Desh

सुप्रीम कोर्ट: अदालतें राज्य सरकार को आरक्षण प्रदान करने का नहीं जारी कर सकतीं निर्देश, हाईकोर्ट ने परमादेश जारी कर की गंभीर त्रुटि

राजीव सिन्हा, नई दिल्ली
Published by: प्रांजुल श्रीवास्तव
Updated Wed, 26 Jan 2022 10:09 AM IST

सार

अदालत परमादेश जारी कर राज्य सरकार को आरक्षण प्रदान करने का निर्देश नहीं दे सकती। राज्य सरकार के पास इस तरह का प्रावधान करने की शक्ति है। हाईकोर्ट ने ऐसे मामले में परमादेश जारी कर गंभीर त्रुटि की है।

ख़बर सुनें

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत राज्य सरकार को नागरिकों के किसी भी वर्ग के लिए आरक्षण प्रदान करने का निर्देश जारी नहीं कर सकती। यह कहते हुए शीर्ष अदालत ने पंजाब में सरकारी मेडिकल एवं डेंटल कॉलेजों में स्पोर्ट्स कोटे के तहत तीन प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के न्यायिक आदेश को रद्द कर दिया।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र करते हुए कहा है, ‘अदालत द्वारा परमादेश जारी कर राज्य सरकार को आरक्षण प्रदान करने का निर्देश नहीं दे सकती। राज्य सरकार के पास इस तरह का प्रावधान करने की शक्ति है, लेकिन अदालतें राज्य को ऐसा प्रावधान करने के लिए कोई परमादेश जारी नहीं कर सकती हैं।’

पंजाब- हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को किया दरकिनार
पीठ ने वर्ष 2010 और 2020 के बीच दिए चार फैसलों का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विभिन्न कारकों के आधार पर विभिन्न वर्गों के लिए आरक्षण प्रदान करने की शक्ति राज्य के पास है। अदालत, राज्य से नागरिकों के किसी विशेष वर्ग के लिए कोटा लाभ निर्धारित करने के लिए नहीं कह सकती। शीर्ष अदालत ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के वर्ष 2019 के आदेश को दरकिनार करते हुए वर्ष 2020 में दिए उस फैसले पर भरोसा किया जिसमें कहा गया था कि न केवल एक अदालत आरक्षण प्रदान करने के लिए एक निर्देश पारित नहीं कर सकती है बल्कि वह  राज्यों को आरक्षण को सही ठहराने के लिए मात्रात्मक डेटा संग्रह करने के लिए भी नहीं कह सकती है। 

हाईकोर्ट ने परमादेश जारी कर की गंभीर त्रुटि
पीठ ने यह भी कहा है कि भले ही सार्वजनिक सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कम प्रतिनिधित्व को न्यायालय के ध्यान में लाया गया हो फिर भी राज्य सरकार को आरक्षण प्रदान करने के लिए अदालत द्वारा कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि उपरोक्त निर्णयों  के आलोक में हाईकोर्ट ने ऐसे मामले में परमादेश जारी कर गंभीर त्रुटि की है। दरअसल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को खिलाड़ियों के लिए तीन फीसदी आरक्षण देने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पाया  कि पंजाब सरकार द्वारा जुलाई 2019 में ही खिलाड़ियों के लिए एक फीसदी आरक्षण प्रदान करने के लिए एक नीतिगत निर्णय लिया गया था। इसलिए हाईकोर्ट ने परमादेश की रिट जारी करते हुए अपने अधिकार क्षेत्र को पार कर लिया।

तीन फीसदी खेल कोटा प्रदान करने का दिया था निर्देश
हाईकोर्ट ने अगस्त 2019 में कई रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए पंजाब सरकार को सरकारी मेडिकल एवं डेंटल कॉलेजों में एक फीसदी की बजाय तीन फीसदी का खेल कोटा प्रदान करने का निर्देश दिया था। साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य को आतंकवाद और 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान प्रभावित लोगों के बच्चों और पोते-पोतियों के लिए  निजी मेडिकल कॉलेजों के साथ-साथ प्रबंधन कोटा सीटों में एक फीसदी आरक्षण का लाभ देने का भी निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने खेल कोटा पर हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया लेकिन आदेश के दूसरे हिस्से में हस्तक्षेप करने से परहेज किया क्योंकि राज्य सरकार ने खुद ही 2021-22 सत्र से निजी मेडिकल कॉलेजों व प्रबंधन कोटे की सीटों के लिए आतंकवाद व 1984 के सिख विरोधी दंगों से प्रभावित लोगों के बच्चों और पोते-पोतियों के लिए एक फीसदी आरक्षण प्रदान करने के लिए एक नया नियम बनाया था।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत राज्य सरकार को नागरिकों के किसी भी वर्ग के लिए आरक्षण प्रदान करने का निर्देश जारी नहीं कर सकती। यह कहते हुए शीर्ष अदालत ने पंजाब में सरकारी मेडिकल एवं डेंटल कॉलेजों में स्पोर्ट्स कोटे के तहत तीन प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के न्यायिक आदेश को रद्द कर दिया।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र करते हुए कहा है, ‘अदालत द्वारा परमादेश जारी कर राज्य सरकार को आरक्षण प्रदान करने का निर्देश नहीं दे सकती। राज्य सरकार के पास इस तरह का प्रावधान करने की शक्ति है, लेकिन अदालतें राज्य को ऐसा प्रावधान करने के लिए कोई परमादेश जारी नहीं कर सकती हैं।’

पंजाब- हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को किया दरकिनार

पीठ ने वर्ष 2010 और 2020 के बीच दिए चार फैसलों का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विभिन्न कारकों के आधार पर विभिन्न वर्गों के लिए आरक्षण प्रदान करने की शक्ति राज्य के पास है। अदालत, राज्य से नागरिकों के किसी विशेष वर्ग के लिए कोटा लाभ निर्धारित करने के लिए नहीं कह सकती। शीर्ष अदालत ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के वर्ष 2019 के आदेश को दरकिनार करते हुए वर्ष 2020 में दिए उस फैसले पर भरोसा किया जिसमें कहा गया था कि न केवल एक अदालत आरक्षण प्रदान करने के लिए एक निर्देश पारित नहीं कर सकती है बल्कि वह  राज्यों को आरक्षण को सही ठहराने के लिए मात्रात्मक डेटा संग्रह करने के लिए भी नहीं कह सकती है। 

हाईकोर्ट ने परमादेश जारी कर की गंभीर त्रुटि

पीठ ने यह भी कहा है कि भले ही सार्वजनिक सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कम प्रतिनिधित्व को न्यायालय के ध्यान में लाया गया हो फिर भी राज्य सरकार को आरक्षण प्रदान करने के लिए अदालत द्वारा कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि उपरोक्त निर्णयों  के आलोक में हाईकोर्ट ने ऐसे मामले में परमादेश जारी कर गंभीर त्रुटि की है। दरअसल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को खिलाड़ियों के लिए तीन फीसदी आरक्षण देने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पाया  कि पंजाब सरकार द्वारा जुलाई 2019 में ही खिलाड़ियों के लिए एक फीसदी आरक्षण प्रदान करने के लिए एक नीतिगत निर्णय लिया गया था। इसलिए हाईकोर्ट ने परमादेश की रिट जारी करते हुए अपने अधिकार क्षेत्र को पार कर लिया।

तीन फीसदी खेल कोटा प्रदान करने का दिया था निर्देश

हाईकोर्ट ने अगस्त 2019 में कई रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए पंजाब सरकार को सरकारी मेडिकल एवं डेंटल कॉलेजों में एक फीसदी की बजाय तीन फीसदी का खेल कोटा प्रदान करने का निर्देश दिया था। साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य को आतंकवाद और 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान प्रभावित लोगों के बच्चों और पोते-पोतियों के लिए  निजी मेडिकल कॉलेजों के साथ-साथ प्रबंधन कोटा सीटों में एक फीसदी आरक्षण का लाभ देने का भी निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने खेल कोटा पर हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया लेकिन आदेश के दूसरे हिस्से में हस्तक्षेप करने से परहेज किया क्योंकि राज्य सरकार ने खुद ही 2021-22 सत्र से निजी मेडिकल कॉलेजों व प्रबंधन कोटे की सीटों के लिए आतंकवाद व 1984 के सिख विरोधी दंगों से प्रभावित लोगों के बच्चों और पोते-पोतियों के लिए एक फीसदी आरक्षण प्रदान करने के लिए एक नया नियम बनाया था।

Source link

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

To Top
%d bloggers like this: