न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Amit Mandal
Updated Wed, 29 Dec 2021 07:40 PM IST
सार
शीर्ष अदालत कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुवर्णा सहकारी बैंक लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता कि अपराध करने वाले कुछ अन्य लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्न की पीठ ने कहा कि मुकदमे के दौरान यदि यह पाया जाता है कि अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है, तो अदालत उन्हें सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए आरोपी के रूप में पेश कर सकती है।
शीर्ष अदालत कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुवर्णा सहकारी बैंक लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 408 (आपराधिक विश्वास भंग), 409 (लोकसेवक द्वारा विश्वास भंग, 420 (धोखाधड़ी) और 149 के तहत आरोपी बनाए गए व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी।
शिकायतकर्ता बैंक ने अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट बेंगलुरु की अदालत में शिकायत दर्ज की और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत चिकपेट पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की गई। जांच पूरी होने पर मामले में आरोपी नंबर एक के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया। आरोपी ने हाई कोर्ट का रुख किया, जिसने उसके खिलाफ कार्यवाही को इस आधार पर रद्द कर दिया कि पुलिस रिपोर्ट में आरोपी नंबर दो और तीन की अनुपस्थिति में केवल आरोपी नंबर एक के खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया जा सकता।
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता कि अपराध करने वाले कुछ अन्य लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्न की पीठ ने कहा कि मुकदमे के दौरान यदि यह पाया जाता है कि अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है, तो अदालत उन्हें सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए आरोपी के रूप में पेश कर सकती है।
शीर्ष अदालत कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुवर्णा सहकारी बैंक लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 408 (आपराधिक विश्वास भंग), 409 (लोकसेवक द्वारा विश्वास भंग, 420 (धोखाधड़ी) और 149 के तहत आरोपी बनाए गए व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी।
शिकायतकर्ता बैंक ने अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट बेंगलुरु की अदालत में शिकायत दर्ज की और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत चिकपेट पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की गई। जांच पूरी होने पर मामले में आरोपी नंबर एक के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया। आरोपी ने हाई कोर्ट का रुख किया, जिसने उसके खिलाफ कार्यवाही को इस आधार पर रद्द कर दिया कि पुलिस रिपोर्ट में आरोपी नंबर दो और तीन की अनुपस्थिति में केवल आरोपी नंबर एक के खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया जा सकता।
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