च न्यायालय
– फोटो : पीटीआई

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि सक्षम प्राधिकार का यह कर्तव्य है कि वह नजरबंदी के आदेश के खिलाफ प्रतिवेदन पर जल्दी विचार करे। शीर्ष अदालत ने कहा कि अन्य आधिकारिक कार्यों में व्यस्त रहने के स्पष्टीकरण को कानून के तहत स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने यह टिप्पणी तमिलनाडु में एक व्यक्ति के खिलाफ जिलाधिकारी की ओर से पिछले साल जुलाई में जारी एहतियाती हिरासत के आदेश से संबंधित एक याचिका की सुनवाई करते वक्त की। 

शीर्ष अदालत ने कहा कि आदेश के खिलाफ 30 जुलाई 2021 के प्रतिवेदन पर विचार करने में संबंधित प्राधिकार ने लगभग दो महीने का समय लिया। न्यायाधीश एएम खानविलकर और सीटी रविकुमार की पीठ ने इस पर कहा, ‘यह कोई बहाना नहीं है।’

राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि कोरोना की स्थिति के कारण मंत्री को इस मामले से निपटने में देरी हुई। इस पर पीठ ने कहा कि मंत्री व्यस्त थे, यह कोई कारण नहीं है। वह एक दिन के लिए व्यस्त हो सकते हैं, एक सप्ताह के लिए व्यस्त हो सकते हैं, लेकिन महीनों के लिए नहीं।

पीठ ने कहा कि भले ही यह मामला प्रतिवेदन पर विचार करने में सक्षम प्राधिकारी की सुस्ती का नहीं हो, लेकिन ऐसा करने में लगे इतने लंबे समय को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि सक्षम प्राधिकार का यह कर्तव्य है कि वह नजरबंदी के आदेश के खिलाफ प्रतिवेदन पर जल्दी विचार करे। शीर्ष अदालत ने कहा कि अन्य आधिकारिक कार्यों में व्यस्त रहने के स्पष्टीकरण को कानून के तहत स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने यह टिप्पणी तमिलनाडु में एक व्यक्ति के खिलाफ जिलाधिकारी की ओर से पिछले साल जुलाई में जारी एहतियाती हिरासत के आदेश से संबंधित एक याचिका की सुनवाई करते वक्त की। 

शीर्ष अदालत ने कहा कि आदेश के खिलाफ 30 जुलाई 2021 के प्रतिवेदन पर विचार करने में संबंधित प्राधिकार ने लगभग दो महीने का समय लिया। न्यायाधीश एएम खानविलकर और सीटी रविकुमार की पीठ ने इस पर कहा, ‘यह कोई बहाना नहीं है।’

राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि कोरोना की स्थिति के कारण मंत्री को इस मामले से निपटने में देरी हुई। इस पर पीठ ने कहा कि मंत्री व्यस्त थे, यह कोई कारण नहीं है। वह एक दिन के लिए व्यस्त हो सकते हैं, एक सप्ताह के लिए व्यस्त हो सकते हैं, लेकिन महीनों के लिए नहीं।

पीठ ने कहा कि भले ही यह मामला प्रतिवेदन पर विचार करने में सक्षम प्राधिकारी की सुस्ती का नहीं हो, लेकिन ऐसा करने में लगे इतने लंबे समय को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

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