राजीव सिन्हा, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Kuldeep Singh
Updated Wed, 01 Dec 2021 05:23 AM IST
सार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कोई भी डॉक्टर अपने मरीज को जीवन को बचाने का आश्वासन नहीं दे सकता। अगर किसी कारणवश मरीज जीवित नहीं बच पाता है तो डॉक्टरों पर चिकित्सकीय लापरवाही का दोष नहीं लगाया जा सकता।
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विस्तार
कोर्ट ने कहा, एक डॉक्टर हर समय मरीज के सिरहाने खड़ा नहीं रह सकता
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी राम सुब्रमण्यम की पीठ ने बॉम्बे अस्पताल एवं चिकित्सा अनुसंधान केंद्र की याचिका को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के उस आदेश को दरकिनार कर दिया जिसमें चिकित्सा लापरवाही के कारण मरीज दिनेश जायसवाल की मौत के लिए आशा जायसवाल और अन्य को 14.18 लाख रुपये का भुगतान देने का आदेश दिया गया है।
मामले के रिकॉर्ड और तर्कों को देखने के बाद पीठ ने कहा, यह एक ऐसा मामला है जहां रोगी अस्पताल में भर्ती होने से पहले भी गंभीर स्थिति में था लेकिन सर्जरी और पुन: अन्वेषण के बाद भी यदि रोगी जीवित नहीं रहता है तो इसे डॉक्टरों की गलती नहीं कहा जा सकता। यह चिकित्सकीय लापरवाही का मामला नहीं बनता। पीठ ने शिकायतकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि चूंकि सर्जरी एक डॉक्टर द्वारा की गई थी इसलिए वह अकेले ही रोगी के इलाज के विभिन्न पहलुओं के लिए जिम्मेदार होगा। पीठ ने इसे ‘गलत धारणा’ करार दिया।
डॉक्टर हर वक्त सिरहाने खड़ा नहीं रह सकता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अस्पताल में रहने के दौरान एक डॉक्टर से मरीज के बिस्तर के किनारे पर रहने की उम्मीद करना अतिरेक है। इस मामले में शिकायतकर्ता द्वारा यही अपेक्षा की जा रही थी। एक डॉक्टर से उचित देखभाल की उम्मीद की जाती है। केवल यह तथ्य कि डॉक्टर विदेश चला गया था, इसे चिकित्सा लापरवाही का मामला नहीं कहा जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने गौर किया कि विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक टीम ने रोगी की देखभाल की लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। पीठ ने कहा, यह दुखद है कि परिवार ने अपने प्रियजन को खोया लेकिन अस्पताल और डॉक्टर को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि उन्होंने हर समय आवश्यक देखभाल की।
एक डॉक्टर सभी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता
पीठ ने कहा, सुपर-स्पेशलाइजेशन के वर्तमान युग में एक डॉक्टर एक मरीज की सभी समस्याओं का समाधान नहीं है। प्रत्येक समस्या को संबंधित क्षेत्र में विशेषज्ञ द्वारा निपटाया जाता है। अस्पताल और डॉक्टर को चिकित्सकीय लापरवाही के लिए दोषी ठहराने वाले आयोग के निष्कर्ष कानून के हिसाब से टिकाऊ नहीं हैं। अंतरिम आदेश के तहत शिकायतकर्ता को दिए गए पांच लाख रुपए की राशि को अनुग्रह भुगतान के रूप में माना जाएगा।
क्या है मामला
22 अप्रैल 1998 को अस्पताल में भर्ती मरीज दिनेश जायसवाल ने 12 जून 1998 को अंतिम सांस ली थी। अस्पताल ने इलाज के लिए उससे 4.08 लाख रुपए लिए थे। परिवार के सदस्यों का आरोप था कि गैंगरीन के ऑपरेशन के बाद लापरवाही की गई, डॉक्टर विदेश दौरे पर था और आपातकालीन ऑपरेशन थियेटर उपलब्ध नहीं था।