न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Mon, 17 Jan 2022 09:41 PM IST
सार
पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार की ‘दोखमे नशीन’ परंपरा है, जिसमें शव को गिद्धों व अन्य पक्षियों के लिए खुले में छोड़ दिया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय
– फोटो : पीटीआई
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह कोविड-19 संक्रमण से जान गंवाने वालों के शव को दफनाने के प्रोटोकॉल में इस तरह बदलाव करने पर विचार कर सकती है जिससे पारसी मत के जरूरी सिद्धांतों का ध्यान भी रखा जा सके। न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की पीठ ने सुझाव दिया कि इस मामले पर वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन और केंद्र सरकार के अधिकारियों व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता एक एक अनौपचारिक बैठक कर सकते हैं।
पीठ ने कहा कि इस बैठक के जरिए सुझाव लिए जा सकते हैं और नियम में बदलाव किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं (पारसी कम्युनिटी बोर्ड) ने एक प्रोटोकॉल का सुझाव दिया है। आप प्रोटोकॉल से देख सकते हैं कि अगर किसी वस्तु को जोड़ने की जरूरत पड़ती है तो अतिरिक्त सुरक्षा के मानक अपनाए जा सकते हैं और समुदाय की चिंताओं का ध्यान रखा जा सकता है। याचिका में समुदाय ने कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों के पारंपरिक अंतिम संस्कार की मांग की है।
सूरत पारसी पंचायत बोर्ड की ओर से दायर इस याचिका में गुजरात हाईकोर्ट के 23 जुलाई के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें बोर्ड की याचिका खारिज कर दी गई थी। पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार की ‘दोखमे नशीन’ परंपरा है, जिसमें शव को गिद्धों व अन्य पक्षियों के लिए खुले में छोड़ दिया जाता है। गुजरात हाईकोर्ट ने कोरोना महामारी के बीच पारसी समुदाय के कोरोना से जान गंवाने वाले सदस्यों के पारंपरिक अंतिम संस्कार की मांग को खारिज कर दिया था।
बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता फाली नरीमन ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि पारसियों में पार्थिव शरीर उठाने वालों का एक समुदाय होता है और अगर किसी का निधन हो जाता है तो परिवार के सदस्य पार्थिव शरीर को नहीं छूते हैं और विशिष्ट समुदाय के लोग ही ऐसा कर सकते हैं। मौजूदा गाइडलाइंस पारसी समुदाय को अपने हिसाब से अंतिम संस्कार की इजाजत नहीं देतीं। इस पर मेहता ने कहा था कि मामले पर गौर करेंगे और इसे सुलझाने की कोशिश करेंगे।
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह कोविड-19 संक्रमण से जान गंवाने वालों के शव को दफनाने के प्रोटोकॉल में इस तरह बदलाव करने पर विचार कर सकती है जिससे पारसी मत के जरूरी सिद्धांतों का ध्यान भी रखा जा सके। न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की पीठ ने सुझाव दिया कि इस मामले पर वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन और केंद्र सरकार के अधिकारियों व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता एक एक अनौपचारिक बैठक कर सकते हैं।
पीठ ने कहा कि इस बैठक के जरिए सुझाव लिए जा सकते हैं और नियम में बदलाव किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं (पारसी कम्युनिटी बोर्ड) ने एक प्रोटोकॉल का सुझाव दिया है। आप प्रोटोकॉल से देख सकते हैं कि अगर किसी वस्तु को जोड़ने की जरूरत पड़ती है तो अतिरिक्त सुरक्षा के मानक अपनाए जा सकते हैं और समुदाय की चिंताओं का ध्यान रखा जा सकता है। याचिका में समुदाय ने कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों के पारंपरिक अंतिम संस्कार की मांग की है।
सूरत पारसी पंचायत बोर्ड की ओर से दायर इस याचिका में गुजरात हाईकोर्ट के 23 जुलाई के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें बोर्ड की याचिका खारिज कर दी गई थी। पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार की ‘दोखमे नशीन’ परंपरा है, जिसमें शव को गिद्धों व अन्य पक्षियों के लिए खुले में छोड़ दिया जाता है। गुजरात हाईकोर्ट ने कोरोना महामारी के बीच पारसी समुदाय के कोरोना से जान गंवाने वाले सदस्यों के पारंपरिक अंतिम संस्कार की मांग को खारिज कर दिया था।
बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता फाली नरीमन ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि पारसियों में पार्थिव शरीर उठाने वालों का एक समुदाय होता है और अगर किसी का निधन हो जाता है तो परिवार के सदस्य पार्थिव शरीर को नहीं छूते हैं और विशिष्ट समुदाय के लोग ही ऐसा कर सकते हैं। मौजूदा गाइडलाइंस पारसी समुदाय को अपने हिसाब से अंतिम संस्कार की इजाजत नहीं देतीं। इस पर मेहता ने कहा था कि मामले पर गौर करेंगे और इसे सुलझाने की कोशिश करेंगे।
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